रिखबचंद जैन : जिनका सच सपना जैसा है

Shri R.C Jainएक ऐसा निराला व्यक्तित्व और अच्छे भाग्य का नायक, जिन्होंने मानवीय संबंधों, भावनाओं, संवेदनाओं और सफलताओं की जो दुनिया रची, वह सबके लिये प्रेरक बनी है। ऐसे ही प्रेरक पुरुष है दिल्ली प्रवासी एवं बीकानेर निवासी देश के शीर्षस्थ औद्योगिक समूह टीटी ग्रुप के चेयरमैन श्री रिखबचंद जैन। कुुछ लोग होते हैं जिनकी ओर दुनिया उम्मीद से देखती है और कुछ ऐसे होते हैं जो दुनिया को उम्मीदें दिखाते हैं। ऐसे लोगों की जिन्दगी का हर लम्हा, हर पन्ना बहुत खास होता है क्योंकि उन्हीं से मिलते हैं एक सफल, सार्थक और समृद्ध जिन्दगी के असली सबक। ऐसी ही एक उम्मीद है श्री जैन, जिन्होंने आर्थिक जगत की एक महाशक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित कर एक नया इतिहास बनाया है। एक सफल, सक्षम एवं महान आर्थिक शक्ति के रूप में उभर कर उन्होंने न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक, राजनीतक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक दृष्टि से नई ऊंचाइयां प्राप्त की है। लगभग छह दशक से टीटी गु्रप का नेतृत्व करते हुए उन्होंने इस समूह को बीज से बरगद बनाया है। कलकता के संेट जेवियर्स काॅलेज से स्नातक करने के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ कोलकाता से मार्केटिंग और बिजनेस मैनेजमेंट में एमबीए किया। वे यूके से चार्टर्ड सेक्रेटरी का कोर्स करने के बाद इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ कंपनी सेक्रेटरीज के सदस्य बने। उन्होंने वेस्टइंडीज यूनियर्सिटी के द्वारा बिजनेस मैनेजमेंट में पीएचडी भी की है। प्रारंभ में शिक्षा के पेशे से जुड़ने के बाद उन्होंने व्यवसाय को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया और नित नये ऊंचाइयां छूते हुए सफलता के शिखरों पर आरोहण किया। अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित श्री जैन उन्नत समाज संरचना के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।
मेरे सौभाग्य है कि मुझे श्री रिखबचंदजी जैसे जैन दर्शन के विशिष्ट मर्मज्ञ, जैन समाज के स्तंभ एवं सामाजिकता के आदर्श उदाहरण का प्रेरक स्नेह और मार्गदर्शन मिला। हाल ही में करोलबाग स्थित उनके कार्यालय में उनसे लंबी चर्चा का अवसर भी प्राप्त हुआ। मेरी दृष्टि में श्री जैन का जीवन मानव मूल्यों से जुड़ी सच्चाइयों की सच्ची अभिव्यक्ति है। उन्होंने लीक से हटकर कुछ कहने का तथा लोगों की मानसिकता को झकझोरने का सघन प्रयत्न किया। वे हर व्यक्ति को कुछ सोचने, समझने एवं बदलने के लिए उत्प्रेरित करते हैं। मानवमात्र की सेवा की दृष्टि से एक नया दृष्टिकोण उन्होंने दिया है। कुछ लोग ठहरी हुई जिंदगी पसंद करते हैं। जो हो रहा है, वही ठीक है। न कोई मौलिक चिंतन, न स्वस्थ समाज की चिंता। यह जीना भी कोई जीना है? जीवन के मूल्य को न समझ पाने का यह परिणाम है। आत्मशक्ति से सर्वथा अपरिचित रह जाने की यह विडंबना है। वैचारिक क्षमता को सर्वथा अस्पृश्य छोड़ देने से हम विकास के क्रम में कितने पीछे छूट जाएँगे, कहना कठिन है। स्वस्थ चिंतन से परिवर्तन की जो बुनियाद तैयार होगी वही स्वस्थ समाज एवं लोकमंगलकारी जीवन का नव-विहान करती है। यही श्री रिखबचंदजी के जीवन का हार्द है। निश्चित ही उनसे हुई मुलाकात कुछ नया करने, कुछ मौलिक करने, सेवा का संसार रचने, सद्प्रवृत्तियों को जागृत करने एवं राष्ट्रीयता की भावना को जगाने की आधारभूमि तैयार करता है।
