घृणा से घृणा ही पनपती है.,प्यार नही

अनंत भटनागर
अनंत भटनागर
एक मित्र ने याकूब को फांसी का समर्थन करते हुए मानवाधिकार पर प्रश्न उठाया है।अपना मत साझा कर रहा हूँ।
मानवाधिकार की दृष्टि से बात करें तो फांसी की सजा एक अमानवीय व्यवस्था है।
जान के बदले जान लेना उच्च मानवीय मूल्य नही है।जिस जान को हम दे नही सकते तो उसे छीनने का भी हक़ भी सरकार को नही है।दुनिया के 153 देश फाँसी की सजा को अपने कानून से हटा चुके हैं।
सभी शोधों में यह पाया गया है कि अपराधो की दर का फांसी की सजा से कोई सम्बन्ध नही है। इसलिए यह तर्क कि फांसी की सजा हटा दी गयी तो अपराध व हत्या बढ़ेंगे बेमानी हैं।
बहरहाल हमारे यहाँ फांसी की सजा का कानून है।अतः सुप्रीम कोर्ट अगर यह सजा देता है तो उसे कानून सम्मत माना जाना चाहिए। लेकिन क्षमादान का भी कानूनी हक़ है।उसका भी पूरा उपयोग होना चाहिए।
अब जब यह तथ्य सामने आया है कि उसके सहयोग से ही इस साज़िश का पर्दाफाश हुआ है तो कानूनन उसके प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।सुरक्षा एजेंसीज कई बार अपराधियों से surrendor इस शर्ट पर करवाती है कि उनके साथ लचीली सजा दी जायेगी। रॉ के तत्कालीन प्रमुख रमन साहब ने लेख में स्पष्ट किया है कि उसन जांच एजेंसी की बहुत मदद की।
याकूब ने इस भरोसे पर ही सहयोग किया होगा कि उसका साथ मानवीय व्यव्हार होगा।अब उसे फांसी देने से भविष्य में भारतीय सुरक्षा एजेंसि पर विश्वास कम होगा। और अपराधी सहयोग नही करेंगे।
अगर इस बात की गारंटी हो कि उसे फांसी देने से भविष्य में आतंकवाद समाप्त हो जायेगा तो ज़रूर दे दीजिये।किन्तु ऐसा होगा नही।घृणा से घृणा ही पनपती है.,प्यार नही।
हमारी संस्कृति में क्षमा की बहुत महिमा रही है।अतःउसके मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलना संस्कृति के उच्च मूल्यों के प्रति सम्मान ही प्रदर्शित करेगा ।
अनंत भटनागर

1 thought on “घृणा से घृणा ही पनपती है.,प्यार नही”

  1. Bhatnagerji jaise PUCL walo se isi opinion ki aasha ki ja sakti hi. Aapke kahe anusar to kisi bhi doshi insan ko saza nahi deni chahiye kyoki future me crime to kabhi band nahi ho salta. Because of ur thought n thinking I widrow my son’s addmition from ur school.

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