पेशावर में घटी ह्रदय विदारक घटना पर विरोध स्वरुप कुछ पंक्तियाँ

Suresh Dhaka
Suresh Dhaka

दूध पिलाते थे नागों को
भारत पर चढ़ जाने को
आतंकी पैदा करते थे
दहशत को फ़ैलाने को

पाकिस्तान तेरी करनी का
फल बच्चों ने भोगा है
दोहरे चेहरे वाले जालिम
उतरा तेरा चोगा है

इसी बेल को पाल पास कर
तूने कितना बड़ा किया
हर आतंकी को अपनाया
अपना अड्डा खड़ा किया

आज तुझे ही डस डाला
तेरे ही पाले साँपों ने
पैरों तले कुचल डाला
तेरे आतंकी बापों ने

देख जरा उस पीड़ा को
जो हर ह्रदय में उठती है
सूंघ जरा उस बदबू को
जो मरे शवों से उठती है

यूँ ही लोग मरे थे जब
तुमने मुम्बई दहलाया था
गोली की आवाजों से जब
अक्षरधाम गुंजाया था

संसद पर हमला हो या
कई बारों के बम के विस्फोट
अफज़ल गुरु कसाब भेजकर
कितनी गहरी दी है चोट

फिर भी तेरे दुःख में जालिम
तेरे साथ खड़े हैं हम
आतंकवाद से लड़ जाने को
खुलकर आज अड़े हैं हम

बात समझ आ पाई हो तो
अब ये दहशत बंद करो
भाड़े के आतंकी रोको
अब ये वहशत बंद करो

वरना एक दिन तुम डूबोगे
सारे मारे जाओगे
अपनी करनी के कारण तुम
जीवन भर पछताओगे।।
“आज पडोसी का “चुल्हा” ठंडा है?
“भूख” हमारी भी मर गयी…”

ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे …

मासूमों के क़ब्र पर चढकर, कौन से ज़न्नत जाओगे !!!
आज कुछ बस्ते घर नहीं जायेंगे …..
वो 26/11था आज 16/12 है,
कल धरती हमारी थी हथियार तुम्हारे थे,

आज धरती भी तुम्हारी है हथियार भी तुम्हारे है,

हमें दुःख कल भी था आज भी है….

error: Content is protected !!