निकाय चुनाव की आहट, बढ़ी योगी सरकार धड़कनें

संजय सक्सेना,लखनऊ

उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव का बिगुल बज गया है। राज्य निर्वाचन आयाोग ने चुनाव कार्यक्रम तय कर लिया है। अगले माह(अक्टूबर में) अधिसूचना जारी होने के बाद नवंबर में मतदान होना है।उस समय तक योगी सरकार आठ माह पुरानी हो चुकी होगी। यह आठ माह का समय वैसे तो बहुत लम्बा कार्यकाल नहीं है,लेकिन आठ महीनों में कुछ तो ऐसा दिखाई पड़ना ही चाहिए जिससे इस बात का अहसास हो सके कि योगी सरकार की नियत पर भरोसा किया जा सकता है। खासकर कानून व्यवस्था के मोर्च पर तो कुछ न कुछ बदलाव देखने को मिलना ही चाहिए। सड़क की हालत खस्ता है। इस मोर्चे पर अभी तक कोई काम होता दिख नहीं रहा है। राजधानी लखनऊ की सड़कों का हाल देखकर तो यही लगता है कि पूरे प्रदेश का हाल इससे बुरा होगा। 24 घंटे बिजली देने के योगी सरकार के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। प्रदेश की सड़को से अतिक्रमण कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है, जिस कारण मुख्य मार्गो से लेकर छोटी-छोटी सड़कों पर भी चलना मुश्किल हो गया है।जाम एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इससे समय और ईधन दोेंनो की ही बर्बादी होती ही है। प्रदूषण का स्तर बढ़ता है। स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। यह स्थ्तिि तब है जबकि योगी सरकार अपने काम का खूब ढिंढोरा पीट रही है।

संजय सक्सेना
संजय सक्सेना
सच्चाई क्या है ? जनता योगी सरकार के कामकाज से खुश है या फिर यह सरकार भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है। लोकतंत्र में किसी भी सरकार की विश्वसनीयता को मापने का पैमाना है हमारी चुनावी व्यवस्था।मार्च में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हुए थे। मतदाताओं ने दिल खोल कर बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था, जिसके बल पर यूपी में बीजेपी का न केवल 15 वर्षो का सत्ता का वनवास खत्म हुआ, इसके अलावा बीजेपी ने जीत के कई पुराने रिकार्ड भी तोड़ दिये। करीब सात-आठ माह बाद एक बार फिर उत्तर प्रदेश चुनावी प्रक्रिया से गुजरेगा। तब योगी के सामने कई चुनौतियां होंगी। यहां यह भी बता देना जरूरी है कि योगी सरकार निकाय चुनाव कराना ही नहीं चाह रही थी। योगी सरकार के ढुलमुल रवैये से नाराज हाईकोर्ट ने स्वयं ही निकाय चुनाव कराने का आदेश जारी कर दिया। होईकोट की सख्ती के बाद नवंबर में नगर निकाय और ‘ग्रामीण निकाय’(नगर पंचायत) चुनाव होने जा रहे हैं।
अक्तूबर के आखिरी सप्ताह में 16 नगर निगमों, 198 नगर पालिका परिषद व 439 नगर पंचायतों के लिए अधिसूचना जारी होगी। पहली बार प्रत्याशियों के नामांकन ऑनलाइन फीड किए जाएंगे। ऑनलाइन नामांकन की रसीद भी तत्काल मुहैया कराई जाएगी। राज्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल ने बताया कि सरकार ने परिसीमन की प्रक्रिया पूरी कर ली है। वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण का काम चल रहा है। यह काम 18 अक्तूबर तक पूरा हो जाएगा। इस बीच शासन स्तर पर अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी पता करने के लिए रैपिड सर्वे कराया जा रहा है। सर्वे पूरा होते ही उत्तर प्रदेश नगर निगम व नगर पालिका नियमावली-1994 के तहत वार्डों के आरक्षण के बाद नवंबर के अंत तक चुनाव हो जाएंगे। वार्डो का नये सिरे से आरक्षण किये जाने के बाद वार्डो में व्यापक बदलाव होना तय है। निकायों में अनुसूचित जाति के लिये 21 प्रतिशत वार्ड आरक्षित रहेंगे। अनुसूचित जाति के लिये जो वार्ड आरक्षित रहेंगे ,उसमें से 33 प्रतिशत वार्ड अनुसूचित जाति की महिलाओं के हिस्से में चले जायेंगे। अनुसूचित जाति के लिये वार्डो का आरक्षण होने के बाद शेष वार्डो में से 27 प्रतिशत वार्ड अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित रहेंगे। इन वार्डो में भी 33 प्रतिशत हिस्सेदारी इस वर्ग की महिलाओं की रहेगी। इसके बाद जो अनारक्षित वार्ड बचेंगे उनमें से भी 33 प्रतिशत महिलाओं के लिये आरक्षित रहेंगे।