श्री रिखबचंदजी जैन जन्मजात उच्च संस्कारों के धनी हैं। उनकी विशेषता यह है कि वे केवल अपने परिवार के लिए ही नहीं जीते वरन् अपनी शक्ति एवं सामथ्र्य का समाज एवं राष्ट्र की सेवा में भी सोत्साह सदुपयोग करते हैं। उनका संपूर्ण जीवन सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक उत्थान के लिए समर्पित है। उन पर मां लक्ष्मी और मां सरस्वती की संयुक्त कृपा है। वे जितने बड़े उद्यमी हैं उतने ही बड़े सरस्वती पुत्र हैं। उनकी जानकारी असाधारण है। जैन दर्शन एवं इतिहास के विशिष्ट जानकार है। मैं उनकी विद्वता से जितना प्रभावित हूं उससे कहीं ज्यादा प्रभावित हूं उनकी अखण्ड सक्रियता और चिंतन के सातत्य से। वे औपचारिकता को इस प्रकार निभाते हैं कि सब कुछ अनौपचारिक हो जाता है।
श्री रिखबचंदजी जैन की अनेकानेक विशेषताओं में एक प्रमुख विशेषता यह है कि वे सदा हंसमुख रहते हैं। वे अपने गहन अनुभव एवं आध्यात्मिकता के कारण छोटी-छोटी घटना को गहराई प्रदत्त कर देते हंै। अपने आस-पास के वातावरण को ही इस विलक्षणता से अभिप्रेरित करते हैं। उनकी सहजता और सरलता में गोता लगाने से ज्ञात होता है कि वे गहरे मानवीय सरोकार से ओतप्रोत एक अल्हड़ व्यक्तित्व हैं। संसार और अपने परिवेश को देखने की उन्होंने बड़ी वेधक मानक दृष्टि विकसित कर ली है। वह जितनी संलग्न है, उतनी ही निस्संग और निर्वैयक्तिक भी। यही मानक दृष्टि उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व को समझने की कुंजी है।
श्री रिखबचंदजी के जीवन के बारे में कहा जा सकता है कि उन्होंने भीतरी शक्तियों के प्रस्फुटन को सफल एवं सार्थक जीवन की अनिवार्यता बनाया है। वे अपने जीवन के हर कोर से, हर कोण से, हर मोड़ से हमे परोपकारी, सेवार्थी, परमार्थी और साहसी बनने की सीख देते हैं। उनकी संपूर्ण जीवनगाथा कत्र्तव्यनिष्ठ, स्नेह-सहयोग, परोपकार, दयालुता, आत्मीयता, परदुःखकातरता, अहंकारशून्यता, दृढ़निश्चयी जैसे गुणों से ओतःप्रोत होने के साथ ही अपने सुधारवादी दृष्टिकोण से सदा ही सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिए प्रयत्नशील हैं। मानवमात्र के प्रति अपनत्व का भाव रखने वाले श्री रिखबचंदजी जात-पांत, ऊंच-नीच और छुआछूत के भेदभाव से सर्वथा मुक्त हैं। वे समर्पित-भाव से मानवीयता को व्यापक बनाने के कार्य में लगे हैं। यही कारण है कि आपके जीवन की दिशाएं विविध हैं। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं है, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श करती है। आपके जीवन की खिड़कियाँ समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रहती है। उनकी व्यापक सोच, सक्रियता और सेवाभावना इन्हीं खुली खिड़कियों से आती ताजी हवा के झोंकों का अहसास कराती हैं। न केवल मारवाड़ी समाज बल्कि संपूर्ण मानवता इन हवाओं को महसूस कर गौरवान्वित है।
श्री रिखबचंद जैन एक ऐसे सफल व्यावसायी, विख्यात विचारक एवं हस्ती हैं, जिन्होंनें राष्ट्रीय स्तर पर अपने व्यक्तित्व को निखारा। वे सफल अर्थशास्त्री, सफलता के प्रेरक, अनेक गतिविधियों के समवाय, राष्ट्रीय स्तर के प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं। वे भविष्य के अर्थ और व्यवसाय को गढ़ने वाले चमत्कारी पुरुष हैं। उनका चमत्कार और तेजस्वी व्यक्तित्व समय-समय पर न केवल जैन समाज के संदर्भों में बल्कि राष्ट्रीय संदर्भों मंे अपनी उपस्थिति का अहसास कराता रहा है। उनके कुछ सृजनशील संकल्प भी हैं, जिनसे उनकी स्वतंत्र पहचान राष्ट्रव्यापी स्तर पर बनी है। इस पहचान को और निखारने के लिए वे एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में सक्रिय हैं। उन्होंने एक स्वतंत्र परंपरा और विरासत को कायम किया। उनके उज्ज्वल एवं चमकपूर्ण आभावलय से हर कोई आकृष्ट होता रहा है।
