साहित्य महाकुंभ और भारतीय संस्कृति

रेणु शर्मा
रेणु शर्मा

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की शुरूआत 2006 में की गयी थी जिसका लक्ष्य साहित्य के महत्तव को बढावा देने के लिये विश्व के जाने माने साहित्यकारों को विचार विमर्श करने के लिये बुलाया जाता था। पहली बार आयोजित फेस्टिवल में मात्र 18 लेखकों ने भाग लिया था। 2007 में सलमान रूसदी सहीत किरण देसाई ने समारोह मे शिरकत की थी। 2008 के बाद इसमें आम जनता और साहित्य प्रेमियों की भागीदारी में भाग लिया गया तथा इसमें विश्व के विभिन्न भागों से साहित्यकारों को बुलाया गया।
लिटरेचर फेस्टिवल जिसमें विभिन्न भाषा और साहित्य का संगम होता है, जहंा देशी विदेशी साहित्य के साथ साथ जाने माने लेखको से भी रूबरू होने का मौका मिलता है। इसी मकसद कंे साथ 2008 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की शुरूआत की गयी थी पंाच दिन तक चलने वाले फेस्टिवल का आयोजन हर साल जयपुर के डिग्गी पेलैस में किया जाता रहा है। लेकिन समय के साथ जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में बदलाव आ रहा हैं पिछले पंाच साल से मैं लगातार लिटरेचर फेस्टिवल में जाती रही हूॅ लेकिन अब ये लगता हैं कि यह फेस्टिवल अपना मूल लक्ष्य खोता जा रहा हैं और लिटरेचर फेस्टिवल से ज्यादा फैशन शो हो गया हैं साहित्य के नाम पर विदेशी कल्चर और संस्कृति का प्रचार किया जा रहा हैं। यहंा विभिन्न देशों के साहित्य संगम के साथ साथ पाश्चात्य और भारतीय सभ्यता और संस्कृति का भी संगम हो रहा हैं।
लिटरेचर के अलावा यहंा कपडे, सजावटी सामान इत्यादी की स्टॉलस भी लगायी जा रहीं हैं। समारोह में उपलब्ध सामान की कीमत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं यहंा 10रूपये में आने वाली चाय 50 रूपये में मिलती हैं इससे यहंा मिलने वाले अन्य उपलब्ध सामग्री के मूल्य का अंदाजा लगाया जा सकता हैं। इस फेस्टिवल में शराब,बियर के साथ साथ मंासाहार की भी बू आने लगी हैं यहा तक की कोल्ड ड्रिंक्स के स्थान पर शराब और बियर का गिलास हाथ थामें युवाओं का समूह समारोह में दिखाई दे जाता हैं। क्या इस प्रकार खुले में शराब की बोतल लेकर घूमना और शराब पीना हमारी संस्कृति में हैं ? समारोह में आने वाले बच्चों को हम क्या शिक्षा देगे ? फेस्टिवल मेें विद्यार्थी साहित्य तलाशने आये विद्यार्थियों की भी अपनी हीं व्यथा हैं नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर फेस्टिवल कुछ विद्याथियोेें से बताया कि यहंा पुस्तके महंगी होने के कारण वे अपनी पंसदीदा बुक्स नहीं खरीद पा रहें है क्योंकि फेस्टिवल में विक्रय के लिये लायी गयी पुस्तके महंगे प्रकाशकों की हैं।
अतिथि देवों भवः सही हैं लेकिन अतिथियों का आदर सत्कार अपनी संस्कृति के अनुसार हीं करना चाहिये । समारोह में आने वाले मेहमानों के लिये शराब,बियर का खुले आम प्रयोग किया जाना हमारे भारतीय सभ्यता और संस्कृति के खिलाफ हैं। डिग्गी पेलैस में हीं एक ही छत के नीचे शराब, बियर, मंासाहारी व्यंजन से लेकर अन्य खाद्य सामग्री पिज्जा,कोल्ड ड्रिक्स इत्यादी परोसे जाते हैं, वहंा हम अपने बच्चों को कैसे बचा सकते हैं। समारोह में एक ही स्थान पर खाद्य सामग्री और शराब, बियर बेचा जा रहा हैं क्या ये सही है ? 18 साल से कम उम्र के स्कूल के विर्द्यािर्थयों के सामने शराब, हुक्का और बियर की परोसगारी करना क्या सही हैं ? हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड हो रहा है ।
