गजेन्द्र न किसान था न गरीब

राजस्थान सरकार को बचाने की कोशिश
gajendraपीएम नरेन्द्र मोदी ने 23 अप्रैल को संसद में कहा कि 22 अप्रैल को जिस किसान ने दिल्ली में खुदकुशी की वह बेहद ही पीड़ा की बात है। देशभर के लोगों ने जो पीड़ा जताई उसमें मैं स्वयं को भी शामिल करता हूं। पीएम ने जब यह बात कही तब वे संवेदनशील नजर आ रहे थे। पीएम के चेहरे से साफ झलक रहा था कि वे किसान गजेन्द्र सिंह की खुदकुशी से बेहद दु:खी है। जहां पीएम मोदी देश की आम भावना के साथ जुड़ रहे हैं, वहीं राजस्थान सरकार को बचाने के लिए यह प्रचारित किया जा रहा है कि मृतक गजेन्द्र सिंह न तो किसान था और न ही गरीब। यहां तक कि दौसा जिला की बसवा तहसील के एडीएम कैलाश चंद शर्मा ने कहा कि गजेन्द्र सिंह के परिवार के पास तीस बीघा जमीन है और पटवारी की रिपोर्ट के अनुसार ओलावृष्टि और बेमौसम की बरसात से मात्र 22 प्रतिशत फसल खराब हुई है।
शर्मा यहीं नहीं रुके उन्होंने यह भी कहा कि केन्द्र सरकार ने हाल ही में जो फसल खराब के नियम घोषित किए हैं उनमें 35 प्रतिशत फसल खराब होने पर ही मुआवजा मिलेगा, यानी मृतक गजेन्द्र सिंह सरकारी मुआवजे का अधिकारी भी नहीं था। सरकार के अधिकार का यह बयान तब सामने आया, जब गजेन्द्र सिंह के शव का उनके गांव में अंतिम संस्कार किया जा रहा था। यानी राजस्थान की भाजपा सरकार मृतक के प्रति संवेदना जताने के बजाए यह कह रही है कि गजेन्द्र सिंह न तो किसान था और न ही गरीब। सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि गजेन्द्र सिंह अपने गांव में खेती का काम नहीं करता था बल्कि जयपुर में राजस्थानी साफों का कारोबार करता था। पीएम मोदी ने तो अपनी संवेदना मृतक के प्रति लोकसभा में दिखा दी, लेकिन अभी तक भी राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की मृतक गजेन्द्र सिंह के प्रति संवेदना की जानकारी नहीं मिली है। राजे 23 अप्रैल को भी जयपुर नहीं पहुंची है। राजे इन दिनों कोलकाता में उद्योगपतियों से संवाद कर रही है। यह राजे का मीडिया मैनेजमेंट भी है कि राजे की अपने प्रदेश में गैर मौजूदगी को लेकर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में कोई खबर नहीं आ रही है। जिन परिस्थितियों में गजेन्द्र सिंह ने दिल्ली में पेड़ से लटक कर खुदकुशी की। क्या उसमें राजस्थान की सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है? हालांकि मीडिया का सारा गुस्सा आम आदमी पार्टी और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के प्रति है। मीडिया पूरी तरह केजरीवाल को ही दोषी मान रहा है, क्योंकि गजेन्द्र सिंह ने केजरीवाल की रैली में ही खुदकुशी की थी। केजरीवाल का भी मीडिया के मालिकों के साथ शुरू से ही विवाद रहा है। पिछले दिनों जब दिल्ली के श्रमजीवी पत्रकार मजीठिया आयोग की सिफारिशों को लागू करने को लेकर केजरीवाल से मिले थे, तब केजरीवाल ने दो टूक शब्दों में मीडिया घरानों के मालिकों की आलोचना की थी। केजरीवाल के बयान से श्रमजीवी पत्रकार तो खुश हुए, लेकिन मीडिया के मालिक नाराज हुए। गजेन्द्र सिंह की खुदकुशी के लिए केजरीवाल और उसकी पार्टी के लोग दोषी हैं तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन मीडिया को राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अभी तक गैरमौजूदगी पर भी बहस करनी चाहिए।

(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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