दुष्कर्म की शिकार युवती के लिए आसान नहीं है बच्चे का जन्म

उदयपुर का माँ भगवती विकास संस्था बना हमदर्द

एस.पी.मित्तल
एस.पी.मित्तल

18 सप्ताह के बाद गर्भपात नहीं हो सकता और तब दुष्कर्म की शिaकार युवती को अपनी कोख में पल रहे बच्चे को जन्म देना ही पड़ता है। जो युवती दुष्कर्म की शिकार हुई है, वहीं अपने दर्द को बता सकती है। जिस बच्चे की चाह नहीं हो, उसे जन्म देना पड़े तो यह मानसिक दृष्टि से बेहद ही कष्टप्रद होता है। शमर्नाक बात तो यह है कि देश में आए दिन ऐसी घटनाएं हो रही है। दरिंदों को उस युवती की पीड़ा का कोई अहसास नहीं है। दुष्कर्म की घटना के बाद सामाजिक संस्थाओं से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पीडि़ता के प्रति सहानुभूति जताते है। सरकार भी यह जिम्मा ले लेती है कि युवती की नौ माह तक देखभाल की जाएगी और सुरक्षित प्रसव करवाया जाएगा। लेकिन ऐसे कोई उपाय नहीं होते जिससे ऐसी दरिंदगी को रोका जाए। 19 अप्रैल को पोस्ट हुए मेरे एक ब्लॉग में गुजरात के भावनगर जिले में दुष्कर्म की शिकार हुई युवती की पीड़ा को लिखा गया था। इस पोस्ट को पढऩे के बाद उदयपुर (राजस्थान) के भुवाणा गांव में माँ भगवती विकास संस्थान चला रहे योग गुरु धीरेन्द्र जी अग्रवाल ने मुझसे सम्पर्क किया। अग्रवाल ने बताया कि देशभर में जहां भी ऐसी घटनाएं होती है, तो वे पीडि़त युवती के परिजन से सम्पर्क कर युवती को अपने संस्थान में ले आते हैं और फिर पूरी गोपनीयता के साथ सुरक्षित प्रसव करवाते हैं। हरियाणा में 12 साल की बच्ची और गुजरात के भावनगर की विवाहिता के साथ जो दुष्कर्म हुआ है, उसमें भी उनका प्रयास है कि दोनों युवतियों को संस्थान में लाकर प्रसव करवाया जाए। योग गुरु अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने दुष्कर्म की शिकार युवतियों की पीड़ा को बहुत नजदीक से जाना है, इसलिए उनके मन में बहुत दर्द है जो युवती अनचाहे बच्चे को जन्म देती है, तो उसकी पीड़ा का अहसास करना बहुत ही दु:खद होता है। समाज का वातावरण जिस तेजी से बदल रहा है, उसमें अब दुष्कर्म के अलावा भी कई ऐसे कारण है, जिनमें युवतियों को बच्चे को जन्म देना पड़ता है। इसके विपरीत कुछ मामलों में परिवार के सदस्य युवती पर गर्भपात का दबाव बनाते है, जबकि ऐसी युवती बच्चे को जन्म देना चाहती है। जब गर्भधारण के बाद पति की मृत्यु हो जाती है तो सामाजिक कारणों से परिजन चाहते हैं कि गर्भपात हो जाए ताकि युवती का पुनर्विवाह किया जा सके। ऐसी स्थिति में बच्चे का जन्म युवती के लिए बेहद कष्टदायक होता है। गर्भधारण के बाद पति तलाक दे देता है, तब भी युवती को बच्चे को जन्म देने में जो मानसिक पीड़ा होती है, उसकी कल्पना करना भी कठिन है। ऐसे सब मामलों में उनके संस्थान में सुरक्षित प्रसव करवाया जाता है। अग्रवाल ने बताया कि प्रत्येक युवती की पहचान को गुप्त रखा जाता है, ताकि वह बच्चे को जन्म देने के बाद समाज में नए सिरे से अपना जीवन यापन कर सके जो बच्चा जन्म लेता है, उसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी संस्थान की होती है। बच्चा थोड़ा बड़ा होने पर उसे वैधानिक तरीके से किसी दम्पत्ति को गोद भी दे दिया जाता है। अग्रवाल ने कहा कि दुष्कर्म की शिकार महिला के सुरक्षित प्रसव के लिए सरकार अपने इंतजाम करती है, लेकिन ऐसा कोई केन्द्र नहीं है, जहां इस तरह की महिलाओं के प्रसव करवाए जा सके। सरकार को चाहिए कि समाज की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं की मदद से ऐसे केन्द्र वैधानिक तरीके से खोले जाए। जिस तरह से समाज ें बुराइयां आ रही है, उससे तो ऐसे कदम उठाए जाने ही चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि योग गुरु धीरेन्द्र जी अग्रवाल समाज में एक सराहनीय कार्य कर रहे हैं। विवाह से पहले और दुष्कर्म के बाद जब कोई युवती गर्भधारण कर लेतेी है तो उसे समाज में बुरी निगाह से देखा जाता है। ऐसी युवतियों को अपने संस्थान में सम्मान के साथ रखने के लिए अग्रवाल वाकई बधाई के पात्र हैं। सरकार को चाहिए कि अग्रवाल के संस्थान को मजबूती दें, ताकि उनका काम और आसान हो सके। कायदे से तो किसी युवती को इस दौर से गुजरना ही नहीं चाहिए, लेकिन समाज में आ रही बुराइयों की वजह से अब हमें ऐसे उपाय भी करने ही होंगे।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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