कंकड़ पत्थर की ईमारत और बेपरवाह नेता ?

sohanpal singh
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“कंकड़ पत्थर जोड़ के मस्जिद लाई बनाय ता उपर मुल्ला बाँग दे क्या बहिरा हुआ खुदाय ! ”

उपरोक्त शब्द हम नहीं कह रहे हैं यह तो सैंकड़ो वर्ष पहले एक महान निर्गुण संत कवि /विचारक /समाज सुधारक कबीर ने कहे थे जो आज भी इस आधुनिक युग में सार्थक से प्रतीत होते हैं।

इसलिए अगर 125 करोड़ जनता का प्रतिनिधि प्रधानमंत्री होने पर भी संसद में विपक्ष की मांग पर अगर संसद का सामना नहीं कर सकता तो ऐसे व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर क्या कहा जाएगा । अगर 125 करोड़ की जनता का प्रतिनिधि केवल अपनी हेकड़ी में रहता है और संसद में आने से कतराता है तो व्यक्तिगत रूप में आलोचना तो बनती ही है ?

परंतु भारत में प्रधान मंत्री का पद एक निर्विवाद जनता के प्रतिनिधि के रूप में राज्य करने वाले व्यक्ति का पद है , यह व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म ,समुदाय , और वर्ग का हो सकता है । इसी लिए प्रधान मंत्री का पद आलोचनाओं से परे है क्योंकि भारत का प्रधान मंत्री 125 करोड़ जनता का प्रतिनिधि है ! इसलिए इस आलेख को भी आलोचना न समझा जाय !

: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
यह गठबंधन भी कुछ कुछ वैसा ही था जैसा कबीर दास ने कहा था
“कंकड़ पत्थर जोड़ कर …………………'”

१९९६ में कुछ क्षेत्रिय दलों ने मिलकर सरकार गठित की लेकिन यह सामूहीकरण लघुकालिक रहा जिसमे श्री अटलबिहारी बाजपाई जी ने कुल 18 दिन ही सरकार का नेतृत्त्व किया 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक .चूँकि लोकसभा में उनका पूर्ण बहुमत का विशवास नहीं था इसलिए विशवास मत से पहले ही उन्होंने त्याग पात्र देना उचित समझ ?भारतीय राजनीती में एक बार फिर अस्थिरता का माहोल पैदा हुआ अंतोगत्वा 19 मार्च 1998 को एक बार फिर से बाजपेई जी ने प्रधानमंत्री पद की सपथ ली ! इस प्रकार से यह सरकार भी अधिक दिन तक नहीं चली अंतोगत्वा उन्हें 1999 में . जे जयललिता के द्वारा समर्थन वापस ले लेने के कारण त्यागपत्र देंना पड़ा और लोक सभा भंग की गई तब बाजपाई जी के नेतृत्त्व में बी जे पी ने चुनाव लड़ा परंतु फिर भी बहुमत नहीं मिला 26 दलों की मिलीजुली सरकार बनानी पड़ी और फिर दौर शुरू हुआ गठबंधन की राजनीती का । उनका यह कार्यकाल
१३ अक्टूबर १९९९ को भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को बिना अन्ना द्रमुक के पूर्ण समर्थन मिला और संसद में ३०३ सीटों के साथ पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। भाजपा ने अबतक का सर्वश्रेष्ट प्रदर्शन करते हुये १८३ सीटों पर विजय प्राप्त की। वाजपेयी तीसरी बर प्रधानमंत्री बने और आडवाणी उप-प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री बने। इस भाजपा सरकार ने अपना पांच वर्ष कार्यकाल पूर्ण किया। यह सरकार वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही। लेकिन इस कार्यकाल में भाजपा को कई मुसीबतों का सामना भी करना पड़ा २००१ में बंगारू लक्ष्मण भाजपा अध्यक्ष बने जिन्हें 1,00,000 (US$2,060) की घुस स्वीकार करते हुये दिखाया गया जिसमें उन्हें रक्षा मंत्रालय से सम्बंधित कुछ खरिददारी समझौतों की तहलका पत्रकार ने चित्रित किया। भाजपा ने उन्हें पद छोड़ने को मजबूर किया और उसके बाद उनपर मुकदमा भी चला। अप्रैला २०१२ में उन्हें चार वर्ष जेल की सजा सुनाई गई जिनका १ मार्च २०१४ को निधन हो गया।

