मोदी जी, गरीब मरीजों के अच्छे दिन कब आएंगे?

ashok mittalहमने सुना है कि “अच्छे दिन आने वाले हैं”, ये जानकार अत्यंत ख़ुशी हुई।  इसी के साथ हमें अपनी चिंता भी हुई कि हमारे अच्छे दिन कब आएंगे?

कुछ समय पहले ही राज्य में 1800 विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी की ख़बरें अखबारों की सुर्ख़ियों में थी। दूसरी ओर ये ख़बरें भी थी कि कई m.s. , m.d. डिग्री धारी स्पेस्यलिस्ट डॉक्टर गावों में बरसों से पड़े पड़े अपनी दक्षता भूल जनरल डॉक्टर जैसे हो गए हैं।

अस्पतालों में डॉक्टरों की कितनी कमी है – हमें घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है. कभी कभी तो नंबर आते आते हम इतना परेशान हो जाते हैं कि सारा गुस्सा डाक्टर पर ही उतार देते हैं. कोई कोई तो अपना आपा ही खो देते हैं और डाक्टर पर लापरवाही, बदसलूकी का आरोप लगा कर उसे उलटा सुल्टा कह देते हैं या फिर उस पर एक आधा.…… . . . लगा भी देते हैं!

सबसे पहले तो मरीज़ को हॉस्पिटल तक पहुँचाने में दिक्कत। पहुँच गए तो …… …….

हॉस्पिटल के गेट से इमर्जेन्सी कक्ष में सीरियस रोगी को ले जाओ तो स्ट्रेचर ढूँढना पड़ता है, किस्मत से मिल गया तो उस पर गद्दी, चादर, तकिया नदारद। वो भी कोई बात नहीं, स्ट्रेचर की जंग खाई शीट मरीज की पीठ को कहीं का नहीं छोड़ती।

ऊपर से खुद ही उसके ढीले पहियों से लड़ते भिड़ते और खचड़ खचड़ करती आवाज के साथ उसे घसीट कर ले जाओ। इतने में यदि मरीज़ को कुछ हो जाये तो फिर हम क्या करें? हमारी पीड़ा किसे सुनाएँ? उस लाचारी और मज़बूरी पर हमें पहले तो खुद पर रोना और फिर जो भी सामने हो उसी पर गुस्सा आ जाता है.…

अब चाहे वहां डॉक्टर, नर्स, स्टाफ हों या अस्पताल के खिड़की, दरवाजे, शीशे, औजार, उपकरण हों – उन सब जीव निर्जीव चीजों पर भावुकता में कुछ अनचाहा कुछ बुरा हो जाता है। बाद में हमें लगता भी है की डाक्टरों को अपमानित करना, अस्पताल की सम्पती नष्ट करना, उपकरणों को तोड़ना – इन सब से हमारा मरीज़ तो लौट नहीं सकता। नुकसान के बाद हमें आत्म ग्लानि भी होती है। अहिंसा का सन्देश जिस बापू ने दिया और अंग्रेजों से जिसने हमें आज़ादी दिलाई उसकी भी रोते रोते बहुत याद आती है. उससे पूछते हैं (मन में) “बापू 67 साल बाद भी हम गरीबों की ये हालत क्यूँ है! क्या आप देख रहे हैं? अपने उस उस चश्मे से? क्या यही है आपके सपनों का भारत? इसी लिए स्वतंत्रता दिलाई थी हमें?”

स्टाफ की कमी, दवा की कमी, संवेदनशीलता की कमी, सरकारी सोच की कमी, नेताओं और अधिकारीयों की बनाई योजनाओ की कमियां – हर जगह कमी या कमियां। अधिकता है तो सिर्फ हम गरीबों की और हमारी गरीबी की, हमारी मजबूरी की।

मोदी जी, हम कहाँ जाएँ?

हमारे पास पैसा नहीं, वाहन नहीं, चिकित्सा-बीमा नहीं, शिफारिश नहीं, बीपीएल कार्ड नहीं, बोलने को शब्द नहीं, हमारी मूक वेदनाओं को समझने की किसी को फुर्सत नहीं। हमारी आवाज़ आप तक पहुँचाने वाले नहीं।

जब खाने पीने, कपड़े, पहनने, रहने के ही साधन नहीं तो प्राइवेट में इलाज़ कराने की तो हम सोच भी कैसे सकते हैं?

काश हमारे गांव को न सही हमारे इलाज़ को ही आप गोद ले लेते। या एक की जगह दो दो गांव गोद लेने का आर्डर निकाल देते।शायद हमारे गाँव की भी लॉटरी निकल जाती। गांव में छोटी मोटी डिस्पेंसरी खुल जाती, डॉक्टर आ जाता, सड़क बन जाती। हर छोटी बीमारी के लिए इतनी दूर नहीं आना पड़ता।

मोदी जी,

आप से बहुत उम्मीद है। कुछ तो करिये । क्या हम गरीब मरीज कहाँ इलाज़ कराएं ?

हमारे अच्छे दिन कब आएंगे? …………….

डा. अशोक मित्तल, अजमेर  drashokmittal.blogpost.com

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