हंसते हुए जीये जिन्दगी

मुस्कराहट क्यों ?

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

परमात्मा ने मानव को हंसी-मुस्कराहट के रूप में एक अमूल्य उपहार प्रदान किया है | हंसमुख व्यक्ति जीवन में कभी निराश नहीं होते, वे कभी निराशा की बात नहीं करते। ह्रदय की प्रसन्नता उनके मन में उमंग उत्पन्न करती है और बुध्दि को निर्मल बनाती है। हंसते और मुस्कराते हुए जीवन जीना सुखमय जीवन जीने की पहली शर्त है | मुस्कराते हुए लोग निश्चिन्त होकर बड़े-बड़े संकटों को पार कर आगे बढ़ जाते हैं। यदि कोई आप से नाराज है तो मुस्कराकर उसके मन को जीता जा सकता है। हंसना-मुस्काना सभी के लिए सब से सरल है, क्योंकि हंसने के लिए न तो किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है और नही किसी नियम की । बस, अपने आस पास नजरें घुमाओ और तैयार हो जाओ हंसने के लिए । जीवन हंसी के सागर से भरपूर है, बस जरूरत है तो उस में डूब कर तैरने की । मुस्कराहट बिखेरें तो दुःख का आभास और अनुभूति कम हो जाती है | हंसने में कंजूसी स्वास्थ्य के लिए निश्चित रूप से हानि कारक है। स्वयं हंसिए और दूसरों को भी हंसाये ,क्यों कि हंसना ही है सुखी जीवन का राज ।

मुस्कराना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है-
मुस्कराना हम सब का जन्म सिद्ध अधिकार है, जो हमको हमारे जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाता है | नवजात शिशु अपने जन्म के एक सप्ताह बाद ही मुस्काना शुरू कर देता है एवं एक महिने का होने तक तो खिलखिला कर मुस्कुराता भी है | शोधकर्ताओं ने बताया है कि नवजात बालक दिन भर में लगभग 200 बार मुस्कराता है वहीं एक युवा और प्रोढ़ ओसतन दिन मे मात्र मुश्किल से सिर्फ 12 बार ही मुस्करातें हैं, शायद बालक मुस्कराते हुए अपने से बड़ों को देख कर सोचता है कि ये मुस्कराते क्यों नहीं हैं |हो सकता है कि आप को अपने बाल्य काल में मुस्करानें का वातावरण किन्हीं कारणों से प्राप्त नहीं हुआ हो तब भी आप किसी भी उम्र में हंसना-मुस्कराना शुरू कर सकते हैं |

हँसना क्यों जरुरी है-
आज कल के भाग दौड़ और तनावपूर्ण जीवन में लोग हँसना ही भूल गए हैं। तभी तो अधिकतर लोगों के माथे पर भ्रकुटी तनी हुई और चेहरा गंभीर व ग़मगीन नज़र आता है। विशेष रूप से व्यावासिक जीवन में जो जितना सफल होता है, वह उतना ही ज्यादा गंभीरता का मुखोटा ओढे रहता है। इसीलिए आजकल भारत जैसे विकासशील देश में भी हृदयरोग,मधुमेह व उच्च रक्तचाप जैसी भयंकर बीमारियाँ पनपने लगी हैं ।बेन जानसन के अनुसार हास्य जीवन में ‘टॉनिक’की भाँति है। जिस प्रकार‘टॉनिक ’से शरीर में स्फूर्ति आती है वह रक्त संचार होता है उसी प्रकार हास्य से जीवन में स्फूर्ति आती है एवं रक्त-संचार होता है, विषाद की कालिमा छँट कर जीवन स्फूर्तिमय तथा आनंददायी हो उठता है ।
ठहाका लगाकर हँसना एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे न सिर्फ़ शरीर का प्रत्येक अंग आनंद विभोर होकर कम्पन करने लगता है, बल्कि दिमाग भी कुछ देर के लिए सभी अवांछित विचारों से शून्य हो जाता है। इसीलिए हंसने को एक अच्छा मैडिटेशन भी माना गया है।
क्या मुस्कराना और दूसरों को मुस्कराहट देना एकपरोपकारिक कार्य है ?
दोस्तों याद रक्खें, हंसने के लिए स्वाभाविक होना अति आवश्यक है ,साथ ही जिंदगी के प्रति अपना रवैया बदलना भी जरुरी है। जीवन की छोटी छोटी बातों से, घटनाओं से, कुछ न कुछ हास्य निकल आता है, जिसे फ़ौरन पकड़ लेना चाहिए और उसे हँसी में तब्दील कर देना चाहिए। ऐसा करके न सिर्फ आप हंस सकते हैं बल्कि दूसरों को भी हंसा सकते हैं। याद रखिये जो लोग हँसते हैं, वो अपना तनाव तों हटाते ही हैं, लेकिन जो लोग दूसरों को हंसाते हैं वो दूसरों का तनाव भी दूर करते हैं। यानी हँसाना एक परोपकारिक कार्य है। तो क्या आप यह यह पवित्र परोपकार को नही करना चाहेंगे ? मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे कई मानसिक रोग हैं जिनका इलाज केवल हास्य द्वारा ही किया जा सकता है।

