मूल: पूर्णिमा वर्मन
1॰ उदासी
फिर उदासी की दरारों से
कोई झाँकेगा, कहेगा
आँख धो लो
जल्द ही सूरज को आना है।
2॰ समंदर
फिर समंदर
रेत में डूबा हुआ था
धड़कनों के पार
कुछ टूटा हुआ था
3॰ चुप
कुछ भी नहीं
बचा कहने को
चुप सिरहाने दर्द बिछाए
ऊँघ गया था।
4॰ आँसू
कभी-कभी तो खुशी में भी
आँख रोती है
कि आँसू
दर्द की जागीर तो नहीं है!
5॰ समय
जिसमें हम खुश थे सबसे ज्यादा
सिर्फ तस्वीरों में रह जाएगा
टुकड़ा टुकड़ा !
पता: शरजाह , यू ए ई
सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
1. उदासी
वरी उदासीअ जी डार माँ
कोई लीओ पाईंदो
चवंदों
अखि धोई वठु
जल्द ही सिज खे अचिणो आहे।
2॰ समुंढ
वरी समुंढ
वारीअ में बुडल हुयो
धड़कनुन जे पार
कुछ टुटल हुयो।
3 माठ
कुछ बि नाहे
बचियो चवण लाइ
माठ मथन खाँ दर्द बिछाए
झूटा पे खाधा ।
4 लुडुक
कडहिं कडहिं त खुशीअ में बि
अखि रुअंदी आहे
लुडुक फ़क़त
दर्द जी जागीर त नाहिन!
5॰ वक़्तु
जाहिमें असीं खुश हुयासीं सभ खां वधीक
फ़क़त तस्वीरुन में रहिजी वेंदो
टुकड़ा टुकड़ा !
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