द्वितीय अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल-20015 सितम्बर में

Ras Bihari Gaur (Coordinator)कवि सम्मेलन की लोकप्रियता और लाफ्टर की चकाचौंध के बीच “अजमेर साहित्यिक उत्सव “की प्रासंगिकता को लेकर कुछ सवाल अक्सर मेरे सामने आते रहे हैं। कुछ सवालो को इनमे मेरी महत्वकांक्षा नजर आई, कुछ को आर्थिक उपादान दिखे तो कुछ इसे संपर्क साधने का जरिया मानते नजर आये।
अकेले में मैंने अपने आप से पूछा, तो पाया कि वाचिक परम्परा के समस्त उपकरणों यथा मंच, टीवी, पत्र-पत्रिकाओ के माध्यम से यथेष्ठ महत्व मिल चूका है, जहाँ तक आर्थिक प्राप्ति का प्रश्न है तो अजमेर सरीखे मधमवर्गीय नगर की क्षमता और कार्यक्रम के आकार में ये किसी भी स्थिति में सम्भव नहीं है और फिर संपर्क साधने के दूसरे बेहतर मंच समाज में उपलब्ध हैं। तो फिर क्या कारण है कि अपने निजी संबधो के सहारे, अपनी विधा से इतर, अपने श्रेष्ठतम समय ऊर्जा और अर्थ की कीमत पर ये सब कुछ संपादित करता हूँ? इसका तात्कालिक जबाब मुझे सचमुच नही पता ,लेकिन अपने आप को जबाब तो देना ही है।
परिवार, परिवेश और परम्परा ने कहीं भीतर सुचितापूर्ण संवेदना का रोपण किया था ,जो कालांतर में जैसा तैसा भी पौधा बन कवि और कविता के रूप में पहचाना गया । जिसके परिणामस्वरूप पैसा, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा एक साथ मिली। यह सब उस समाज ने दिया जिसे मैंने जब जब जो दिया ,मसलन कविता सुनाई या आजीविका पाई ,तो उसकी कीमत वसूली। इधर बाजार के आतंक से मेरी पूरी पीढ़ी साहित्य और संवेदना की मौत पर विलाप करती दिख रही थी। रविद्रनाथ ,शरदचंद्र से लेकर मुक्तिबो, निराला धूमिल तक भुलाये जा रहे थे ।बाजार ने अपने अनुकूल शोभा डे, चेतन भगत,अमीश त्रिपाठी सरीखे नए नायक गढ़ लिए थे जो साहित्य समारोह के माध्यम से स्थापित हो चले थे । ठीक उस समय मै अपनी पूरी पीढ़ी के साथ या तो 24×7 के टीवी चैनल के सामने बैठा था, या अपनी संतति के लिए मोठे पैकज की प्रतीक्षा में था,या फिर कला, विचार, या कविता की दूकान सजाकर गली- गली घूम रहा था। एकाएक मुझे लगा ये अपने समय से विश्वाशघात कर रहा हूँ । शब्द, विचार, विमर्श के उपादानों को कोसने से नही, पोसने से काम चलेगा। परिणाम क्या होंगे ,नही पता ! लेकिन आग बुझाती चिड़िया की मानिंद अपनी शुक्ष्म सी सकारात्मकता तो दर्ज की जानी चाहिए। बस फिर क्या था सामान सोच के सायः कुछ कदम आगे बढ़ गए, जिन्हें अभी बहुत दूर जाना है। उम्मीद का कारवाँ कभी नाउम्मीद नही होता, बस इसी विस्वाश के भरोसे लिटरेचर फेस्टिवल का एक पायदान ओर” द्वितीय अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल-20015″ सितम्बर में आपके सम्मुख होगा।
बहरहाल, इससे ज्यादा कुछ भी कारण नही है कि एक अच्छे कार्य के निमित्त बनने का हमे सुअवसर मिला।
फिलहाल इतना ही।
रास बिहारी गौड़

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