सिविल सर्विसेज में सीसेट का विरोध न्यायपूर्ण

प्रो. एस.एन. सिंह
प्रो. एस.एन. सिंह

सिविल सर्विसेज के प्रारम्भिक परीक्षा में सिविल सर्विसेज एप्टिट्यूट टेस्ट (सीसेट) द्वितीय पेपर को हटा देने या संशोधित करने की मांग को न्यायपूर्ण है। भारतीय प्रशासन की धुरी कहलाने वाली 23 प्रशासनिक सेवाओं के चयन के लिए तक देश के लाखों युवाओं ने चाहे वे बेरोजगार है या किसी अन्य नौकरी में कार्यरत है, परीक्षा की तैयारी में लगे है। आगामी 24 अगस्त, 2014 के अपनी योग्यता प्रारम्भिक परीक्षा में बैठकर अजमाना चाहते है।भाषाई आधार पर भेदभाव के खिलाफ 2012 में उच्च न्यायालय गये। न्यायालय के निर्देश पर 12 मार्च 2014 को एक माह में रिर्पोट देने के लिए तीन सदस्यीय समिति पूर्ववर्ती यू0 पी0 ए0 सरकार द्वारा बनाई गई। इसकी अवधी 2 माह और बढाई गई। मई 2014 में बनी भाजपा सरकार के राज्यमंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह के सीसेट हटाने के आश्वासन के बाद भी अब तक कोई सुधार लोक सेवा आयोग के तीन सदस्य समिति द्वारा नहीं किया गया। इसके विपरीत पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप 24 अगस्त 2014 के परीक्षा के एडमिट कार्ड 24 जुलाई, 2014 को जारी कर दिये गये हैं। इसका शांतिपूणर््ा और उग्र विरोध संसद और सड़क पर हो रहा है।
लेखक ने हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में सिविल सर्विसेज की परीक्षा कोठारी कमीशन के सिफारिश के अनुरुप करवाने के लिए 1978 में शांतिपूर्ण संघर्ष में अपने जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय और दिल्ली विश्वविधालय के साथीयों के साथ भाग लिया था। इस संधर्ष में लालकृष्ण आडवानी, शरद यादव, और रामविलास पासवान जैसे नेताओं ने सहयोग दिया था। अब भी छात्र अपने न्यायोचित मांग के लिए सांसदों और प्रेस का साथ लें साथ ही पुलिस से उलझें नहीं। पुलिस की लाठी और हिरासत उनके जीवन के लिए बहुत ही धातक होगा। इसके कारण वे चयनित होने के बाद भी मेडिकली अनफिट और पुलिस वैरिफिकेशन में परेशान हो सकते हैं।
प्रारम्भिक परीक्षा के प्राप्तांकों के आधार पर मुख्य परीक्षा के लिए प्रतियोगियों का चयन किया जाता है। इसमें रिक्त पदों का लगभग 13 गुणा प्रतियोगी चुने जाते है। मुख्य परीक्षा में सफल होने के बाद रिक्त पदों के दो गुणा अभ्यार्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है। इस कठिन चयन प्रक्रिया का प्रवेश द्वार प्रारम्भिक परीक्षा है जिसमें दो सौ अंक के दो पेपर होते हैं। गत तीन वर्षों से अर्थात् 2011 की प्रारम्भिक परीक्षा में ग्रामीण अंचल के छात्र और भारतीय भाषाओं अर्थात हिन्दी और अन्य 22 भारतीय भाषाओं में पढ़ाई करने वाले मात्र 5 प्रतिशत अभ्यार्थी ही मुख्य परीक्षा के लिए चयनित हो सके। मुख्य परीक्षा में सफलता अंग्रेजी भाषी अभ्यार्थियों के लिए मददगार और हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषा-भाषियों के लिए काफी नकारात्मक सिद्ध होती है। लेखक को भी 1980 में ऐसा अनुभव हुआ। लिखित परीक्षा में करीब 100 के आसपास रेंक था जो साक्षात्कार के 250 में से मात्र 115 मिलने के कारण 551 पर पहुॅंच गया।
