श्रीमती दिवस

DR SURESH GARG– डॉ. सुरेश गर्ग- हमारे देश में यों तो अनेक दिवस मनाए जाते हैं मेरा मानना है कि और अधिक दिवस मनाने की परम्परा में हमें बडें कलैण्डर छापने पडेंगे, क्योकि हर एक दिन मे एक दिवस तो पहले ही चल रहा है, फिर होगा यह कि सरकारी दफ्तरो मे, स्कूलों में और क्लबों में सुबह से लेकर दोपहर तक एक दिवस मनाया जाएगा और दोपहर शाम तक दूसरा दिवस मनाना पडेगा। सरकारी अधिकारियों, शिक्षको व राजनेताओं को एक-एक दिन मे ंदो-दो विषयों पर भाषण देने की तैयारी करनी पडेगी और मेरे जेसे लेखकों के कारण सम्पादकजी को पूर्व सूचना प्रकाशित करनी होगी कि अमुक अगस्त को श्रीमती दिवस व बिल्ली दिवस के कारण उनके समाचार पत्र का विशेष संस्करण प्रकाशित होगा। समाचार पत्र की उस दिन की बिक्री पिछले रिकार्ड तोडने वाली होगी। हर आदर्श पति श्रीमती जी दिवस के लेखों के लिए और हर आदर्श पत्नी (जो कभी सम्भव ही नहीं है।) बिल्ली दिवस के लेखों के लिए सुरक्षित रखना चाहेगी, उन पर चर्चा करने के लिए महिला मण्डल की बैठकें होगी।
महिला लेखिकाओं को मेरे कथन पर एतराज हो सकता हैं कुछ जानी-मानी राजनीतिक व जागरूक महिलाएं अपने वकील के मार्फत मेरे विरूद्ध दावा भी कर सकती है, लेकिन उससे मेरी प्रतिष्ठा बढने ही वाली है और मैं क्षेत्रीय लेखकों की श्रेणी से पदोन्नति प्राप्त कर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान प्राप्त करने की श्रेणी में आ जाऊंगा। चूंकि मेरा अनुमान कि कुछ तो मर्द हांेगे , जो मुझे राष्ट्रीय स्तर पर बढायेगें। खैर मेरा जो होना है होगा। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है जो हुआ अच्छा हुआ, जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है जो होगा अच्छा ही होगा। मैं इस सिद्धात को स्वीकार करता हूं।
मेरी पत्नी का स्वर्गवास 11 अगस्त को हुआ था और उसे बिल्लियों से बहुत प्यार था, उसकी दिनचर्या का एक तिहाई भाग बिल्लियों की सेवा, देखभाल, खिलाने-पिलाने, उनकी स्वास्थ्य रक्षा में ही व्यतीत होता था। हमने या उन्होने इन बिल्लियों के लिए तीन नौकर भी आठ-आठ घण्टों की ड्यूटी पर रखे हुए थे। उसकी बिल्लियों की चर्चा मेरे घर-परिवार में ही नहीं, गली-मोहल्ले तक होती थी। उनके चित्र समाचार-पत्रों में प्रकाशित होत थे। मैं आदर्श पति था और मरने से पहले मैंने अपनी श्रीमती से वायदा किया कि मैं उसका नाम हजारों साल तक अमर रखूंगा।
मैं इस देश का प्रमुख होता, तो मुझे अपनी श्रीमती की याद में इतना कुछ नहीं करना पडता लेकिन फिर भी मैं प्रयास कर रहा हूं कि इस दिन को सभी लोग मन से श्रीमती दिवस स्वीकार करें। वैसे भी हर व्यक्ति इसे स्वीकार करेगा, ट्रेड यूनियने इसे आत्म सम्मान का विषय मानेंगी और सभी राजकीय संस्थाओं में श्रीमती दिवस को मान्यता प्राप्त होगी। समय रहते सच्ची श्रंृद्धाजलि के लिये बिल्लियों को दूध पिलया जाएगा, उन्हें हकीकत में चिछडे़ खिलाए जाएंगे बिल्लीं को ख्वाब में चिछडे़ नजर आते है। कहावत को अन्तिम संस्कार किया जा सकेगा।
