आम आदमी पार्टी में जो कुछ हुया यधपि राजनैतिक रूप से बहुत ज्यादा अप्रत्याक्षित नही है, तदापि एक बड़ा सवाल सामने खड़ा होता है कि जो पार्टी राजनीती के पुनर्वास का विश्वाश लेकर जन्मी हो वह भी अंततोगत्वा सत्ता पाने के बाद उन्ही उपकरणों को अपना रही है जो लोकतंत्र के चेहरे को लहूलुहान करते रहे हैं। तब लगता है या तो ये सत्ता का मूल चरित्र है कि जिस रथ पर चढ़कर आओ सबसे पहले उसमे जुते उन घोड़ो का वध करो जो रास्ते पर अपनी टापो के निशाँ छोड़ते आये हैं, या फिर इतिहास की परवाह किये वगैर ऐसा वर्तमान गढ़ो कि भविष्य अपने स्वम् के आगमन से डरने लगे। जबकि सब जानते है समय किसी का इन्तजार नही करता।
राजनितिक के मूल स्वाभाव यथा अवसरवादिता, धन लोलुपता,आपराधिक-वृति, में विशेष अंतर ना होते हुए तमाम राष्ट्रिय-दल कुछ विशेष बुराइयो के लिए इस देश में पहचाने गए। कोई भावनात्मक शोषण का प्रतीक , कोई धार्मिक उन्माद प्रतिमान तो कोई जातियो के समीकरण का पर्याय । ऐसे में आक्रोश और आंदोलन की कोख से जन्मी आम आदमी पार्टी अलग सी नजर आई। बाद में क्या कुछ हुया, हम सब जानते हैं।
कुछ का मानना है कि भारतीय जनमानस का आंकलन गलत हो गया,कुछ कहते हैं विश्वाश बिखर गया ,समर्थको का मत है जो कुछ हुया वह अपरिपक्कव राजनीती का परिणाम है। सतही रूप से उपरोक्त तीनो स्थितियां सही सी प्रतीत होती हैं लेकिन यह अधूरा सच है। आंकलन, विश्वाशघात, अपरिपक्कव राजनीती ये सब हमारी सुविधा को सूट करते अलंकार है। जबकि पूरा सच है कि हम स्वार्थ और अहंकार से युक्त मूल्य रहित समाज गढ़ रहे है। हम अपने बच्चों को बस्तों के बोझ से लाद रहे हैं,संवेदना पर पैकेज पाने के दबाब हावी हैं ।सुचनाओ के जंगल में भटकती पूरी पीड़ी अपने आदर्श पूंजी में खोज रही हो ,पके हुए बालो की उम्र डाई के रंगो से सम्मान के मुह पर कालिख पोत रही है। बुढापा एकाकी जीवन का शाप भोग रहा है। ऐसे में कहाँ से आयेगे आदर्श नायक या विश्वशनीय राजनेता। बस यहाँ जो भी आएंगे वे आवरण में अपनी महत्वकांक्षाओं के पोषक भर होंगे । क्योकि राजनीति के सारे रास्ते समाज से होकर गुजरते हैं।
नही, नही! ये निराशावाद नही है। बल्कि, चेतावनी है ।हमे राजनैतिक सुचिता की कामना छोड़कर सामाजिक मूल्यों के निर्माण पर ध्यान देना होगा, पीढ़ियों को जानकारियो के जंगल में ज्ञान की मशाल थमानी होगी। कुल मिलाकर गांधी के हिन्द स्वराज को एक बार फिर जीवन में अपनाना पड़ेगा तब स्वतः ही हमे नेहरू,पटेल मौलाना ,अम्बेडकर के आधुनिक संस्करण मिल जाएंगे।
रास बिहारी गौड़