मौत से संघर्ष कर सृजन करने वाले शिक्षक की कहानी

मौत की आहट के बीच रच दिया साहित्य
मौत से लड़ते हुए लि ो तीन उपन्यास
m2कहते हैं जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है। परन्तु अनवरत संघर्ष कभी-कभी पाषाण को भी डिगा देते हैं, इंसान की तो बिसात ही क्या है। एक के बाद एक लगातार कठिन परीक्षा, मनोबल तोड़कर र ा देती हैं। लेकिन उन सबके बीच भी इन्सान अपने हौसले से अपने लिए नई राह बना लेता है। स्थानीय सुभाष स्कूल में व्या याता के पद पर पदस्थ मुकेश दुबे की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
1986 में कृषि महाविद्यालय, जबलपुर से एम. एस. सी. कृषि शिक्षक मुकेश दुबे को अगस्त 2012 में अचानक हुए हृदयाघात ने जीवन की आशा मलिन कर दी। मध्यप्रदेश के सभी यातनाम चिकित्सकों ने भी असमर्थता जाहिर कर दी, ऐसा लगा शायद मौत दबे पाँव निकट आती जा रही है। जिन्दगी और मौत की आरपार की लड़ाई में मौत को पराजित होना पड़ा। जीवन तो मिला परन्तु एक जीवनरक्षक प्रणाली आई. सी. डी. शरीर में लगाकर। जिन्दगी एक मशीन के साथ समझौता बन गयी। साँसों की डोर अत्यन्त नाजुक हो अनेक प्रतिबंधों पर आश्रित हो गयी। यहाँ तक कि बोलने, चलने तक की सीमा निर्धारित थी। घर की चार दीवारी में जैसे सारी दुनियाँ सिमटकर रह गयी। छह महीने सिर्फ बिस्तर पर रहना था। उस असहाय अवस्था में किया भी क्या जाये ? टीवी के सामने बैठकर समय बिताना या बिस्तर पर पड़े हुये बेबसी का जीवन जीना रास ही नहीं आ रहा था। पुत्री ने सुझाया कि आप लि ाने की पुरानी आदत को शुरु करो। लेकिन डायरी में दो-चार लाइनें लि ाने वाला व्यक्ति लि ाना भी चाहे तो क्या लि ो ? परन्तु मन मस्तिष्क में एक उथलपुथल शुरू हो चुकी थी। एक अस्पष्ट सा ताना-बाना बन रहा था स्मृति पटल पर। और इस तरह उन अवसाद व मानसिक संताप के छणों में प्रार भ किया ले ान…… जो भी कुछ अनुभूत किया था उसी को स्याही से उतारता रहा पन्नों पर। जो कुछ भी लि ाा वह तीन उपन्यासों ”कड़ी धूप का सफर”, ”रंग जिंदगी केÓÓ तथा ”$कतरा-$कतरा $िजन्दगीÓÓ के रूप में शिवना प्रकाशन के माध्यम से सामने आया। ये तीनों उपन्यास मुकेश दुबे की जीवटता के प्रतीक हैं जो पुस्तक के रूप में पाठकों के सामने आ रहे हैं। इन तीनों उपन्यासों का विमोचन 19 जनवरी को आयोजित होने वाली पुण्य स्मरण संध्या में देश भर के साहित्यकारों की उपस्थिति में किया जाएगा।
(मुकेश दुबे संपर्क 8718954337)

शिवना प्रकाशन
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1 thought on “मौत से संघर्ष कर सृजन करने वाले शिक्षक की कहानी”

  1. विपत्तियों के आने का न तो समय निर्धारित है न ही कोई पूर्वाभास होता है। मन की शक्ति और अपनों का हौसला ऐसे में बहुत शक्ति प्रदान करते हैं। परिवार व परिजनों ने टूटकर बिखरने नहीं दिया। खाली समय का सदुपयोग करते हुए लेखन की शुरुआत की और अब ये एक आदत बन गयी है। यह क्रम अनवरत चलता जा रहा है। हाल ही में एक और उपन्यास ‘फ़ैसला अभी बाक़ी है’ प्रकाशित हुआ है। एक उपन्यास व कथासंग्रह शीघ्र ही आने वाले हैं।
    आपने जो उत्साहवर्धन किया है मैं हृदय से आभार ज्ञापित करता हूँ।

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