अच्छे दिन आ गए ,
बोनस , मेडिकल , सेलरी ,
यहाँ तक नौकरी भी खा गए |
मुझको भी यक़ीन है ,
अच्छे दिन आ गए |
खाने का पैसा नहीं ,
बुलेट ट्रेन चला रहे हैं |
जंगल और जमीन से लोगों को,
प्लेन मे उड़ा रहे हैं |
जमीन जायजाद वालों को,
भूमि अधिग्रहण से बेघर बना गए|
मुझको भी यक़ीन है ,
अच्छे दिन आ गए |
सर्विस टैक्स, इंकम टैक्स मे ,
झुंझना पकड़ा गए |
मिडिल क्लास अपना खयाल खुद रखे,
संसद मे सुना गए |
मुझको भी यकीन है ,
अच्छे दिन आ गए
सुबह, सुबह की बात ,
दोपहर को दोपहर की बात ,
रात मे रात की बात ,
रेडियो और टीवी पर पका गए |
मुझको भी यक़ीन है ,
अच्छे दिन आ गए |
इस दौर मे जहाँ सब बिकता है,
बस हमारा स्टील नहीं बिकता है ,
बिके भी कैसे ,
खरीदार तो वही हैं |
बेचने विदेसी आ गए |
मुझको भी यक़ीन है ,
अच्छे दिन आ गए |
काला धन आएगा ,
सबके खाते मे 15 लाख जाएगा |
कहने वाले –
0 बैलेंस मे अकाउंट खुलवा गए |
मुझको भी यक़ीन है ,
अच्छे दिन आ गये।
कोयला,चारा खानेवाले तो
जैसे तैसे चले गये।
पर आज के कुम्भकरण तो
देश का भाईचारा ही खा गये।
मुझको भी यंकीन है।
अच्छे दिन आ गये॥
अस्सी रूपये की दाल को,
एक सौ अस्सी का बना गये।
थाली खाली रही हमारी
प्याज न जाने कौन खा गये॥
मुझको भी यकीन है
अच्छे दिन आ गये।
हम तो प्राइवेट वाले हैं
पर शिक्षाकर्मी भी घबरा गये।
चार महिने बाद तनखा
बेचारे फाके ही खा गये।
मुझको भी यकीन है।
अच्छे दिन आ गये।।
सुबह वही ,
शाम वही ,
बिन पैसों का काम वही,
लगता है ,बनाने वाले ,
अच्छा बेवकूफ बना गए |
मुझको भी यक़ीन है ,
अच्छे दिन आ गए ||
बोनस , मेडिकल , सेलरी ,
यहाँ तक नौकरी भी खा गए ||।
मनीष शर्मा अजमेर 8233356721
साहेब ये कविता मेरी है इससे पहले दो दो वेबसाइड में प्रकाशित है