परवाह किसे है, इस देश की ?

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
हालात देखकर कभी कभी दिल मे ख्याल आता हैकि ,इस देश को दीमक चाट रही — है।आजादी के लंबेअरसके बाद यहाँ जातिवाद का बंटवारा ,मजहबी अलगाववाद।बरसों से न्यायालयों में पड़े मुक़दमे राजनीती में गुंडा तत्वों की घुसपैठ ।भरस्टाचार की बरगद सी गहरी और फलती फूलती जड़ें । अपहरण,चोरी,लूट,नन्ही बच्चियों से बलात्कार जैसे अपराधों का दिनों दिन बढ़ता- ग्राफ महिलाओं के प्रति अत्याचार, अनदेखी । नागरिकों से वसूले टैक्स का विकास के नाम पर किया जा रहा मनमाना उपयोग सभी तो चीख चीख कर कह रहे हैं यहां देश की परवाह किसे है ? कोई कुछ भी कहे जा रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक हाल यही हो रहा है।
इधर दुर्दांत आतंकियों को पनाह देनेवाले पकिस्तान से क्रिकेट मैच खेलने की होड़ लग रही है।जो हमारे रक्षक सैनिकों के सर काट ले जाए,हम देखते रहें ? कश्मीर और बॉर्डर पर रोज फायरिंग से ना थके – जिनके कारनामो से बेकसूर लोग मारे जाएँ । जो घुस पैठ को बढ़ावा देते झूठे बयां देने वाले देश को निपटा क्यों नहीं दिया जा रहा ? अब तो पूर्ण बहुमत की सरकार है। लेकिन मोदीजी को विदेशों के दौरों से – निजात मिले तब ना ! घर में क्या होना चाहिए इसकी फ़िक्र है किसे ? इन्हें तो बस दुनिया मे नाम कमाना है। चुनावी वायदे भूल से ही कर लिए हो जैसे !
फारूक अब्दुल्ला बेबाक बोल रहे है- पीओके पाक का है। तीर्थस्थलों पर नशे का कारोबार पनपरहा है।एक ही खबर को इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स 24 घंटे — रिपीट करते नहीं थक रहे।समाचार पत्र कर्नाटक विस् में विधायक के गुटका फाड़ने की खबर दे रहेहै। कही एम एल ए एम पी सत्र के दौरान नींद निकाल रहे होते है।तो कहीं एकदूजे पर कुर्सियां फैंकी जाती है, क्या ,जप्रतिनिधि कहलाने का हक़ है इन्हें ? उधर अपने हक़ की सारी सुविधा भोग रहे हैं,बिन थके । राजस्थान के श्रम नियोजन मंत्री सुरेन्द्रपाल ने एक समारोह में अब भाजपा की तुलना ईश्वर से करदी है।
कहीं अमीरी बहुत बढ़ी है तो कही गरीब को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही ! 30 करोड़ लोगों के पास बिजली ही नहीं है।भीड़ भरे ट्रैफिक में जोर शोर से हॉर्न बजाते हैं। बड़े शहरों में सड़कों पर वाहन रेंगते से चलते हैं। सरकार है कि विकास का अजंडा लिए बैठी है।कहीं घटिया निर्माण हो रहे है।मुख्या मंत्री की आवाज से रुक नहीं रहे।महंगी दवाऔं पर कंट्रोल छोड़, अंकुश ही नहीं! लगता है सबकुछ मिलीभगत से चल रहा है! अस्पतालों का हाल देखने लायक रह गया है।प्राइवेट चिकित्सालय जेब काटने पर आमादा, तो गरीब का भगवान ही है सहारा।
सबसे बड़ा सवाल ये की, अक्षम प्रशासन जेबें गर्म करता दीखता है। जहाँ पहले ही शहरों में साफ़ सफाई का अकाल है वही निगम मन माफिक रेट बढाकर ठेके दे रहा है। कहां है सरकारी सफाई कर्मी ? ना रोज पानी है और ना पूरी- बिजली ऊपर से प्रति वर्ष रेटों में बढ़ोतरी। महंगाई रूकती नहीं सैंकड़ो टन दाल जब्ती के बाद भी लोगों को जहां सस्ती मिलती न हो ,विभागीय तालमेल नहीं वहा सरकार अब और स्मार्टसिटी का झुनझुना थमा रही है।लगता है कोई – देखने वाला ही नहीं रहा !जो चल पड़ा, वही दौड़ रहा
बताया । कहीं एक दूसरे को ठग नहीं रहे हैं ।
सोशल मीडिया क्या आया जैसे तूफ़ान आगया।कोई भी कहिं भी कुछ भी कह देने का हौसला पाल बैठा है।यहाँ प्रसारित बातों में कुछ को छोड़कर
कितनी सच्चाई है, इसकी किसी को जैसे फ़िक्र ही – नहीं। बस सबकुछ फॉरवर्ड किये जा रहें हैं।फिर संस्कृति की तो बात ही निराली हो गई ।
देश में किसीभी घटना पर तत्काल सरकारी बयान ही जारी कहां होते है । पर राजनेताऔं कौ खुली छूट जरूर है ,कुछ भी बोलें।भावनात्मक रूप से संविधान की धज्जियाँ नहीं उड़ रही ? जहां दूखी और पीडित की पुलिस आसानी से शिकायत लेते भी कन्नी काटती हो , वहां उम्मीद भी कोई क्या कर सकता है ।
हमें तो लगता है कि,देश मे अगर सुप्रीमकोर्ट ही ना हो तब कैसा जलजला आएगा सोचकर भी रूह कांपने लगजाति है।
Shamendra Jarwal

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