जीवन को खुशहाल बनाने के लिये तीन “C” के स्थान पर तीन “A” के नियम की पालना करें

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

अपने बच्चों के साथ ही नहीं किन्तु मित्र अथवा पड़ोसी, आम आदमी या सहकर्मी के साथ भी हमारा व्यवहार सोहार्दपूर्ण एवं स्नेहपूर्ण होना चाहिए | सोहार्दपूर्ण एवं स्नेहपूर्ण जीवन जीने के लिये निम्न विचारों पर ध्यान दें—-

COMPARISON या  तुलना  नहीं करें—–
 अक्सर हम अपने स्वजन या सहकर्मी से कहते हैं देखो फला आदमी ने तो सीमित साधनों एवं सुविधाओं के होते हुए भी इतनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली, वो आपसे अध्ययन के अन्दर कोसों आगे है | फला इंसान खेलकूद के अन्दर भी सदेव इनाम जीतता है और दूसरी तरफ आपके पास सब कुछ होते हुए भी आप कभी भी उल्लेखनीय कामयाबी हासिल नहीं पाये हो | क्या comparison करके आप अपनों का भला कर रहें हैं ? क्या आप उन्हें प्रोत्साहित कर रहें हैं ? क्या आप उनमें positivity उत्पन्न कर रहें हैं ? आपका खुद का ही जबाव होगा नहीं | विज्ञानं का नियम है कि कभी भी दो इलेक्ट्रान अक्षरक्ष समान नहीं हो सकते हैं उसी प्रकार दो इन्सान भी कभी  अक्षरक्ष रूप से समान नहीं हो सकते हैं | सच्चाई तो यही है कि  दो जनों के मध्य COMPARISON  करने से हम अपनों के अन्तर्मन में नकारात्मकता या negaativity और हिनता के बीज ही बों रहें हैं |  क्यों कि COMPARISON करने से उनके मन में हीनता की भावना उत्पन्न होती है तथा उनकी कार्य क्षमता पर विपरीत प्रभाव भी पड़ता है, जिसके परिणाम स्वरूप आपके एवं उनके  पारस्परिक सबधं ख़राब भी हो सकते हैं | निसंदेह comparison करने से भी कोई सार्थक अर्थ नहीँ निकलता है परन्तु आपकी comparison या तुलना करने की वजह से आपस में स्नेह की जगह मन मुटाव, या खीचतान पैदा होती है |
सवाल पैदा होता है कि हमें क्या करना चाहिये ? इस समस्या का समाधान है कि आपस में comparison (तुलना) करने के वनिस्पत जो जैसा उसे उसी रूप के अन्दर उसे ACCEPT या अंगीकार करें, उनमें सकारात्मकता की भावना जाग्रत करने की कोशिस करें और उन्हें सतत प्रोत्साहित करते रहें |
CRITICAL नहीं बने, मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण करने से बचें—–
कुछ लोगों को बात बात में दूसरों के कामों मे मीन मेक निकालने या उनके प्रति CRITICAL बने रहने में खुशी मिलती है या यों कहें कि मीन मेक निकालना उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है | फला आदमी ने अपनी बेटी की शादी का प्रबंध सही तरीके से नहीं किया था, उनकी कार्यशैली ही खराब है, उन्हें ऐसा करना चाहिये था या वैसा करना चाहिये था, पता नहीं वे कब सुधरेगें ? उनकी नीतियां ही दोषपूर्ण हैं
 | जरा सोचिये, मनन कीजिए कि क्या  ऐसा कर आप अपने पारस्परिक और सामाजिक रिस्तों को मजबूत एवं मधुर बना रहें हैं अथवा रिस्तों को खराब कर उनमे कटुता उत्पन्न कर द्वेषपूर्ण बना रहें हैं ? सच्चाई तो यही है कि मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण करने से परिवार में लडाई-झगड़े होते हैं, सास-बहू, पिता-पुत्र, पड़ोसी-पड़ोसी एवं दोस्तों के मध्य तकरार उत्पन्न होती है, अविश्वास पैदा होता है, नकारात्मकता पनपती है और परिवार विघटित हो जाते हैं, सम्बंधो में माधुर्य खत्म होजाता है | इतना कुछ घटने के बावजूद भी हमें यह क्यों नहीं मानते हैं कि मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण करने की हमारी आदत हमारे जीवन में जहर घोल रही है ?  दूसरों कामों में मीन मेक निकालने या छिद्रान्वेषण (Critical) करने से आपके आपसी सम्बन्धों के अन्दर सोहार्द की जगह मनमुटाव उत्पन्न होगा, मन की दूरियां बढेगी, आपके और दुसरों के अंतर्मन के अन्दर  मानसिक अशांति उत्पन्न होगी जिससे आप प्रसन्न रहने की जगह खिन्न रहेगे, आपकी पहचान समाज के भीतर मीन-मेक निकालने वाले इन्सान के रूप मे होने लगेगी जिससे लोग आपसे बात-चीत की चाह रक्खने के वनिस्पत आपसे कतराएंगे | अब निर्णय आप को ही करना है कि आपको किस प्रकार की जिन्दगी जीनी है—खुशनुमा-खुशहाल अथवा तनावपूर्ण ?