एक विशेष बात मैं अपनी और रखना चाहूंगा कि हर व्यक्ति उस दिन अपनी श्रीमती की अतिरिक्त सेवा करेगा, अतिरिक्त प्यार करेगा, उसके गुणगान करेगा, सम्मान करेगा। परिवार, समाज, शहर स्तर पर उसको श्रीमती सम्मान दिया जाकर राज्य व राष्ट्र स्तर पर भी उनका चयन किया जाएगा। उनकी बिल्लियों को बढिया चूहांे, दूध व चिछडों का भोजन करवाया जाएगा। उन्हें ए.सी. व कार की सुविधा मुहैय्या कराई जायेगी, रास्ता काटने पर अपशकुन नहीं समझा जाएगा। बिल्लियों पर अत्याचार करने वालों का मामला मानवाधिकार आयोग में सुना जायेगा, अन्यथा एक आयोग की स्थापना की जाएगी। हमारे राजस्थान में महिलाओं का एक त्यौहार होता है – गणगौर। अनेक शहरों में उस दिन महिलाएं बाग-बगीचों मे जाती है और उस अवधि में पुरूषों का प्रेवेष निषेध होता हैं। उससे भी ऊपर उठकर श्रीमती दिवस पर सभी महिलाओं (कन्याओं और विधवाओं को छोडकर) के लिए बाग-बगीचे, सिनेमा, नाटक-घर होटल-रेस्टोरेन्ट आदि खुले रहेगें, सभी को निःशुल्क प्रेवेश मिलेगा और पुरूषों का प्रवेश वर्जित होगा। पुरूषों (मेरा तात्पर्य पति से) का दायित्व संविधान में इस दिन के लिए निर्धारित होना चाहिए चाहे हजारवां संशोधन की क्यों न करना पडे। करवा चौथ की भांति पति दिनभर का उपवास रखें तथा रात्रि में चांद दिखने पर ही खाना खाये। पत्नी की दीर्घायु व जीवनपर्यन्त खूबसूरत व जवान रहने की दुआ की जाए तथा उस दुआ में यह भी सम्मिलित हो कि उनका हुक्म पतियों पर चलता रहे आदि। दिन में पत्नीवृता रहने के लिए पत्नी चालीसा का जाप करें, स्वर्गवासी पत्नी की तस्वीर पर पुष्प अर्पित करे।
मैं मानता हूं कि इस तर्क को शीघ्र ही स्वीकार कर लिया जाएगा कि श्रीमती दिवस हमारे लिए बडा सार्थक रहेगा। मैं भारत का बादशाह होता, तो मेरी स्वर्गीय पत्नी के लिए ताजमहल से बडी कोई इमारत बनवा देता। वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों मे तो एक निजी झौपडा भी बनवा लेने के सपने पिछले अनेक वर्षो से देख रहा हूं।
यदि मेरे इस प्रकाशन के जवाब में सरकार ने 11 अगस्त को श्रीमती दिवस घोषित नहीं किया तो मैं हस्ताक्षर आन्दोलन चालू कर दूंगा। मुझे याद है बचपन में मैंने आणुविक हथियारों पर रोक के लिए हजारों व्यक्तियों के हस्ताक्षर करवाए थे। इस बार मैं सिर्फ हामारे देश में हस्ताक्षर अभियान प्रारम्भ करूं तो लगभग 50 करोड हस्ताक्षर तो हो ही जाएंगे। हर पति मेरे इस कार्य में मदद करेगा क्योंकि मैं उसे पहले ही यह गुप्त शपथ दिलवाप दूंगा कि अपनी पत्नी के प्रति निष्ठावान रहने का ढांेग करने के लिए श्रीमती दिवस को स्वीकार करता हूं। हर व्यक्ति यह प्रतिज्ञा करेगा कि वह श्रीमती दिवस