हाय री खूनी परम्परा

praveen kumarकुछ दिनों पहले अखबार में बड़ी संख्या में व्हेल पारम्परिक के शिकार की सचित्र खबर पढ़ी। चित्र देखकर मन बड़ा विचलित हुआ। किनारे का पूरा पानी खून से लाल हो रखा था। ढेरों व्हेल मछलियां किनारे पर पड़ी हुई थीं। लोग वहां जश्न मना रहे थे।
मुझे यह समझ नहीं आया कि लोग किस बात का जश्न मना रहे थे? क्या वे इस बात को लेकर खुश थे कि वे इन्सान हैं, अपनी परम्परा के नाम व्हेल तो क्या किसी भी प्राणी के प्राण ले सकते हैं। उन्हें कौन रोकने वाला है। उन्होंने बिना किसी कारण सिर्फ परम्परा के नाम इतनी व्हेलों की हत्या कर दी। यदि किसी इन्सान की हत्या कोई अन्य प्राणी या जानवर कर देता है तो उसे आदमखोर करार कर दिया जाता है। सारे इन्सान उसे किसी भी तरीके से जान से मारने पर उतारु हो जाते हैं और उसका खात्मा करके ही दम लेते हैं।
लेकिन वही इन्सान किसी भी अन्य प्राणी के कभी भी प्राण लेने के लिए स्वतंत्र होता है, कभी परम्परा के नाम पर, कभी बलि के नाम पर। किसने दी उसे किसी के भी प्राण लेने की स्वतंत्रता? क्या भगवान ने इन्सान को पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान प्राणी इसीलिए बनाया है कि वह जो चाहे, जब चाहे कर सकता है?
प्रवीन कुमार

error: Content is protected !!