भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने कल कहा कि पार्टी को अपने तीन प्रमुख चुनावी वादों-अयोध्या में राम मंदिर निर्माण,समान नागरिक संहिता लागू करने तथा धारा 370 को हटाने के लिए लोकसभा में दो तिहाई बहुमत की जरूरत है। उन्होंने एक पत्रकार के सवाल पर उपेक्षा वाले अंदाज में जवाब दिया कि, उसे ये मालूम होना चाहिए कि इसके लिए लोकसभा में 370 सीटें चाहिए। सवाल ये है कि क्या शाह और भाजपा के अन्य नेताओं को यह बात पहले नहीं मालूम थी? फिर क्यों लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी और खुद उन्होंने मिशन 272 प्लस यानि पूर्ण बहुमत का ही नारा दिया था। मांगते लोगों से 370 सीटें या उस समय कहते कि 272 सीटें मिली तो हम आराम से राज ही कर सकेंगे। 370 दोगे,तो ही ये तीनों वादे पूरे कर सकेंगे। तब मतदाता भी सोचते कि भाजपा का क्या करना है। अब क्यों बहाना बना रहे हैं।
असल में भाजपा ने इन तीनों मुद्दों का इस्तेमाल हमेशा वोट हथियाने के लिए ही किया है। तभी तो वह लोकसभा मे दो सीटों से 282 तक पहुंच पाई है। जब तक विपक्ष में रही,थोड़े-थोड़े समय बाद कोई न कोई राष्ट्रीय स्तर का आयोजन कर इन मुद्दों को जिन्दा रखा। कभी रथयात्राओं के नाम पर,कभी शिला पूजन के नाम पर और कभी संत सम्मेलनों के नाम पर। उसने पार्टी के कुछ नेताओं को भी इस बात की छूट दिए रखी कि वह समय-समय पर इन मुद्दों पर बयान देकर इन्हें ताजा बनाए रखे। उसकी यह रणनीति अभी भी बरकरार है। लेकिन जैसे ही भाजपा सत्ता में आती है,इन मुद्दों से कन्नी काटने लगती है। पहले जब अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एडीए की सरकार बनी,तो भाजपा कहती थी कि गठबंधन सरकार ऐसे किसी मुद्दे को हल नहीं कर सकती। गठबंधन की अपनी मजबूरी होती है और सहयोगी दलों से संतुलन साधकर सरकार चलानी पड़ती है। लेकिन जब भी भाजपा को बहुमत मिलेगा,वह अपने इन तीनों वादों को जरूर पूरा करेगी। लेकिन अब जब उसे पूर्ण बहुमत मिल गया है,तो उसका नया बहाना है कि इसके लिए उसे 370 सीटें यानि दो तिहाई बहुमत चाहिए।
दरअसल,भाजपा को भी पता है कि इन मुद्दों का समाधान निकालना उसके बस की बात नहीं है। लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश में यह राजनीतिक रूप से शायद संभव भी नहीं है। लेकिन जब उसे वोटों की फसल काटनी होती है,उसे मंदिर,समान नागरिक संहिता और धारा 370 याद आ जाती है और जब मतलब निकल जाता है,तो उसके सुर बदल जाते हैं। राजनीति मे ं कथना और करनी इसे ही कहते हैं और विपक्ष में रहकर बोलना और सत्ता पाकर बोलने का अंतर भी यही होता है।
– ओम माथुर
वरिष्ठ पत्रकार