प्रधानमंत्री मोदी किसको बेवकूफ बना रहे हैं

मुस्लिम महिला के बिना मरहम के हज पर जाने का मामला

मुजफ्फर अली
मुजफ्फर अली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुस्लिम महिलाओं को अपने पाले में करने के लिए नए नए दावे कर रहे हैं। रविवार को मन की बात में प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि अब मुस्लिम महिलांए बिना मरहम यानि सरंक्षक से हज पर जा सकेगीं। यह उनके लिए बडी उपलब्धि है। लगता है किसी संगठन ने उन्हे समझाया है कि मुस्लिम पुरुष तो भाजपा से जुडेंगेें नहीं इसलिए मुस्लिम महिलाओं पर ध्यान केन्द्रीत किया जाए और संभवत: मोदी इसी सलाह पर मुस्लिम महिलाओं के हमदर्द बनने की कोशिश कर रहे हैं। तीन तलाक के बाद ताजा मामला हज पर अकेली महिलाओं के जाने पर पाबंदी का है। प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि अब मुस्लिम महिलाएं बिना मरहम के अकेली हज पर जा सकेंगीं। मरहम का मतलब संरक्षक या जिम्मेदार व्यक्ति से है। पहले हमारे देश से किसी भी उम्र की अकेली महिला को हज पर जाने की पांबदी थी। मोदी सरकार ने यह पांबदी हटा दी है और इसको इस तरह प्रचारित किया जा रहा है जैसे यह कोई इस्लाम की कूप्रथा हो जिसे खत्म किया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि 45 साल या उससे अधिक उम्र की मुस्लिम महिला को समूह में हज पर जाने के लिए सउदी अरब में कोई रोक टोक नहीं है और ना ही कुरआन में अकेली महिला का हज ना करने का जिक्र है। अगर यह बात इस्लाम में गलत होती तो सउदी अरब में भी इस पर पाबंदी लगती लेकिन वहां ऐसी कोई पाबंदी नहीं है इसलिए यह गलत भी नहीं है। हदीस के मुताबिक पैगबंर हजरत मुहम्मद सअव ने हज के लंबे सफर के दौरान चोरी या अन्य तरह की सुरक्षा को ध्यान में रखकर अकेली महिला को हज पर नहीं जाने के निर्देश दिए थे, पहले अरब के शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्र में चोरी डकैती लूटमार का खतरा था ,हालाकिं अब समय बदल चुका है और पवित्र इबादत की जगह पर किसी अकेली महिला को किसी भी मदद की जरुरत पड सकती है इसलिए महिला के साथ एक पुरुष सरंक्षक हो इसलिए हमारे देश में यह पांबदी महिला की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही लगाई गई थी जो मोदी सरकार ने हटा दी है। लगता है मोदी जी मुस्लिम महिलाओं को अधिकार देने के चक्कर में उन्हे लबें सफर में असुरक्षित भी कर रहे हैं। हालाकिं यह उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार भी 45 साल या उससे अधिक की उम्र की महिला को समूह में ही हज पर जाने की इजाजत दे रही है जो कि सउदी अरब में यह व्यवस्था पहले से है।
क्या है महरम?
महरम (सरंक्षण या जिम्मेदार ) वह है जिसके साथ निकाह नहीं हो सकता. जैसे मां, बहन, सास, फूफी, नानी और दादी, इनके महरम बेटा, भाई, दामाद, भतीजा, धेवता और पोता हैं. बीवी का महरम उसका शौहर है। ये शरई कानून सऊदी अरब हुकूमत में लागू हैं। लिहाजा बिना महरम या शौहर के औरत का हज का सफर ठीक नहीं माना जाता है। लेकिन 45 साल या उससे अधिक उम्र की महिला समूह में हज पर जा सकती है जिस पर सउदी अरब में कोई पाबंदी नहीं है।
हज इबादत का सफर-
उलेमा-ए-दीन फरमाते हैं कि ये इबादत का सफर है. दौरान- ए- सफर बहुत सी जगह तन्हाई या जरूरत के वक्त मदद की जरूरत पडती है, जो किसी गैर महरम के जरिए फितने का सबब बन सकती है. सफर के लिए फर्जी रिश्ते कायम करना सख्त गुनाह है।
महरम न मिलने पर-
अगर किसी औरत की माली हालत अच्छी होने की बिना पर हज फर्ज हो गया हो तो उस पर उस वक्त तक हज की अदायगी जरूरी नहीं जब तक उसके साथ जाने वाले किसी महरम या शौहर का इंतजाम न हो जाए. ऐसी औरत को इंतजाम होने तक सफर रोक देना चाहिए। इसमें कोई शरई गुनाह नहीं.
महरम के बारे में कुरआन
कुरआन में हज तीर्थयात्रा के संबंध में करीब 25 आयतें हैं. इसमें हज तीर्थयात्रियों के लिए कई निर्देश दिए गए हैं हालांकि इनमें इनमें महरम की अनिवार्यता का जिक्र नहीं है। गौरतलब है कि सऊदी अरब में पहले ही से इस संबंध में नियम बनाए जा चुके हैं. सऊदी अरब किंगडम गाइडलाइन के मुताबिक, 45 साल से अधिक उम्र की महिलाएं बिना महरम के एक संगठित समूह के साथ हज तीर्थयात्रा कर सकती हैं. हालांकि उन्हें अपने शौहर, पुत्र या भाई से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (अनापत्ति पत्र) देना होता है.

muzaffar ali
journalist

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