: 2002 की गुजरात हिंसा

२७ फ़रवरी २००२ को हिन्दू तीर्थयात्रियों को ले जा रही एक रेलगाडी को गोधरा कस्बे के बाहर आग लगा दी गयी जिसमें ५९ लोग मारे गये। इस घटना को हिन्दुओं पर हमले के रूप में देखा गया और इसने गुजरात राज्य में भारी मात्रा में मुस्लिम-विरोधी हिंसा को जन्म दिया जो कई सप्ताह तक चली। कुछ अनुमानों के अनुसार इसमें मरने वालों की संख्या २००० तक पहुँच गई जबकि १५०,००० लोग विस्थापित हो गये बलात्कार, अंगभंग और यातना भी बड़े पैमाने पर हुये।गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य सरकार के उच्च-पदस्थ अधिकारियों पर हिंसा आरम्भ करने और इसे जारी रखने के आरोप लगे क्योंकि कुछ अधिकारियों ने कथित तौर पर दंगाइयों का निर्देशन किया और उन्हें मुस्लिम स्वामित्व वाली संपत्तियों की सूची दी।अप्रैल २००९ में सर्वोच्य न्यायालय ने गुजरात दंगे मामले की जाँच करने और उसमें तेजी लाने के लिए एक विशेष जाँच दल (एस॰आई॰टी॰) घटित किया। सन् २०१२ में मोदी एस॰आई॰टी॰ ने मोदी को दंगों में लिप्त नहीं पाया लेकिन भाजपा विधायक माया कोडनानी दोषी पाया जो मोदी मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रह चुकी हैं। कोडनानी को इसके लिए २८ वर्ष की जेल की सजा सुनाई गई।पॉल ब्रास, मरथा नुस्सबौम और दीपांकर गुप्ता जैसे शोधार्थियों के अनुसार इन घटनाओं में राज्य सरकार की उच्च स्तर की मिलीभगत थी। जिसके वर्तमान अध्यक्ष पर मुकद्दमे चल रश हैं ?

२००४, २००९ के आम चुनावों में हार

वाजपेयी ने २००४ में चुनाव समय से छः माह पहले ही करवाये। राजग का अभियान “इंडिया शाइनिंग” (उदय भारत) और फील (feel good) गुड के नारे के साथ शुरू हुआ जिसमें राजग सरकार को देश में तेजी से आर्थिक बदलाव का श्रेय दिया गया। हालांकि, राजग को अप्रत्यासित हार का समाना करना पड़ा और लोकसभा में कांग्रेस के गठबंधन के २२२ सीटों के सामने केवल १८६ सीटों पर ही जीत मिली।संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के मुखिया के रूप में मनमोहन सिंह ने वाजपेयी का स्थान ग्रहण किया। राजग की असफलता का कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने में असफल होना और विभाजनकारी साम्प्रदायिक रणनीति को बताया गया।

२०१४ के आम चुनावों में जीत

भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमन्त्री प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत का भ्रमण किया। इस दौरान 3 लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे देश में 437 बड़ी चुनावी रैलियाँ, 3-डी सभाएँ व चाय पर चर्चा आदि को मिलाकर कुल 5827 कार्यक्रम किये। चुनाव अभियान की शुरुआत उन्होंने 26 मार्च 2014 को मां वैष्णो देवीके आशीर्वाद के साथ जम्मू से की और समापन मंगल पाण्डे की जन्मभूमि बलिया (उत्तर प्रदेश) में किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की जनता ने एक अद्भुत चुनाव प्रचार देखा। और इसी भ्रामक प्रचार का शिकार देश की जनता हो चुकी है

सफलता का बना नया रिकार्ड

नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनावों में अभूतपूर्व सफलता भी प्राप्त की। चुनाव में जहाँ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 336 सीटें जीतकर सबसे बड़े संसदीय दल के रूप में उभरा वहीं अकेले भारतीय जनता पार्टी ने 282 सीटों पर विजय प्राप्त की। काँग्रेस केवल 44 सीटों पर सिमट कर रह गयी और उसके गठबंधन को केवल 59 सीटों से ही सन्तोष करना पड़ा ।

