नग्न समाज का पुतला

muzaffar ali
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अश्लील क्या है। लिबास किस हद तक नीचे गिरे। शरीर कितना दिखने परअश्लील माना जाए। मर्यादा कहां जाकर शुरु होगी। समाज में सभ्यता की यह गाईडलाईन क्या खत्म हो गई है। क्या अब नग्रता किसी को शर्मसार नहीं करती। स्वंय नारी को भी। जिसका शरीर बाजारों में बुतों के रुप में नग्र खड़ा है। उतार घसेटी के एक दुकान में आदमकद नारी शरीर का पुतला पूर्ण नग्र दिखा। बिल्कुल जीवंत। जैसे कोई युवा नारी बिलकुल नग्र खडी़ हो। जिसके वस्त्र उस समाज ने छीन लिए जो आधुनिक बना सभ्य होने का ढोंग कर रहा है। डिग्गी बाजार उतार घसेटी शहर का वो इलाका है जहां घनी आबादी है। इस रास्ते सुबह शाम महिलाओं बच्चों की आवाजाही लगी रहती है। वहां कपड़ों की दुकान में सरेआम पूर्ण नग्र आदमकद नारी का पुतला आते जाते लोगों की नजरों में दिनभर रहा होगा। क्या समाज इतना खुला हो गया कि ना तो दुकानदार को कोई फर्क पड़ा और ना ही किसी महिला की नजरें नीची हुईं या बच्चों के लिए किसी महिला का शरीर का हर भाग अब छुपा हुआ नहीं रह गया है। पी के फिल्म के पोस्टर ने कुछ हलचल मचाई थी। नंगे आमिर खान के फोटो को इसी समाज ने फिर स्वीकार कर लिया। शहर के हर कोने में रेडीमेड कपड़ों की तमाम दुकानों में छोटे बड़े फाईबर प्लास्टिक से बने हुबहु इंसान की चमड़ी के रंग के आदमकद पुतले खड़े दुकान की शोभा बढ़ा रहें हैं। मदार गेट हो या पुरानी मंडी । केसरगंज हो या डिग्गी बाजार का कपड़ा बाजार। हर दूसरी दुकान में पुतले सजे हैं। इनमें अधिकतर लेडीज़ पुतले हैं जिन्हे साड़ी से या रेडीमेड कपड़ों से सजाकर रखा गया है ताकि ग्राहक आकर्षित हों। कपड़े साड़ी या ज्वैलरी की दुकान लगाने वालों के लिए इस तरह के पुतले रखना शायद आवश्यक हो गया है। ग्राहकों को दुकान में लाने का यह मार्किटिंग फंडा कारगर है। नारी शरीर को पुतलों के रुप में बाजार में लाना नए जमाने की देन है। इसमें किसी को आपत्ति नहीं है। कल को क्या पुतलों की जगह वाकई नारी ले लेगी ? महानगरों में बड़े शोरुमों में मोडल खड़ी होने ही लगीं हैं। लेकिन शुक्र है कपड़ों में हैं। लगता है नग्र होने की शुरुआत पुतलों से हुई है। आज किसी को पुतलों पर कोई आपत्ति नहीं तो कल असल नारी पर क्या होगी। मोडलिंग के नाम पर यह भी हो जाएगा। नारी के मान सम्मान को लेकर सैकड़ों नारी संगठन हैं जो सड़कों पर नारे लगाकर ही अपना फर्ज पूरा कर लेते हैं। हकीकत इसके उलट है। ना तो नारी का कहीं सम्मान हो सका है और ना ही इस्तेमाल कहीं रुका है। अब तो नारी का शरीर सड़क पर आ गया है। पुतलों के रुप में। धन्य है आधुनिकता के नाम पर नंगा होता समाज।

-मुजफ्फर अली
पत्रकार

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