हास्य संगठनों की उपयोगिता-
आज सारे विश्व में हास्य योग संगठन बनते जा रहे हैं जिन्हें लाफ्टर कलब कहा जाता हैं, जहाँ लाफ्टर मैडिटेशन कराया जाता है।। जो प्रातःकाल खुले मैदानों अथवा बगीचों में नियमित एकत्रित होकर सामूहिक रूप से कृत्रिम ढंग से हँसते हैं, हँसाते हैं। हम प्रायः अनुभव करते हैं कि साधारण परिस्थितियों में कभी-कभी सामने वाले को हँसते हुए देख अकारण ही हँसी स्वतः आने लगती हैं। इसका छुआछुत के रोग की भांति आपस में फैलाव अथवा प्रसार होने लगता है जिससे समूह में हँसी का सहज माहौल हो जाता हैं। आजकल समूह में भी हँसने की भी विभिन्न विधियाँ मानव ने विकसित कर ली है।

साहित्य में हास्य-
साहित्य में वर्णित नौ रसों में एक रस ‘हास्य’ है । प्राचीन संस्कृत नाटकों में हास्य का पूरा ध्यान रखा जाता था । प्रत्येक नाटक के बीच-बीच में हास्य-प्रसंग अवश्य होते थे । पाश्चात्य साहित्य में हास्य की काफी रोचक सामग्री मिलती है। हिंदी के माध्यकालीन युग में तुलसी, बिहारी, कबीर ,जैसे महान् कवियों की रचनाओं में भी हास्य व्यंग्य का समावेश है । पुराने जमाने में दरबार में विदूषक होते थे—हँसना-हँसाना, चुटकुले ,कहानी चलती ही रहती थी। अकबर-वीरबल विक्रमादित्य,राजा भोज के दरबार के लतीफे व किस्से आज भी बड़े चाव से पढ़े व सुनाये जाते हैं। आज भी फिल्मों में बीच-बीच में हल्के-फुल्के हास्य दृश्य अवश्य दिये जाते हैं । ताकि दर्शक फिल्मों की गंभीरता भूलकर दो घड़ी तनाव मुक्त हो लें ।
होली-दीवाली पर जनता खुलकर रंग-व्यंग्य करती थी । शादी-ब्याहों में गाली-गलौज, एक-दूसरे पर फब्ती कसना नाच-गानों के माध्यम से चलता रहता था । ऐसे अनेक नेग जैसे कंगना-खिलावाना, मटकैने तुड़वाना डंडी खिलवाना व दूल्हे से शादी के पश्चात छंद सुनना जो केवल निर्मल-आनंद व विशुद्ध हास्य के लिए ही किये जाते थे । महात्मा गांधी के लिए ये प्रसिद्ध है कि वे खूब खुल कर हँसते थे और स्वयं को लक्ष्य करके हँसा करते थे ।

मुस्कराते वक्त्त बरती जाने वाली आवश्यक सावधानियाँ-
कभी-कभी किसी को देखकर, उसकी असफलता पर, उसकी बात सुनकर अथवा व्यंगात्मक भाषा में हँसते हुए उनका उपहास या मजाक करना क्रूर हास्य होता है। जिससे वैर और द्वेष बढ़ने की संभावना होने से कषाय का कारण बनता है। दूसरों की हँसी उड़ाना या ‘उपहास’करना बहुत ही निम्न श्रेणी का हास्य है। इससे भलाई के बदले बुराई ही हाथ आती है। इससे जिसकी हँसी उड़ाई जाती है कई बार बुरा मानकर लड़ाई तक ठान बैठता है। द्रौपदी की दुर्योधन पर हँसी गयी ‘हँसी ’ने ही महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध करवा दिया था ।
डा.जे.के. गर्ग

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