आज भी सुपर फास्ट की औसत स्पीड 60 km प्रति घंटा है
रेलवे में सुपर फास्ट गाडियो का आलम ये है कि आज भी तब जब बुलेट ट्रेन चलाने की बात की जा रही है तब भी सुपर फास्ट ट्रेनों की औसत स्पीड 60 km से ज्यादा नही है , राजधानी की स्पीड औसत 86 km शताब्दी की 90 km है , आम इंसान की पैसेंजर तो भगवान भरोसे चलती है कब चलेगी कब पहुचेगी कुछ पता नही
अच्छा हो कि पहले सुपर फास्ट की स्पीड 100 km प्रति घंटे औसत ओर राजधानी शताब्दी की औसत 140 की जाए ,पैसेंजर की औसत 70से 80 की जाए तब लगेगा कि कुछ सुधार हुआ है , जितना पैसा बुलेट ट्रेन में सिर्फ एक खंड में खर्च किया जा रहा है उतने में तो पूरे देश मे स्पीड बड़ाई जा सकती है
रेलवे में सुविधाएं बढ़ाने की बात की गई थी परंतु आज ये हाल है कि राजधानी में चूहे कान काट लेते है फिर दूसरी आम ट्रैन का क्या कहना है
मोदी सरकार इस मामले में पूरी तरह कामयाब नही कही जा सकती क्योंकि रेलवे के हालात आज भी वही है कोई आमूलचूल परिवर्तन नही हुआ है , ट्रेनों में आधुनिक शौचालय तो लगवा दिए गए है परंतु मेंटेनेंस का स्तर आज भी वो नही है जो होना चाहिए हालांकि सफाई कर्मचारी आजकल सभी ट्रैन में तैनात है परंतु वे बहुत अंतराल के बाद सफाई करते है जबकि उन्हें निर्देश है कि उन्हें तय अंतराल पर साफ सफाई करनी है
मोदीजी बेहतर है बुलेट ट्रेन से पहले सभी ट्रेनों को सही अर्थों में सुपर फास्ट तो बनाओ आज भी औसत स्पीड 60 km होना बताता है कि हम कहाँ खड़े है
मेरे इस तरह के लेखों को एंटी मोदी की कैटेगरी में रख दिया जाता है में बता दु की न में मोदी जी का एंटी हु न फैन मुझे जो बात अच्छी लगती है उसे अच्छा लिखता हूं और जो सही नही लगता उसे गलत ,
उसे सुधार वादी तरीके से लेना चाहिए न कि पक्ष और विपक्ष के तौर पर मेरा मानना है कि कोई सरकार हो जनता का काम होना चाहिए और जनता का जीवन स्तर निरंतर बढ़ना चाहिए
विनीत जैन
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