सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच का अर्थ:——-

डा. जे. के. गर्ग
डा. जे. के. गर्ग
विपरीत परिस्थिती में भी अपने मन की शांति एवं धीरज को बनाये रखने की क्षमता को ही सकारात्मक सोच कहते हैं | मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में सकारात्मक सोच वह है जो वास्तविकता में दूसरों के व्यवहारों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली सम्भावित ग़लत सोच को मन में आने ही नहीं देती है तथा नकारात्मक सोच और व्यर्थ ताने बानों से भी स्वयं को दूर रखती है।
आईये करें सकारात्मकता और नकारात्मक सोच की पहचान—–
इन्सान के भीतर दो प्रकार की धारणाएँ चलती है यथा नकारात्मक एवं सकारात्मक | जहाँ नकारात्मक सोच जीवन को निराशा एवं विनाश के गर्त में गिराती है वहीं सकारात्मक सोच निराशा-असफलता को भी आशा एवं सफलता में परिवर्तित करने की शक्ति रखती है | जीवन में जब कभी हमें अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है तो उस वक्त निराशा होना स्वाभाविक है लेकिन अगर हम उस निराशा के गहरे अंधेरे में ही डूबे रहेंगे तो आशा की दूसरी किरणों को पहचान भी नहीं पाएंगे । अभिमान, अहंकार, इर्ष्या-डाह, चिंता और तनाव आदि नकारात्मक सोच के परिणाम हैं, वहीं दूसरी तरफ स्नेह-प्रेम,शांति-करुणा, सोहार्द-भाईचारा और आनन्द सकारात्मक सोच के प्रसाद ही हैं | एक गिलास में दूध था, गिलास आधा भरा हुआ था, इस गिलास को कई स्त्री-पुरुषों को दिखाया गया, अधिकांश लोगों ने कहा अरे यह गिलास तो आधा खाली है वहीं कुछ ही बोले कि “ कोन कहता है कि गिलास खाली है किन्तु सच्चाई तो यह है कि यह गिलास तो आधा भरा हुआ है “ | यही सोच है सच्ची सकारात्मकता | सकारत्मक सोच हमें बताती है कि हम सबके साथ मिलजुल कर रहें | सकारात्मक सोच के माध्यम से हम अपने जीवन की 95 % से अधिक समस्याओं का निदान निकाल सकते हैं | स्वस्थ, प्रसन्न, मधुर भाषी और सबका लाड़ला-दुलारा बनने का अचूक मन्त्र है ‘ सकारत्मक सोच” |
जहाँ सकारात्मक सोच इन्सान को मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम बनाती है वहीं नकारात्मक सोच आदमी को रावण बना डालती है | योगासनों से आदमी अपनी ऊँचाई छह से साढे छह फीट से ज्यादा नहीं बढ़ा सकता है वहीं अपनी सोच को सकारात्मक बनाकर खुद को हिमालय से भी ज्यादा उठा सकता है | जिस दिन आप नकारात्मक चीजों में भी सकारात्मक पक्ष तलाशना सीख जाएंगे उस दिन कोई भी मुश्किल हमारा और आपका मनोबल गिराने में सफल नहीं हो पाएगी।
नकारात्मक सोच को रखिये अपने से दूर:
निम्न उपायों से हम नकारात्मक सोच तथा नकारात्मकता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं:—
छोटी मोटी बातों से परेशान होने और व्यथित रहने से कोई फायदा नहीं होगा। मुस्कराने एवं हंसने की आदत डालिये | दिल खोल कर ज़ोर जोर से हंसिए |
खुद से नकारात्मक बातें यथा “आई कान्ट डू इट’ या “आई वोन्ट डू इट’ मत कहिए क्योंकि ऐसा कहने से हम पहले ही नकारात्मक हो जाते हैं। इसके स्थान पर जब कभी भी आप खुद से बातें करें तो हमेशा पॉजिटिव अंदाज में कीजिए। अपने मन के अन्दर उठने वाले प्रश्नों को भी पॉजिटिव अंदाज में फ्रेम कीजिए। ऐसा करने से आप आधी जंग तो खुद-ब-खुद आसानी से ही जीत लेगें।
अपनी छोटी से छोटी खुशी और सफलता को भी सेलिब्रेट करने की कोशिश करिए। ऐसा करने से आपकी सोच सदेव सकारात्मक रहेगी इसके साथ साथ आपको खुशी भी होगी।
काम कितना ही मुश्किल हो उसे सफलता पूर्वक सम्पन्न करने के लिए खुद को तैयार कीजिए। खुद को चुनौती दीजिए, ऐसा करने से आपकी सोच सकारात्मक रहेगी और आपको काम करने में मजा भी आएगा।
जब भी अवसर मिले तो दूसरों की मदद जरुर कीजिए।
नए दोस्त या नए लोगों से जुड़ने की कोशिश करिए।
सकारात्मक सोच का महत्त्व:—-

राष्ट्र पिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि “इंसान वैसा ही बनता जाता है जैसी वह सोच रखता है । आप जिंदगी में सफल तभी हो सकते हैं जब आप सफलता हासिल करने के प्रति अपनी सोच को सकारात्मक रखेंगे। अगर अपनी खामियां ढूंढ-ढूंढकर खुद को ही हीन (निसाह्य-कमजोर) ही आंकते रहेंगे तो आप कभी सफलता की ओर कदम नहीं बढ़ा सकेंगे “।

आप पर ही निर्भर करते हैं आपके जीवन में प्राप्त होने वाले परिणाम
अगर आपने अपना ध्यान सकारात्मकता पर केंद्रित कर लिया तब आप के मन में न केवल अच्छे विचार आएंगे, बल्कि आप स्वयं के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ हो पाएंगे। एक बार आपके मन में सकारात्मकता के विचार आना आरंभ हो गए तब आप अपने आपमें स्वयं ही परिवर्तन देखेंगे और यह परिवर्तन आपके साथियों को भी नजर आने लगेगा। कोई भी कंपनी ऐसा कर्मचारी नहीं रखना चाहती, जिसकी नकारात्मक विचारधारा हो। इसलिए ‘थिंक पॉजीटिव…एक्ट पॉजीटिव’।
डा.जे.के. गर्ग
सन्दर्भ— मेरी डायरी के पन्ने, वेबदुनिया, गोविन्द तिवारी, जागरण.कॉम, विकीपीडिया, तुषार राज रस्तोगी एवं विभिन्न संतो के प्रवर्चन आदि |
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