मूल: मोहन थानवी
इंद्रधनुष के रंग
नाव बन गए
बूंदें हुई हैं सवार
हवाओं का दामन थाम बादल
तुम्हारी यादों के पतवार चला रहे
छूट रहे पीछे पहाड़
मगर…
दुखों का क्षितिज वहीं थमा
जमीं तेजी से घूम रही है क्यों …?
श्रीलक्ष्मी विश्वास वाचनालय, 82A, शार्दूल कालोनी बीकानेर, 334001 संस्थापक अध्यक्ष – मोहन थानवी 9460001255
सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
इंद्रधनुष जा रंग
बेड़ी बाणजी पया
फुड़ड़ा थिया आहिन सवार
हवाऊन जो दामन झले ककर
तुहिंजी याद जा
चप्पू हलाए रहया आहिन
पुठियां रहिजंदा था वञन जबल
पर……..
दुखन जो उफ़क़ उतेई अचल रहियो
ज़मीन तेज़ीअ सां घुमी रही आहे छो….. ?
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