बालू की चिट्ठी – मेघ के नाम

बालू… थार का बाशिंदा। यूं टीलों – टीलों पसरे थार के दामन में चमकते
“स्वर्ण-कण” भी बालू कहलाते हैं । तो “बालू” ने लिखी मेघ को चिट्ठी । ...

मोहन थानवी
मोहन थानवी

इस तरह
बूंद बूंद रिसते
बरसते पर
उमस करते हो ?
मेघ
तुम
थार के जीवन पर
कुठाराघात करते हो ?
आशाओं की पैदावार के बीज
बालू-कणों में फूटने से पहले
तेज नागौरण के वेग से
इधर के उधर पहुंच जाते
और तुम मेघ…
तेजी से उन्हीं के साथ
थार पर मंडराते
कहीं के कहीं
क्यों
निकल जाते ?
है तो यह अन्याय तुम्हारा
तुम्हारी निष्ठुरता से
यहां का ‘‘धन’’ प्यासा रह जाता
धन का अमृत बना दिया जाता मावा
लकड़ियां और टहनयिां झाड़ियां
फोग भी  भेंट
भट्टियों के हो जाते
चूल्हा धुंआता न धुंआता
मरुस्थल की हवा धुआं जाती
मेघ तुम जब
धुआं बन जाते
इस अफसोस में
हळधर की आंख भी धुआं जाती
सावन-भादौ की गोठें जब
यहां पुकारती प्रवासियों को
मेघ तुम क्यूं नहीं गरजते
सचमुच मेघ…
तुम जब बरसते हो
गांव-गांव
औ’र
शहर शहर एक चमन-सा
बन
इसी मिट्टी में फनां हो जाने को उकसाते
सचमुच ! मेघ ! किंतु तुम निष्ठुर हो
नहीं बरसते तो नहीं बरसते
रिसते तो फकत रिसते हो
इस तरह
बूंद बूंद रिसते
बरसते पर
उमस करते हो ?
मेघ
तुम
थार के जीवन पर
कुठाराघात करते हो ?

– मोहन थानवी
poet / Drama – Novel / story writer
10 Books published in Hindi – Rajasthani – sindhi
Bikaner

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