सोशल मीडिया पर इमोशनल जंग

teerth goraniदेश में कहीं भी आरक्षण को ले कर आंदोलन होता है , उसे लेकर सोशल मीडिया पर इमोशनल जंग शुरू हो जाती है . आरक्षण के समर्थन और विरोध का हर शब्द व तर्क नयी लकीर खींच जाता है . गुर्जर आरक्षण को लेकर भी यही हो रहा है . आरक्षण को लेकर अब तर्क नहीं जिद चल रही है . आरक्षण के विरोधी भी तर्क की बजाय समानता , योग्यता आदि भावनात्मक मगर थोथी बातें कर रहे हैं . उनका स्वर भी धीमा है क्योंकि मंडल आंदोलन के समय आत्मदाह जैसे अतिवादी कदम उठाने वाले ही अब आरक्षण के पक्ष में लड़ रहे हैं . आरक्षण के विरोध में अब सिर्फ ब्राह्मण , बनिये व राजपूत बचे हैं उनमें भी कुछ वर्ग आरक्षण की मांग कर रहे हैं आर्थिक आधार का तर्क देकर . सच तो ये है कि आरक्षण पहले दिन से ही देश की जरूरत नहीं बल्कि तत्कालीन राजनीति की मजबूरी था .अगर दलितों का भला ही करना था तो यूएसए के डाइवर्सिटी या अन्य भी रास्ते थे . अम्बेडकर भी जानते थे कि  आरक्षण से ज्यादा जरूरी सवर्णों की  मानसिकता बदलना है . इसीलिये आरक्षण को निश्चित समय तक रखा था लेकिन वोटों की राजनीति ने न सिर्फ इसे स्थायी बना दिया बल्कि इसे जातिवाद का जरिया बना दिया . अब इस समस्या का समाधान यही है कि आरक्षण को हर हाल में दस साल में पूरा किया जाये , उसके बाद अगले दस साल अन्य जातियों को शामिल किया लेकिन उससे पहले समीक्षा की जाये कि क्या आरक्षण सही रास्ता है ?
तीर्थदास गोरानी, वरिष्ठ पत्रकार

error: Content is protected !!