भाजपा संसदीय दल के नेता बने

20 मई 2014 को संसद भवन में भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित भाजपा संसदीय दल एवं सहयोगी दलों की एक संयुक्त बैठक में जब लोग प्रवेश कर रहे थे तो नरेन्द्र भाई मोदी ने प्रवेश करने से पूर्व संसद भवन को ठीक वैसे ही ज़मीन पर झुककर प्रणाम किया जैसे किसी पवित्र मन्दिर में श्रद्धालु प्रणाम करते हैं। संसद भवन के इतिहास में उन्होंने ऐसा करके समस्त सांसदों के लिये उदाहरण पेश किया। बैठक में नरेन्द्र भाई मोदी को सर्वसम्मति से न केवल भाजपा संसदीय दल अपितु राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का भी नेता चुना गया। भाजपा सहित समस्त सहयोगी दलों द्वारा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को पत्र सौंपे जाने के पश्चात जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति से मिलने राष्ट्रपति भवन गये तो प्रणब मुखर्जी ने उनका स्वागत किया और भारी बहुमत से विजयी होने की बधाई भी दी। राष्ट्रपति भवन से वापसी में राष्ट्रपति ने नरेन्द्र मोदी को भारत का 15वाँ प्रधानमन्त्री नियुक्त करते हुए ।

चुनाव की अभूतपुर्व सफलता और सरकार का गठन एक ओर !लेकिन एक चुनाव प्रचारक के रूप में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान अपनी सभाओं और घोषणाओं में जो वायदे जनता से किये थे और जनता ने उन वायदों पर यक़ीन करके अपना विशवास भीं नरेंद्र मोदी में पूर्ण रूप में उनको भारी मत देकर व्यक्त भी कर दिया ?

लेकिन प्रधान मंत्री बनाने के बाद मोदी ने जिस प्रकार से अपनी सक्रियता से देश में आमूलचूल परिवर्तन के लिए आह्वान ही नहीं विभिन्न कार्यक्रम घोधित किये उनका पूर्ण लाभ जनता को कब मिलेगा ? क्योंकि प्रचार की भ्रामकता और वास्तविक योजनाओं में जमीं आसमान का अंतर है ?
( 1) बैंक खाते : जनता आज भी भ्रमित है और इस इन्तजार में है की कब काला धन देश में वापस आएगा और कब उनको 15 15 लाख रुपया उनके खाते में जमा हो जाएगा । हाँ इस बीच जिनके खाते खुल गए हैं गैस सब्सिडी का। पैसा उनके। खातों में जा रहा है ! यह एक उलझा हुआ जाल है जिसको केवल सरकार के विभाग ही जानते है सब्सिडी का गोरख धंधा ही ऐसा ही है?
(2) महंगाई के मोर्चे पर सरकार लाचार है ! क्योंकि पहले तो लोगों को यह आशंका थी की यह सरकार व्यापारिक वर्ग के लिए ही समर्पित है लेकिन अब यह प्रमाणित हो चूका है की यह सरकार व्यापारी वर्ग की ही नहीं अपितु औधोगिक घराने की भी पोषक सरकार है ? महंगाई का हाल यह है की गरीब की रोटी दुर्लभ होती जा रही है ? प्याज 80 से 100 रुपये दालें 120 से 170 तक यानि सब्जियां 40 से 80 रुपये सरकार कहती है थोक महंगाई दर शून्य से निचे है ? अरे भाई क्या सामन गोदाम में रखा हुआ जनता के पास अपने आप पहुँच जाएगा ! जनता को थोक महंगाई से क्या मतलब ? जनता खुदरा बाजार से खरीदती है थोक में नहीं थोक में व्यापारी खरीदता है ?