विरलता एवं विलक्षणताओं के धनी श्री रिखबचंदजी अपनी अनूठी दानशीलता, सेवाभावना, आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता की उत्कठ भावना एवं संलग्नता के कारण जन-जन में लोकप्रिय हैं। वे सच्चे समाज सेवक, संवेदनशील व्यक्तित्व, उदारचेता, विनम्र एवं सादगीमय व्यक्तित्व के धनी हैं। आपके पिताजी एवं माताजी से विरासत में मिले असाधारण आध्यात्मिक संस्कारों और दानशीलता की प्रवृत्ति के बल पर आपने उल्लेखनीय समाजसेवा के उपक्रम किये हैं। अपनी प्रखर वैचारिक मेधा एवं व्यापक मानवीय सोच के कारण वे राजधानी दिल्ली के अनेक संस्थाओं के शीर्ष पदों पर आसीन हैं। हाल ही में उन्हें दिल्ली विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष रूप में मनोनीत किया गया और इस पद पर रहते हुए उन्होंने समान नागरिक संहिता, राम मंदिर, धर्मांतरण, हिन्दू राष्ट्र जैसे ज्वलंत मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र सोच की मोहर लगाई। इन दिनों वे अनिवार्य मतदान जैसे राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर प्रयासरत हैं। सचमुच महानता का चरित्र विचित्र होता है, महानता का वरण करने वाले लोग लक्ष्मी को तिनके के समान लघु मानते हैं परन्तु उसके भार के भार से झुक जाते हैं। अर्थात् लक्ष्मी की परवाह नहीं परन्तु लक्ष्मी के पास होने पर वे अधिक नम्र हो जाते हैं। समृद्धि और वैभव से संपन्न ऐसे ही महान लोगों का चित्त कमल की भांति कोमल होता है। ऐसे लोग हाथ से श्रेष्ठ त्याग, सिर से गुरुचरणों में प्रणाम, मुख से सत्यवाणी, हृदय में पवित्रता आदि विशेषताएं धारण किये होते हैं। इन लोगों की प्रकृति ही महानता के सहज गुणों से अभिमंडित होती है, उनके स्वाभाविक तेज को किसी शारीरिक, भौतिक आकार-प्रकार की अपेक्षा नहीं होती है। अपने सतत पुरुषार्थ, निस्वार्थ भाव, परोपकार की भावना और निरन्तर उत्कृष्ट कार्यों की ओर संलग्नता से ऐसे व्यक्ति महानता का वरण करते हैं। श्री रिखबचंद जैन ऐसी महानता से न केवल अपने जीवन को बल्कि अपने संपूर्ण परिवेश को महान बनाया है। ज्यों-ज्यों व्यावसायिक सफलता के शिखरों को हासिल किया वैसे-वैसे अपनी दानशीलता, उदारता एवं सौजन्यता के द्वारा समाज में उदारचेता होने का खिताब भी पाया। उनमें दृढ़संकल्प है, अनूठी इच्छाशक्ति है, अटल विश्वास है, जो समय के सिन्धु को बांध असंभव को संभव करने की क्षमता रखता है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग

सचमुच श्री रिखबचंद जैन धुन के धनी हैं, जिस काम को हाथ में लेते हैं, पूरी निष्ठा, समर्पण, लगन एवं आत्मविश्वास से करते हैं। उनमें त्रैकालिकता देखी जा सकती है और देखा जा सकता है कि वैभव में जीने वाला व्यक्ति अपनी जीवन प्रणाली को किस प्रकार साधारण बना रहा है, अनुभूति के आधार पर वर्तमान तथा भविष्य को जोड़ने की चेष्टा कर रहा है। वे जैन समाज के प्रति जितने निष्ठावान हैं, उतने ही राष्ट्रीय एवं सामाजिक कत्र्तव्यों के प्रति जागरूक हैं। उनके जीवन रहस्यों को समझते हुए उनकी विलक्षण सेवाओं और सामाजिकता को समझा जा सकता है।
आपके व्यक्तित्व में अगणित विशेषताओं का जैसा सुन्दर संगम है, वैसा बहुत कम मनुष्यों में मिल पाता है। जन्म से ही आपको पवित्र, निर्मल संस्कार, उदग्र प्रतिभा, अविचल धैर्य, सहिष्णुता और निरंतर कर्मठतापूर्ण जीवनवृत्ति और सद्गुण प्राप्त हैं। उन्हीं के फलस्वरूप आप अपने जीवन में सद्संस्कारों और जीवन मूल्यों को खूब बढ़ाया, और नई दिशाओं में भी सफलताओं के झंडे गाड़े।
(ललित गर्ग)
ए-56/ए, प्रथम तल, लाजपत नगर-2
नई दिल्ली-110024
मो. 9811051133

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