श्री युगल सरकार के प्रेम विहार का उत्सव है सांझी

DSCN3285sanghiअजमेर। लोक पर्व एवं संस्कृति सागर संस्थान के तत्वाधान में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी सांझी उत्सव आयोजित किया गया। उपरोक्त सांझी उत्सव के तहत आज दिनाक 21.9.2014 को भगवान के युगल स्वरूप एवं प्रेम विहार लीला को सूखे रंगों एवं पुष्पों से सजा कर चित्रण किया गया एवं संध्या के समय सांझी का पूजन एवं आरती की गयी। लोक संस्कृति की महक को बिखेरता पर्व सांझी भादप्रद शुक्ल पूर्णिमा से आरम्भ होकर आष्विन कृष्ण अमावस तक चलता है। कालांतर में तो सांझी उत्सव घर-घर में मनाया जाता था किन्तु धीरे-धीरे यह उत्सव लुप्त प्राय सा हो गया है किन्तु आज भी पुष्टि मार्गीय मंदिर एवं परिवारों में नित्यप्रति संध्या के समय सांझी की रचना की जाती है। इसमें अनेक रंग बिरंगे पुष्पों एवं रंगों द्वारा श्री राधा-कृष्ण की लीलाओं का चित्रण किया जाता है। प्रिया प्रियतम अनादी, अजन्मा, अविनाषी है इसलिए यहां प्रथम मिलन, द्वितीय मिलन इस प्रकार की संख्या महत्वहीन है उनका नित्य विहार तो अनंतकाल से चल रहा है फिर भी हर मिलन ही प्रथम मिलन की भांति नित्य नूतन नित्य नवीन है इस अर्थ में ही पद के भाव को ग्रहण करना चाहिए! श्री राधिका जी कहती हैं की मैं सांझी बनाने के लिए यमुना के तट पर फूल बीनने के लिए गयी और वहां पर मेरा अंचल पट अर्थात ओढ़नी एक पे डमें उलझ गयी तभी कोई अचानक वहां आ गया और उसने मेरी ओढ़नी को पेड़ से अलग कर के सुलझाया और वो मुझे लगातार निहारने लगा और अरी सखी मैं शरमा गयी, लाज से पानी पानी हो गयी लेकिन उसने अपनी दृष्टि मुझ पर से नहीं हटाई और गजब तो तब हो गया श्री सखी जब उसने मेरे चरणों पर अपना श्री मस्तक रख दिया! ये बात कहने में मुझको लाज आ रही है लेकिन वो मेरे वस्त्र को तो सुलझा गया री सखी किन्तु मेरे मन को उलझा कर चला गया, मैं उसका नाम नहीं जानती पर वो पीला पीताम्बर पहने था और श्याम रंग का था! हे सखी अब मुझे उस चितचोर की याद आ रही है इसलिये मुझको उस वन में ही सांझी पूजन के लिए फूल फूल बीनने को फिर से ले चलों! ठस पद में श्री ठाकुर जी और श्री प्रिया जी की प्रेममयी रसमयी निकुंज लीला को समझाया गया है। यह उत्सव श्री प्रियाजू राधा-रानी से सम्बन्धित है इसलिये रसिक भक्तों का इस उत्सव पर अधिक ममत्व है। गोस्वामी श्री हित रूप लाल जी महाराज ने अपनी वाणी में बताया की सांझी के रूप में श्री प्रिया जी (राधा-रानी) संध्या देवी का पूजन करती है। यह पर्व पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने, धरती मां के श्रंगार करने के द्वारा कलात्मक सौन्दर्य बोध का सन्देष देने वाला पर्व है। वर्षाकाल में संध्या के समय आकाष में रंग-बिरंगे बादल छाये रहते हैं। इसलिये सांझी भी अनेक रंगों से बनायी जाती है। संध्या को रजनीमुख भी कहा जाता है अतः यह उत्सव श्री युगल के प्रेम विहार का उत्सव है श्री सुरदास जी, श्यामलदास जी, कुंभनदास जी सहित अनेक भक्तें ने सांझी अनेक पदों की रचना की जो आज भी वैष्णव मंदिरों में गाये एवं सुनाये जाते हैं। सांझी की रचना फर्ष पर सुखे रंगों एवं अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे पुष्पों से श्री युगल के प्रेम विहार की लीलाओं की रचना कर सजाया जाता है एवं संध्या देवी की पूजा की जाती है। कला, प्रेम, भक्ति, एकता, सौहार्द और सामाजिकता का सन्देष देने वाले ये पर्व को जो आज भी हमारी भावनाओं को जीवत रखे हुये है इन्हें संरक्षण की आवष्यकता है पुनजीवीत करने एवं भव्यता के साथ मनाने की आवष्यकता है क्योंकि जब तक हमारी संस्कृति जीवत है तब तक संस्कार जीवंत रहेंगे और इन्हीं पर्वो के माध्यम से परिवार सगठीत, संस्कारी एवं सुदृढ रहेंगे।
सांझी उत्सव में अनेक पद गाये जाते हैं जिनमें से निम्न प्रमुख है:-

उमेष गर्ग
उमेष गर्ग

1. वन की लीला लालहि भावे, पत्र-प्रसून बीच प्रतिबिम्बही नख-सिख प्रिया जनावे
स्कुच न सकत प्रगट परिम्भन अलि लम्पट दुरि धावे
संभ्रम देत कुलकि कल कामिनी रति-रण कलह मचावे
उलटी सबे समुझ नैनन में अंजन – रेख बनावे
जय श्री हित हरिवंष प्रीत – रीत बस सजनी श्याम कहावे।
2. फूलन बीनन हौं गई जहां जमुना कूल द्रुमन की भीड़।
अरूझी गयो अरूनी की डरिया तेहि छिन मेरी अंचल चीर।
तब कोउ निकसि अचानक आयो मालती सघन लता निरवार,
बिनही कहे मेरो पट सुरझायो इक टक मो तन रह्यो निहार!
हौं सकुचन झुकी दबी जात इत उत वो नैनन हा हा खात,
मन अरूझाये बसन सुरझायो कहा कहो अरू लाज की बात!
नम न जानो श्याम रंग हौं पियरे रंग वाको हुतो री दुकूल,
टब वही वन ल ेचल नागरी सखी, फिर सांझी बीनन को फूल।
3. राधा प्यारी कहौ सखिन सो सांझी धरोरी माई
बिटिया बहुत अहीरन की मिल गई जहां फूलन अंथाई।
करसो कर राधा संग शोभित सांझी चीती जाय
खटरस के व्यंजन अरनपे तब मन अभिलाख पुजाय
कीरति रानी लेत बलैया विधिसौ विनय सुनाय
सुरदास अविंचल यह जोरी सुख निरखत न अधाये।
4. आज सखिन जल सांझी बनाई, कुसुमन सो भीने रंग लीनों श्री यमुना जी सो जल पधराई।
गुलाब, मालती, रालवेली, सुंदर चम्पा, बकुल जूही तहां जूरि आई
नानाविध सामग्री संवारी छप्पनरस पकवान सजाई, प्रिय प्यारी तहां सुख सौ भेंटे,
फूलन फुलित मादकता छाई, सेज सवारत चन्द्रवली निकंुजन, ललिता बीरी अरोगाई।
स्यामदास ठाडे भए बेसुध, स्यामल बिहारी गौर तरूनाई।
-उमेष गर्ग
9829793705

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