(3) कानून व्यस्था में कोई सुधार नहीं है ? जैसा 15 महीने पहले था वैसे ही अब भी है वाही बलात्कार की घटनाएं । राजधानी दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश में ही स्थिति चिंता जनक है !
(4) भ्रष्टाचार मोदी जी अपनी सभाओं में जिस प्रकार अपनी पीठ ठोंकते है कि 15 महीने में उनकी सरकार पर कोई आरोप नहीं है प्रशंसा के योग है परंतु वह यह नहीं बताते की सरकार का हिसाब किताब बराबर करने वाली अनेकों संस्थाओं के मुखियाओं का चयन ही अभी तक नहीं हुआ है ? वैसे भी राजस्थान की मुख्यमंत्री कस भ्रष्टाचार ! मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का व्यापम घोटाला ! केंद्रीय विदेश मंत्री का ललित मोदी के साथ पक्षपात क्या है लोक तंत्र में आरोप ही भ्रष्टाचार की कसौटी होता है भ्रष्टाचार की प्रमाणिकता बाद में प्रमाणित की जाती है ?
(5) वैधानिक रूप में भी सरकार चमत्कारिक बहुमत होने के बाद भी बहुत से कानून नहीं बना सकी है यह केवल उसके अहंकार और अड़ियल रुख को दर्शाता है ? जो आदर और सम्मान विपक्ष को दिया जाना चाहिए सरकार की तरफ से उसमे संकोच झलकता है जब वह विपक्ष को कहते है हैं की जनता ने। विपक्ष को नकार दिया है ? लेकिन वह स्वयं यह भूल जाते है की उनको बहुमत जो मिला है वह केवल 31 प्रतिशत ही है जिसमे स्कूल कालेज में मथर्ड डिग्री भी नहीं मिलती ?

(6) विदेश निति और आतंकवाद : यह दोनों विषय बहुत ही पेचीदा हैं ? इसमें जो कुछ मोदी जी करना चाहते है शायद उन्हें इसमें व् वांछित सफलता जल्दी न मिल सके ? क्योंकि विदेश निति को बदलना बहुत आसान काम नहीं है ? वहीँ चुनाव प्रचार में मोदी जी ने पडोसी को जितनिभि चेतावनियां दी थी आज वही सब सम्बन्ध बनाने में अड़चन बन रही हैं ?

(7) काला धन और भ्रष्टाचारियों को जेल ! मोदी जी आज दोनों मोर्चों पर फेल है केवल टेक्नीकल बातों से जनता का पेट नहीं भरता जनताठोंस कम चाहती है ? आज तक कोई भ्रष्टाचारी जेल नहीं भेज गया है ? काला धन कहाँ है ! बड़े बड़े दावे करने वाले 56 इंच कस सीना अब है की नहीं कहाँ है ।

अब तक के निष्कर्ष से यही प्रमाणित होता है की मोदी जी आत्म प्रशंसा के लिए लालायित और मीडिया में चर्चा में बने रहने के लिए स्थापित परम्पराओं को भी लांघ कर जब वह एक साधारण व्यक्ति के सामान विपक्षी पर अमर्यादित भाषा का इस्तेमासल करते है ? जो की एक उच्च पदासीन व्यक्ति को शोभा नहीं देता है ? संसद का पूरा सत्र केवल मोदी जी की हेकड़ी के कारण समाप्त हो गया और जनता का अरबो रुपया बिना काम काज के पानी में बहा दिया गया ? अगर संसद में वह सदन का नेता होने के कारन अपना बयान देते जिसकी मांग विपक्ष कर रहा था ? लेकिन मंचों पर धाराप्रवाह बोलने वाले मोदी संसद से मुंह चुराते नजर आये ?

वास्तव में ऐसा लगता है हम लोकतंत्र में नही अपितु किसी ताकतवर सामन्तशाही में रह रहे जहां एक आवरण में रहने वाले सामंत (RSS)ने अपनी ताकत के बल पर ठेके संरक्षित किये हुए है और वही सामंत जैसा चाहता है शासकों से करवा लेता है ? चाहे शिक्षा काक्षेत्र हो ? भ्रष्टाचार में घिरे मंत्री नेताओं का बचाव हो या पाकिस्तान सेवार्ता का मशला हो या OROP पर रिटायर्ड फौजियों से मध्यस्ता हो या फिर सरकारी नौकरियों में प्रसारभारती में नियुक्ति ?

एस पी सिंह , मेरठ ।

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