जो सोया हुआ है उसे तो जगाया जा सकता है लेकिन जो जागे जागे सो रहा है उसे कैसे जगाया जा है।
ईसवी सन 712 में जब पहली बार अरब भारत में दाखिल हुए तो उनके आक्रमण को सबसे पहले सिंध के निवासियों को ही क्षेलना पड़ा। तब से लेकर अब तक सिंधी अपने आत्म सम्मान और अधिकारों के प्रति जो विस्मृत हुए तो जागने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। 1250 सालों की गुलामी और आजादी के बाद अंग्रेजो द्वारा कुत्सित षड्यंत्र के तहत हुए विभाजन के दर्द ने इस समाज की आत्मा तक को भी गुलाम बना दिया है।
आजादी के बाद अपने अस्तित्व को बचाने की कवायद में हम ऐसे मशगूल हो गए कि हम यह भी भूल गए कि हमें इस आजाद भारत में उतना ही हक हासिल है जितना किसी और भाषाई समूह को मिला हुआ है।
विभाजन के बाद हमें अपने अस्तित्व को बचाने का संघर्ष करना हमारी सबसे बड़ी जरूरत थी पर अब जब हम हर तरह से संपन्न हैं तब भी क्यों हमने इस आजाद भारत में एक दूसरे दर्जे के नागरिक का दर्जा स्वीकार किया हुआ है जबकि इस देश की आजादी के लिए सिंधी समाज को ही सबसे बड़ी कुरबानी देनी पड़ी थी। क्या हमने जो इतनी बड़ी कुरबानी दी इस देश के आकाओं ने क्या हमारी उस कुरबानी का सही सम्मान दिया है?
आज जब हर भाषाई समूह, अल्पसंख्यक जातियां अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग अपने प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं तो क्या हम इस बारे में कुछ सोच भी रहे हैं? क्या आप जानते हैं? सिन्धी भारत की जनसंख्या का 1% से भी कम है परन्तु भारत की अथ॔व्यवस्था में 8% से भी अधिक का योगदान करते हैं।
क्या आप जानते हैं?
केवल सिंधी ही एकमात्र ऐसा भाषाइ समूह है जिसके पास अपना प्रांत न होने के बावजूद भी बिना किसी सरकारी मदद के आज यह समाज आथिर्क रूप से स्वावलंबी है।
परंतु क्या सिंधी समाज सही मायनों में एक सशक्त समाज है?
क्या केवल आथिर्क रूप से स्वावलंबी होना ही सशक्तिकरण की पहचान है?
एक सशक्त समाज कैसा होता है?
क्या हम भारतीय गणतंत्र में एक सशक्त समाज के रूप में जाने जाते हैं?
क्या हमारी संस्कृति भाषा और लिपि संरक्षित है और विकास कर रही है?
क्या हमें वह सब हासिल है जो एक सशक्त समाज के लोगों को स्वतः उपलब्ध होता है?
क्या हमारा समाज सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है?
और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या यह सारे प्रश्न हमारे अंतर्मन में उठते भी है कि नहीं?
बस इन्हीं सब प्रश्नों के उत्तर ढूंढने और इन सब बातों के प्रति सिंधी समाज के लोगों को जागरूक करने के लिए सिंध वैलफेयर सोसाइटी का गठन हुआ है।
अपने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपने 22 महीने के अस्तित्व में हमने अब तक देश के विभिन्न शहरों में 25 कार्यशालाओं का आयोजन किया है। DIG RPF श्री राजाराम जी और दिल्ली यूनिवरसिटी के सिंधी भाषा विभाग के प्रमुख श्री रवि टेकचन्दानी जी जो हमारे प्रमुख वक्ता हैं और साथ ही साथ वे ही इस एजेंडे को लीड भी कर रहे हैं वे इन कार्यशालाओ के द्वारा सिंधी समाज के लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं। कार्यशाला का विषय सिंधी भाषा की मदद से देश की सबसे पावरफुल सरकारी संस्था भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में प्रवेश करने के लिए जागरूकता पैदा करना है।
हम अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में कितना सफल हो पाते हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा। अभी तो केवल यह महसूस किया है कि यह समाज गहरी मूर्छा में है। यह अपनी नई नई हासिल की हुई आथिर्क संपन्नता के मद में डूबा हुआ है। अभी यह समाज यह नहीं तय कर पाया है कि हमें आपस में ही एक दूसरे के ऊपर प्रभुत्व जमाना है या एकजुट होकर इस भारतीय गणतंत्र में प्रथम दर्जे के नागरिक का दर्जा हासिल करना है।
धन्यवाद
अतुल राजपाल
अध्यक्ष
सिंध वैलफेयर सोसाइटी
www.sindhwelfare.wordpress.com