बीजेपी पहले लोकसभा और उसके बाद विधान सभा चूनाव में मिली शानदार जीत के बाद अब निकाय चुनावों में भी अपनी जीत का परचम फहराना चाहती है। निकाच और पंचायत चुनावों में भी बीजेपी की जीत का सिलसिला जारी रहा तो इसके दो फायदे हांेगे। एक तो योगी सरकार के कामकाज पर जनता की सहमति की ‘मोहर’ लग जायेगी, दूसरे 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये भी बीजेपी को सियासी टानिक मिल जायेगा। फिलहाल, बीजेपी के लिये अच्छी खबर यह है कि कांग्रेस,सपा और बसपा के बीच इन चुनावों को लेकर सहमति बनती नहीं दिख रही है, तीनों ही दल एकला चलो की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि बीजेपी विरोधी दल अपने बूते पर चुनाव लड़कर जमीनी हकीकत भांपना चाह रहे हैं। इस सबके बीच निकाय चुनावों के लिये परिसीमन का कार्य पूर्ण हो चुका है और अब वोटर पुनरीक्षण का काम चल रहा है। नंवंबर में नगर निकाय और नगर पंचायत चुनाव के अलावा गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा और एक विधान सभा सीट पर भी वोट पडेंगे।
निकाय चुनावों को बीजेपी ठोस रणनीति बनाकर लड़ने जा रही है। इसी क्रम में पुराने पार्षदों का टिकट काट कर मतदाताओं की नाराजगी कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं। बीजेपी आलाकमान की यह रणनीति दिल्ली निकाय चुनाव में खरी उतरी थी। उम्मीद यह भी है कि बीजेपी अबकी से महिला प्रत्याशियों को दिल खोलकर टिकट दे सकती है। निकाय चुनाव के रूप में पहली परीक्षा में योगी सरकार और संगठन कोई कोर-कसर नही छोड़ना चाहती है। पार्टी के रणनीतिकारोें की बैठकें चल रही हैं। निकाय चुनावों में सरकार और संगठन की भूमिका पर चर्चा के अलावा यह भी तय किया गया कि नगर निगमों के लिए समीकरण दुरूस्त करने के मकसद से प्लान तैयार किया जाए। साथ ही चुनाव की आचार सहिंता लागू होने से पहले लोगों को संदेश देने और भाजपा के पक्ष लामबंद करने वाली कुछ घोषणाएं भी सरकारी स्तर से की जा सकती हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मश्ती वर्ष के तहत चल रहे कार्यक्रमों की श्रंृखला 24 सिंतबर को पूरी होने के बाद पूरे संगठन ने सिर्फ निकाय चुनाव पर ही अपना ध्यान कंेद्रित कर लिया है। शहरी क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं को अन्य कार्यक्रमों से मुक्त करके मतदाता सूची पुनरीक्षण के काम में लगाया गया है। इसके लिए पार्टी के किसी प्रमुख कार्यकर्ता को स्थानीय स्तर पर प्रभारी बनाया जा रहा है। बूथ कमेटियों के लोगों को भी इसमें जुटाकर प्रयास किया जा रहा है ताकि भाजपा समर्थक मतदाताओं के नाम सूची में शामिल होने से छूट न सकें। स्थानीय स्तर पर यह समीक्षा भी की जा रही है कि वार्डांें मेें जहां-जहां भाजपा को निकाय कि पिछले दो चुनावों में कम वोट मिलते रहे है, वहां की मतदाता सूची में शामिल लोग क्या वास्तव में वहां रहते है। अगर नहीं रहते हैं तो सूची से उनके नाम कटवाने का काम भी किया जायेगा। बीजेपी चुनाव प्रचार के लिये अपने दिग्गजों को भी मैदान में उतारेगी।
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3.5 करोड़ वोटर सुनाएंगे फैसला
उत्तर प्रदेश की लगभग 21 करोड़ की आबादी में से शहरी क्षेत्र के करीब सवा तीन करोड़ मतदाता नवंबर में होने जा रहे नगर निगम चुनाव में स्थानीय सरकार चुनेगी। कुल 653 नगर निकायों के करीब 12 हजार वार्डों में जनता अपने प्रतिनिधि चुनेगी। इसके लिए करीब 36,500 पोलिंग बूथ बनाए जायेंगे। चुनाव में कोई गड़बड़ी न हो और इसकी शुचिता बनी रहे, इसके लिए वेब कास्टिंग मतदान केंद्रों की वेब कास्टिंग कराई जाएगी। प्रदेश में करीब साढ़े तीन हजार से अधिक मतदान केंद्र संवेदनशील हैं। इन कंेद्रों की चुनाव के दौरान ऑन लाइन निगरानी रखी जाएगी। वेब कास्टिंग के जरिए कहीें से किसी भी कंेद्र की लाइव तस्वीरे देखी जा सकंेगी। निकाय चुनाव में इस बार सूचना तकनीक का खूब उपयोग होगा। राज्य निर्वाचन आयोग ने ऐसे-ऐसे एप तैयार किए है, जिससे पूरे चुनाव की निगरानी काफी आसान हो जाएगी। इन एप के जरिए चुनाव में पारदर्शिता भी आएगी। आयोग इस बार चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों का ब्योरा ऑनलाइन उपलब्ध कराएगा। कोई भी व्यक्ति राज्य निर्वाचन आयेाग की वेबसाइट पर जाकर अपने निकाय क्षेत्र में लड़ने वाले पार्षदों व मेयर के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेगा।

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