मोहम्मद साहब का परिवार खुद आतंक का शिकार रहा

एस.पी.मित्तल
एस.पी.मित्तल

अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक व सीरिया आदि मुस्लिम देशों में इन दिनों लगातार आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं। आतंकी हमलों में लाखों मुसलमान मारे जा रहे हैं, जब कभी अमरीका, भारत और अन्य गैर मुस्लिम राष्ट्रों में आतंकवादी वारदातें होती हैं तो मुसलमानों को ही संदेह की निगाह से देखा जाता है। आईएसआईएस, अलकायदा, तालिबान, लश्कर आदि ऐसे अनेक आतंकी संगठन हैं। जो जेहाद के नाम मानवता की हत्या कर रहे हैं। इससे पैगम्बर मोहम्मद साहब को मानने वालों को भी पीड़ा हो रही है। यह पीड़ा इसलिए भी हो रही है कि पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कभी भी लड़ाई-झगड़े की शिक्षा नहीं दी,उन्होंने तो मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम दिया। इसी वजह से पैगम्बर मोहम्मद साहब के परिवार को भी आतंक का शिकार होना पड़ा। अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के प्रमुख खादिम और मुस्लिम विद्वान सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ‘जियारत-ए-ख्वाजाÓ के 10 जनवरी 2015 अंक में मुस्लिम इतिहास की महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है। इसमें बताया गया है कि सन् 680ई० में यजीद बादशाह और उसकी आतंकी फौज ने पैगम्बर मोहम्मद साहब के परिवार के 72 सदस्यों को इराक के करबला में धोखे से बुलाया और इन सभी सदस्यों जिनमें औरतें और छह महीने तक के बच्चे शामिल थे को सरेआम कत्ल कर दिया गया। मोहम्मद साहब के परिवार के सदस्यों के सिर काट कर इराक से सीरिया के बादशाह के पास भेजे गए। लाशों पर घोड़े दौड़ा कर बेइज्जत किया गया, आतंकी यजीद और उसकी फौज का जुल्म यहीं नहीं रुका, बल्कि मक्का और मदीना में दस हजार लोगों का कत्लेआम करने के बाद काबे शरीफ में आग लगा दी। मोहम्मद साहब की मस्जिद में घोड़े, ऊंट व खच्चर आदि जानवर बंधे गए। यजीद के शासन में मस्जिद में नमाज तक नहीं हुई। सन् 683ई० में यजीद के मरने के बाद मरवान बादशाह बना। यह मरवान वो बादशाह था, जिसे मोहम्मद साहब ने उसके पिता के साथ मदीने में तड़ीपार किया था। इस दौरान भी जुल्म जारी रहे। इसके बाद मरवान का बेटा वलीद राजा बना। वलीद के सिपाहसालार हज्जाज बिन यूसुफ ने 692ई० में मक्का-मदीना, इराक और अरब में एक लाख मुलसमानों का कत्ले आम किया। ये वे लोग थे जो मोहम्मद साहब द्वारा दी गई शिक्षा का पालन करते थे।
गनी गुर्देजी ने मुस्लिम पुस्तकों का हवाला देते हुए लिखा है कि मक्के के खलीफा अब्दुल्ला बिन जुबेर को खाना-ए-काबा के अंदर ही कत्ल कर दिया गया। वलीद बादशाह के शासन में ही सन् 712 ई० में मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध के राजा दाहरसेन पर हमला किया। गुर्देजी ने अपने लेख में लिखा है कि आतंकवादियों ने अपनी हरकतों से मोहम्मद साहब को बदनाम कर रखा है। ऐसे आतंकवादियों का हमारे नबी के सूफी इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। उन्होंने लिखा है कि मुस्लिम विद्वानों, सुफियों, मौलवियों आदि को दुनिया के समक्ष यह बताना चाहिए कि इस्लाम का आतंकवाद से कोई वास्ता नहीं है। मोहम्मद साहब का इस्लाम तो मोहब्बत प्यार अमन और भाईचारे का पैगाम देता है। इसी भावना के अनुरूप ख्वाजा साहब की दरगाह में मोहम्मद साहब के दामाद हजरत अली की याद में योमे अली का आयोजन किया जाता था। ख्वाजा साहब भी उनकी ही औलाद में से थे। ख्वाजा साहब हिन्दुस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के तमाम सुफियों के सरदार हैं। इन मुल्कों के 98 प्रतिशत मुसलमान ख्वाजा साहब की बरकत से कन्वर्ट हुए हैं। गुर्देजी ने लिखा की योमे अली के आयोजन में सभी धर्मों के लोगों की भागीदारी होती थी। यह आयोजन 1980 में मोलाई कमेटी द्वारा शुरू किया गया, जो 2012 तक जारी रहा। इसके साथ ही सिंधी समुदाय के चेटीचंड के जुलूस के निकलने पर दरगाह के बाहर स्वागत भी किया जाता है। ख्वाजा साहब की दरगाह के खादिम सूफी हैं और अपने देश में अमन चैन की दुआ दरगाह में करते हैं। गुर्देजी ने अपने लेख में लिखा है कि उनका मकसद दुनिया को यह बताना है कि आतंकवाद से इस्लाम का कोई सरोकार नहीं है। जब आतंकवाद को इस्लाम के साथ जोड़ा जाता है, तब उन लोगों को पीड़ा होती है, जो पैगम्बर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का अमल करते हैं। जब खुद मोहम्मद साहब का परिवार आतंक का शिकार हुआ तो उनकी शिक्षाओं पर अमल करने वाले आतंकी नहीं हो सकते। आलोचकों को इस्लाम और आतंकवाद को अलग-अलग नजरिए से देखना चाहिए।
(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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