क्या गद्दारों के हाथों मरने के लिए फौज में भर्ती हों, शहीद राय के बच्चे

एस.पी.मित्तल
एस.पी.मित्तल

जब कोई सैनिक अपने देश की हिफाजत करते हुए शहीद होता है तो यह उसके और उसके परिवार के लिए गर्व की बात होती है, इसलिए शहीद के परिवार के बच्चे एक बार फिर यह संकल्प लेते हैं कि वे देश की सुरक्षा के लिए सेना में भर्ती हो। लेकिन यदि सेना का जवान अपने ही देश के गद्दारों के हाथों मारा जाए और फिर उसके बच्चे अपने पिता के शव के सामने सेना में जाने का संकल्प ले तो उन लोगों को शर्म आनी चाहिए, जो देश का शासन संभाले हुए हैं। भारतीय सेना के कर्नल एम.एन.राय गत 27 जनवरी को उस समय मारे गए जब वे अपने ही देश के कश्मीर प्रांत में गद्दारों के साथ लड़ रहे थे। 29 जनवरी को जब दिल्ली में शहीद कर्नल राय का अंतिम संस्कार हुआ तो राय की दोनों बेटियों अल्का व रिचा तथा पुत्र आदित्य ने शव को सैल्यूट मारा और संकल्प लिया कि वे भी फौज में भर्ती होकर अपने पिता की तरह देश के दुश्मनों से मुकाबला करेंगे। मीडिया ने बच्चों की इस खबर को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया, लेकिन खबर प्रकाशित करना एक बात है और अपने पिता के शव पर हाथ रखकर संकल्प लेना आसान नहीं है। इसका दर्द शहीद कर्नल राय की विधवा और उनके बच्चे ही महसूस कर सकते हैं। सवाल शहीद के परिवार के दर्द का भी नहीं है। सवाल यह है कि आखिर कर्नल राय किन लोगों के हाथों मारे गए? क्या पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल आदि की सीमा पर भारत का कोई युद्ध हो रहा था। जब देश की सीमा पर युद्ध होता है तो भारत का जवान अपने घर से ही सिर पर कफन बांधकर निकलता है। घरवालों को भी इस बात का पता नहीं होता कि उनका बेटा, पुत्र, पति वापस आएगा या नहीं। परिवार के सदस्य भी गर्व महसूस करते हैं, लेकिन कर्नल राय तो कोई युद्ध लडऩे नहीं गए थे, कर्नल राय तो कश्मीर में अपने ही देश के लागों की हिफाजत के लिए तैनात हुए थे। यह पहला अवसर नहीं है जब कश्मीर में भारतीय फौज का सैनिक मौत के घाट उतारा गया है। कश्मीर में आखिर कौन लोग है जो इतने ताकतवर है कि भारतीय फौज के कर्नल को मौत के घाट उतार रहे हैं? केन्द्र में जिस पार्टी की सरकार होती है, उसके नेता हर जवान की मौत पर कहते हैं कि पाकिस्तान से आए आतंकवादी हमारे जवानों को मार रहे हैं। किसी भी सरकार के लिए इससे शर्मनाक बात नहीं हो सकती कि पड़ौसी देश का आतंकी हमारे प्रांत में घुस आए और फौज के कर्नल को मौत के घाट उतार दे। असल में कश्मीर में आतंकी नहीं देश के गद्दार फौज के जवानों पर हमला कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी जब लोकसभा चुनाव का प्रचार कर रहे थे, तो बार-बार भारतीय सैनिकों की मौत का मुद्दा उठाकर कांग्रेस की सरकार को कमजोर बता रहे थे। जिस अंदाज में मोदी ने अपनी बात कही उससे देशवासियों को लगा कि पीएम बनने पर मोदी कश्मीर के गद्दारों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करेंगे और तब हमारी फौज का कोई सैनिक नहीं मरेगा। लेकिन कर्नल राय की शाहादत बताती है कि कश्मीर में कांग्रेस शासन की तरह मोदी के शासन में भी गद्दार भारी पड़ रहे है। मोदी यह बताए कि क्या कर्नल राय के बच्चों को फौज में भर्ती होकर देश के गद्दारों से लडऩे के लिए जाना चाहिए? देश में गद्दारों से तो उस राज्य की पुलिस को ही लडऩा चाहिए। यदि सेना का जवान गद्दारों से लड़ेगा तो देश की सुरक्षा कौन करेगा? कर्नल राय की शाहादत का मामला कश्मीर में बन रही भाजपा और पीडीपी की संयुक्त सरकार से भी जुड़ा हुआ है। यह वही पीडीपी है जो खुलेआम कह रही है कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत को पाकिस्तान से वार्ता करनी चाहिए तथा केन्द्र सरकार ने कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों को जो विशेष अधिकार दे रखे हैं, उसे तत्काल समाप्त किया जाए। इतना ही नहीं भाजपा से कहा जा रहा है कि वह धारा 370 हटाने वाली मांग को खत्म कर दे। पीडीपी की इन शर्तों को मानने के बाद क्या नरेन्द्र मोदी कश्मीर में भारतीय सेना के जवानों की हिफाजत कर पाएंगे? कश्मीर में सरकार बनाना जरूरी नहीं है, जरूरी यह है कि हमारी सेना के जवान गद्दारों के हाथों न मरे। देशवासियों को अभी भी उस नरेन्द्र मोदी से उम्मीदे हैं जो सरदार वल्लभ भाई पटेल और स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों पर चलने का दावा करते हैं। यदि केन्द्र में पूर्ण बहुमत के बाद भी नरेन्द्र मोदी कश्मीर में गद्दारों के खिलाफ कार्यवाही नहीं कर पाते तो फिर और किसी से अपेक्षा भी नहीं है।

(एस.पी.मित्तल)(spmittal.blogspot.in)

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