को सुबह उठते ही पत्नी की विधिवत पूजा अर्चना कर सिन्दूर से मांग भरेगा, उसे नई साडी भंेट करेगा और पूरा दिन व्यंजनों से भरपूर रहेगा। बडी कम्पनियां चाहें तो उस दिन सभी श्रीमतियों के लिए अपने-अपने उत्पादन फ्री कर सकती है, जो सुदृढ़ कम्पनियां नहीं है, वे 50 प्रतिशत तक की छूट देकर श्रीमतियों को लुभा सकती है। इस कार्य में होने वाले घाटे को वे पतियों के आइटमों के रेट बढाकर पूरा कर सकती है, मसलन कोई पेय पदार्थ मुफ्त घोषित कर दें और पुरूषों के लिये रेट डबल कर दें, तो उन्हें प्रसिद्धि भी मिल जाएगी और आर्थिक हानि भी नहीं होगी।
जो महिला कर्मचारी निजी, सरकारी संस्थाओं में नौकरी करती है, उस दिन उन्हें 20 प्रतिशत अतिरिक्त बोनस दिया जाए ताकि वे अपने रखरखाव पर अधिक ध्यान दे सकें। इस भुगतान को प्राप्त करने से पूर्व उन्हें यह प्रमाण पत्र देना होगा कि वे विवाहित हैं उनके पति जिन्दा है। और उन्हीं के साथ रहते है।
जैसे-जैस श्रीमती दिवस और बिल्ली दिवस की लोकप्रियता बढती जाएगी-मेरी श्रीमती की आत्मा स्वर्ग (या नर्क) से देखकर प्रसन्न होगी और यह विश्वास करेगी कि मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है ओर वे भी अपना वादा अवश्य पूरा करेगी। हुआ यह कि एक दिन घर में लड़ते-लड़ते नौबत मायके जाने तक की आ जाने पर जब हमने अपनी किस्मत को कोसा तो श्रीमतीजी ने भी कह दिया था कि वे किसी भी जन्म में मेरी पत्नी दुबारा बनना स्वीकार नहीं करेंगी। इस जन्म के लिए उन्होंने अपने माता-पिता को दोषी ठहराया। मैं उसी दिन की याद में अपना वादा पूरा कर रहा हूं और पूरा हो जाने पर प्रतिदिन अपने घर पर पत्नी की तस्वीर के सामने दोनों समय अगरबत्ती करता रहूंगा और यही प्रार्थना करूगंा कि वे अपने वादे को याद रखें और उसे पूरा करें ताकि अगले जन्म में मुझे इतनी मेहनत नहीं करनी पडे।
मेरा सुझाव है कि हर गांव, शहर में श्रीमती मन्दिर, बिल्ली मन्दिर बनवाए जाए। कोर्इ्र भी पति जब चाहे उनमें प्रवेश करें और श्रद्धानुसार पूजा-अर्चना करें और भंेट चढाए। ऐसे मन्दिर वातानुकूलित हो तथा श्रीमती या बिल्ली मूर्तियों के नीचे मखमल के गद्दे मसनद आदि की व्यवस्था हो ऐसे मन्दिरों में पाश्चात्य संगीत की भी व्यवस्था होनी चाहिये तथा रंगीन टेलीविजन पर विश्व के सभी चेनलों का प्रसारण होना चाहिए। स्वीमिंग पूल होने चाहिए। ऐसे मन्दिरों में कुछ पर्यटन उद्योग को बढावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगें। जहां तक आर्थिक प्रश्न है – इन मन्दिरों लिये धन की कमी कभी नहंी होगी और ये मन्दिर वास्तुकला की एक अद्भुत देन होगी।
श्रीमती व बिल्ली दिवस अलग व सामुहिक रूप से विशेष महत्व रखते हैं, यह अन्तर्राष्ट्रीय विचार-विमर्श का मुद्दा होना चाहिये, यही मेरा सुझाव है।

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