यहंा तक की समारोह के उद्घाटन अवसर पर राष्ट्रगान का ही रूप बदल दिया। मुख्यमंत्री वसुधराराजे और नोबल पुरस्कार विजेता वीएसपाल नॉय की उपस्थिति में समारोह के उद्घाटन के अवसर पर गाया जाने वाला राष्ट्रगान भी पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंग दिया गया नियमों के अनुसार राष्ट्रगान “जन गण मन अधिनाय जय हैं……….” 52 सेंकड में गाया जाता हैं इसे लेकिन लिटरेचर फेस्टिवल में राष्ट्रगीत के लिये निर्धारित समय सीमा को भूलाकर इसे वोकल वास्ता ग्रूप द्वारा 96 सेंकड में गाया गया जो एक तरह से राष्ट्रीय अपमान हैं।
राष्ट्रीय गौरव अपमान अधिनियम 1971 की धारा 3 के अनुसार राष्ट्रगान को तय समय में नहीं गाना, राष्ट्रगान की सुर एंव धुन में बदलाव करना और राष्ट्रगान गायन के दौरान बैठे रहना राष्ट्रीय अपराध की श्रेणी में आता हैं। इस मामले पर ज्ञानप्रकाश कामरा ने आयोजको के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाने की बात कहीं थी गुरूवार को मधुसूदन सिंह ने संजोय रॉय, नोबल पुरस्कार विजेता वीएसपाल नॉय सहित अन्य को पक्षकार बनाते हुए मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट कोर्ट में इस्तगासा दायर किया हैं ।
इसके अलावा जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हिन्दी सेशन के दौरान भी अंग्रेजी में वार्तालाप करते हुए देखना सहन नहीं होता। हमारी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के हिन्दी भाषा के सेशन में भी स्थान नहीं हैं बडे अफसोस की बात है। विदेशी साहित्यकारों को क्या कहे उन्हे हिन्दी नहीं आती लेकिन जावेद अख्तर, प्रसून जोशी सहित अन्य भारतीय साहित्कारों द्वारा हिन्दी की अवहेलना कि जाती हैं तब दुख होता है। लेकिन जब खुद का सिक्का हीं खोटा हो तो दूसरों को क्या दोष दे सकते हैं। फेस्टिवल के एक सेशन में हिन्दी भाषा पर जावेद अख्तर ने कहंा “समझ में आने पर हिन्दी और समझ मे नहीं आने पर ऊर्दू”। जब हमारे अपने लोगांे द्वारा ऐसा वक्तव्य दिया जाता हैं तो विदेशी साहित्यकारों से हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं क्योकि उन्हे हिन्दी लिखना, पढना नहीं आता।
इन सबके बीच राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेश पंत जैसे लोग भी है जो यह कहते हैं हिन्दी लिखना मेरा फर्ज है हिन्दी में लिखकर में कोई अहसान नहीं करता बचपन से हिन्दी भाषा में लिखते, बोलते और सुनते आ रहे हैं। पंत ने हिन्दी की तुलना धोबी के कुत्ते से करते हुए कहंा कि शुक्ल जी के युग की हिन्दी, राष्ट्रभाषा जैसी कई बातों में उलझकर रह गयी हैं। इन सबके बीच जिन्होने कुछ लेखक ऐसे भी हैं जिन्होने अपने वक्तव का प्रारम्भ ही अपने राज्य की भाषा से किया उनमें शर्मिला सेन, विक्रम सिंह, जैसे कुछ लेखको के नाम शामिल है।
सात सालो से लगातार चलता आ रहा लिटरेचर फेस्टिवल अपना मूल लक्ष्य खोता जा रहा हैं। जब आयोजन के आचरण ही संस्कार विहीन हैं तो अन्य से क्या अपेक्षा की जा सकती हैं किसी भी समाज, संस्कृति का मूल्यंाकन उसके द्वारा प्रयोग किये गये आदतों द्वारा किया जाता है जब आयोजकों द्वारा ही इस प्रकार की गलती की जाती है तो उस आयोजन से क्या अपेक्षा कर सकते हैं।
संक्षेप में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल जयपुर का ही नहीं विश्व स्तर फेस्टिवल है इस समारोह में देशी विदेशी लेखकों के साथ साथ विख्यात फिल्मी कलाकारों से रूबरू होने का मौका मिलता हैं इसके साथ हीं विभिन्न देशों के विभिन्न भाषाओं के साहित्य के बारे में जानने का मौका मिलता हैं। लेकिन समय मे बदलाव के साथ इस फेस्टिवल में कुछ बुराईयंा गयी हैं जो फायदे के स्थान पर हानी पहंुचाने लगती है ऐसी बुराईयोें उन्हे निकालने की आवश्यक्ता हैं।
लेखिका और पत्रकार -रेणु शर्मा

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