जून, 2014 में गत् वर्ष का परीक्षा परिणाम प्रकाशित हुआ। इसमें 1122 अधिकारियों का चयन हुआ। लेकिन इसमें हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रतियोगियों को काफी निराशा हाथ लगी। इसमें केवल 26 हिन्दी भाषी और 27 गैर हिन्दी भाषी (21 भाषाओं में से) का चयन हुआ यानि 1122 में से 1069 सिर्फ अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा देने वाले अभ्यार्थी चयनित हुए। इससे ग्रामीण अंचल के संबद्ध एवं भारतीय भाषाओं में पढ़ाई करने वाले प्रतियोगियों को घोर निराशा हुई। तीन वर्ष पूर्व तक सफल आशार्थियों में से उनकी भागीदारी करीब 20 प्रतिशत हुआ करती थी। लेकिन 2014 में घटकर मात्र 5 प्रतिशत से भी कम हो गई है। 2008 में 5082 हिन्दी भाषी छात्रों ने प्रारम्भिक परीक्षा पास की जो सिसेट लागू होने पर मात्र 1062 रह गई। इसके विपरित अंग्रेजी माध्यम के छात्रों की संख्या 5817 से बढकर 9203 हो गई है। यह भाषा के आधार पर काफी भेद-भाव पूर्ण है। इससे यह साबित होता है कि सम्भान्त परिवार के अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने वाले प्रोफेशनल कोर्स के छात्र ही लाभान्वित हो रहे है। दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह उजागर हुआ है कि इंजीनियरिंग, मेडिसिन और प्रबन्ध के विषयों का अध्ययन करने वाले प्रतियोगी काफी संख्या में सफल हो रहे है और समाजिक विज्ञान, विज्ञान, कृषि तथा भारतीय भाषाओं के माध्यम से अध्ययन करने वाले छात्र असफल हो रहे हैं। इसका मूल कारण 2011 में बदली गयी परीक्षा प्रणाली है। इससे पूर्व 1979 से जारी समतावादी प्रणाली थी जिसे बदल दिया गया। 2011 में प्रारम्भिक परीक्षा में सीसेट के लिए दो सौ अंकों के दो पेपर लागू किये गये। 1979 से जारी प्रारम्भिक परीक्षा जिसमें 450 अंकों के दो पेपर होते थे उसमें बदलाव कर उसे 400 अंकों का किया गया। पहले (1979) 300 अंकों का किसी एक विषय का एक वैकल्पिक विषय और 150 अंकों का सामान्य ज्ञान विषय का पेपर होता था। लेकिन मौजूदा व्यवस्था में सबके लिए एक समान परीक्षा रखी गयी यानि वैकल्पिक विषय एवं सामान्य ज्ञान 200 अंक का सामान्य ज्ञान का प्रथम प्रश्न पत्र और तर्क शक्ति का दूसरा प्रश्न-पत्र भी 200 अंकों का है। प्रथम प्रश्न-पत्र सामान्य ज्ञान पर कोई विवाद नहीं है क्योंकि सभी प्रतियोगी अपनी स्मरण शक्ति और मेहनत से अंक प्राप्त करते है। लेकिन दूसरा पेपर तर्क शक्ति पर आधारित है। इसके अंक विभाजन में अंग्रेजी के 25 अंकों का प्रश्न और कम्प्रिहेंसिव (समझ) के 10 प्रश्न भारतीय भाषाओं के प्रतियोगियों के लिए काफी कठिन साबित होते है। इसमें निगेटिव मार्किंग से भी भारतीय भाषाओं के प्रतियोगी पिछड़ जाते है क्योंकि इसकी भाषा सरल नहीं होती।
सीसेट की नई व्यवस्था का सबसे विभेदकारी तथ्य यह है कि दोनों प्रश्न पत्रों में निम्नतम अंक लाने की अर्हता है। इस व्यवस्था में सामान्य ज्ञान के प्रश्न-पत्र के लिए 15 प्रतिशत और तर्क शक्ति के दूसरे प्रश्न पत्र के लिए 35 प्रतिशत अंक प्राप्त करना अनिवार्य है। इस अर्हता का लाभ विशेषतः इंजीनियरिंग, मेडिकल और प्रबन्ध विषय के प्रतियोगियों को जो अंग्रेजी भाषा में दक्ष होते है को मिल रहा है और सामाजिक विज्ञान सहित अन्य परम्परागत विषय पढ़ने वाले प्रतियोगी पिछड़ रहे है। आयोग को दोनों प्रश्न पत्रों में निम्नतम अंक को एक ही अर्हता रखनी चाहिए। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा के कम्प्रिहेशन के प्रश्न-पत्र को प्रारम्भिक परीक्षा से हटाया जाना भी सबको समान अवसर देने के लिए सही न्यायपूर्ण होगा। सीसेट की इस नई व्यवस्था में अंग्रेजी भाषा मुख्य परीक्षा का अभिन्न्ा अंग बन गयी है। अंग्रेजी में उत्तीर्ण होने के बाद ही मुख्य परीक्षा में प्रतियोगियों की अन्य विषयों की उत्तर पुस्तिका जाँची जाती है। अतः दो बार अंग्रेजी को थोपना सर्वथा अनुचित है। भारत जैसे गरीब देश में 95 प्रतिशत प्रतियोगी सामान्य आर्थिक संसाधनों से भारतीय भाषाओं में पढ़े लिखे होते है। उन्हें भी अधिकारी बनने का हक है। कृत्रिम अर्हता के अंक निर्धारण करना और अनावश्यक प्रश्नों को प्रश्न-पत्र में डाल देने से ही अच्छे प्रशासक का चयन नहीं हो पाता है। प्रशासक बनने के बाद भी कई चयनित अभ्यार्थी अपनी भाषा में अपनी प्रशिक्षण रिपोर्ट तक नहीं लिख पाते है तथा दूसरों की नकल उतारते हैं या इन्टरनेट का सहारा लेते हैं। ऐसे तथ्य मुझे सिविल सर्विसेज के साक्षात्कार और 26 आई.ए.एस. प्रोबेशनर्स की प्रोजेक्ट रिपोर्ट पढ़ने से ज्ञात हुआ है। अच्छा प्रशासक बनना संस्कारों, प्रशिक्षण और अनुभव में निहित होता है केवल अंग्रेजी ज्ञान से नहीं।
भारत सरकार ने सीसेट पर विचार के लिए 3 माह पूर्व समिति बना दी थी अभी भाजपा सरकार ने संसद में भी इस पर विचार करने का आश्वासन दिया है। इस कार्य में सरकार को अनावश्यक विलम्ब नहीं करना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शीघ्र निर्णय लेने के लिए जाने जाते है। उन्हें स्थिति से अवगत कराया गया है। अब संसद में कार्मिक मंत्री जितेन्द्र सिंह से 25 जुलाई, 2014 को सात दिन में आयोग के रिपोर्ट के आधार पर इसमें परिवर्तन करने का वादा पूरा किया जाना अपेक्षित है। अब सीसेट का दूसरा प्रश्न पत्र रहेगा या हटेगा अंग्रेजी कम्प्रहेंसिव के प्रश्न रहेंगे या हटेंगे या दो प्रश्न पत्रों में निम्नतम अर्हता के अंक एक समान यानि 15-15 या 35-35 किये जायेंगे या नहीं यह निर्णय सरकार पर है। इससे अनावश्यक विरोध और हिंसा रूकेगी। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में पढ़ने वाले प्रतियोगियों को न्याय मिलना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी की नयी सरकार के लिए हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं को महत्व देने का जो वादा पूर्व में किया गया है उसे पूरा करने का अवसर है। भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी जी के लिए यह कोई बहुत बड़ा चुनौती भरा कार्य नहीं है। इसका समाधान यदि चाहे तो अतिशीघ्र किया जा सकता है। इस सुधार से सीसेट परीक्षा में हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में प्रतियोगियों को राहत मिलेगी एवं बुद्धिजीवी वर्ग के सामने नयी सरकार की न्याय प्रियता सिद्ध होगी।
प्रो. एस.एन. सिंह,
विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग
डीन सामाजिक विज्ञान संकाय,
महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय अजमेर।
मो.ः09352002053, email:[email protected]

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