दूसरों को सकारात्मक तरगें भेजे और सोहार्दपूर्ण रिस्ते बनायें——-
हमें दूसरों के विचारों या मान्यताओं अथवा सोच का सम्मान करना होगा, वें जैसे हैं उसी रूप के अन्दर दिल से अंगीकार करना होगा, इसके लिये यह कतई जरूरी नहीं है कि हम अपनी सोच का त्याग कर दें किन्तु हम अपनी सोच के साथ साथ दूसरों की सोच  का भी सम्मान करना या स्वीकार करना होगा |
हमें अपने कार्यों के जरिये दूसरों को सकारात्मक (positive ) तरगें भेजनी चाहिए, हमारे द्वारा भेजी गई सकारात्मक (positive ) तरगें/ विचार उनकी नकारात्मक मनोव्रति में कमी करने और उनकी सकारात्मकता में व्रद्धी करने में सहायक होगी , और आपके आपसी सम्बन्धों को मजबूत बनायेगी एवं आपसी गलतफहमी या कटुता को मिटायेगी भी | कभी भी किसी की दुर्बलताओं/कमजोरियों/बुरी आदतों के बारे ना तो कोई बात करें ना सोचें, इसके विपरीत उनकी अच्छी आदतों, अच्छे गुण, अच्छे विचारों की ह्रदय से सराहना करें, उन्हें उत्साहित करें , उनके पास आपकी सकारात्मक भावनाओं को भेजें |
अत: मीन मेक एवं छिद्रान्वेषण  के स्थान पर दूसरों के कार्यों, उपलब्धियों का सम्मान कर उनके होसलें को बढायें,  उनको दिल से सहमति प्रदान करें , ऐसा करने से निच्चय ही उनके दिल में आपके लिए भी सकारात्मक भावना उत्पन्न होगी और आप अच्छे सहयोगी बनेगें |
CRITISICIM अथवा आलोचना नहीं करें——–
आलोचना करने की प्रवर्ती ही पारस्परिक सोहार्दपूर्ण को खत्म करने में कुलहाडी का काम करती है | आलोचनाओं के जरिये हम दूसरों को नकारात्मक तरगें भेजते हैं | अत: उचित तो यही होगा कि कभी भी किसी की दुर्बलताओं, कमजोरियों , बुरी आदतों के बारे ना तो कोई बात करें ना ही सोचें, इसके विपरीत उनकी अच्छी आदतों, अच्छे गुण, अच्छे विचारों की ह्रदय से सराहना करें, उन्हें उत्साहित करें एवं उनके पास आपकी सकारात्मक भावनाओं को भेजें |  आपके द्वारा भेजी गई सकारात्मक (positive ) तरगें/ विचार उनकी नकारात्मक मनोव्रति में कमी करने और उनकी सकारात्मकता में व्रद्धी करने में सहायक होगी | यही सकारात्मकता आपके आपसी संबधों को मजबूत बनायेगें जिससे आपके एवं दूसरों के जीवन की वाटिका में खुशीयों  के सुगन्धित फूलों की महक ही उत्पन्न होगी |
अत: आलोचना करने के बजाय यथा संभव उनके अच्छे कामों एवं उपलब्धियों को Appreciate करें , उनकी सराहना करें |
समायोजन, समझोता एवं एडजस्टमेंट करने की प्रवर्ती को अपनाये:—
जीवन में हमे समयानुसार दूसरों के विचारों-सोच-मनोभावों-सम्वेदनाओं- एवं संस्कारों के साथ समायोजन एडजस्टमेंट करना चाहियें यह तभी संभव है जब “ जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर लें “, यह संभव नहीं है कि दूसरा व्यक्ति आपके सभी विचारों से सहमति रक्खे क्योंकि उनके अपने विचार हो सकते हैं जो उनकी नजरों में सही  हों,  अत: आपको उनके विचारों का सम्मान करते हुए है वे जैसे हैं उसी रूप में उन्हें स्वीकार करना होगा |  आपकी यही acceptance या स्वीक्रति की प्रवर्ती आपको मानसिक रूप से स्थिर और मजबूत बनायेगी | कभी भी किसी से कोइ अपेक्षा नहीं रक्खें क्योँ कि अगर आपकी अपेक्षा पुरी नहीं हुई तो आप मानसिक रूप से अशांत हो जायगें और आपका मन व्यथित एवं दुखी हो जायगा |
अत: अपने जीवन को सुखमय और सार्थक बनाने हेतु जीवन में तीन “C”Comparison (तुलना),Critical (छिद्रान्वेषण) एवं Criticism (आलोचना ) के स्थान पर तीन “A” Acceptance (स्वीक्रति),Approval(अंगीगार, सहमति) एवं Appreciation(सराहना)के नियम की पालना करें |
डा. जे.के. गर्ग

 

सन्दर्भ—–विकीपीडिया, हिन्दी नेस्ट.कॉम,मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न संतों एवं महापुरूषों के प्रव्रचन आदि आदि
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