…तो क्या भगवान ही कहाता रहेगा मालिक, असली गरीब का

शमेन्द्र जडवाल
शमेन्द्र जडवाल
“दीन सबको लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय।।”

रहीम जी कहते हैं, “दीन सबकी ओर (अपेक्षा भरी दृष्टि से) देखता है, लेकिन उसकी ओर कोई नहीं देखता। और जो दीनों, की ओर देखता है,वह दीनबन्धु (ईश्वर) के समान होता है।”
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन करोड़ लोगों को अखबारों में एक विज्ञापन के जरिये, दो दिन पहले ही, धन्यवाद ज्ञापित किया है, जिन्होंने गैस सब्सीडी छोड़ दी है। मोदी जी कहते हैं,– “देने का भी एक आनन्द होता है। देने का भी एक संतोष होता है। मैं विश्वास दिलाता हूँ कि, जो गैस सिलैण्डर सब्सीडी छोड़ेंगे, वो हम गरीबों को पहुँचाएंगे। ”
देश मे ही गरीब की एक अलग ही दुनिया है।
कोई वाकई में गरीब ही है, तो कोई राजनैति गरीब,
यानी नेताऔं के ईशारों पर चलने वाले और फायदा लेने वाले दीन। कोई धार्मिक दीन भी है जिसे आप हम हर दिन धर्मस्थलों के इर्दगिर्द भटकते देखते आ रहे हैं। बस भीख मांगकर गुजर बसर होता है। कुछ पर यदाकदा धर्मगुरुओं और हमारे धर्मआयोजनों की कृपा पहुँचती है।आपने चौराहों बस , रेल स्टेशनों, मेलों में भी ऐसे कई लोगों को दान दक्षिणा देकर अथवा दुत्कार कर भगाया होगा। वेसे भिक्षावृत्ति कानून की नजर में अपराध है । तो कुछ सड़क किनारे बैठे रोजीरोटी कमाते भी गरीब ही कहलाते है।
कई लोग बखूबी जानते हैं कि, सरकार अक्सर जिस गरीब के उत्थान का नाम लेकर वोट बटोरना नहीं भूलती,उन्हें आवास दिये जाने, पेट भरने को भोजन और काम देने के देने के वादे करती है, उनमे बमुश्किल एक चौथाई भी पूरी तरह लाभान्वित नहीं होते। हाँ सरकारी आँकड़ों से निगाहें हटालें तो सब साफ हो जाता रहा है।आँकड़े भी सरकारी नुमाइन्दे दफ्तरों मे बैठकर या फिर किसी निजी संस्था से अर्जित हो कोई फर्क नहीं पड़ता।
.जनता को सरकार जो गैस सब्सीडी देती रही है, वह करोड़ जनों से गरीब की भलाई के नाम वापस ली गई हे, इनमें कुछके पास एक से ज्यादा कनेक्शन भी थे।लेकिन नाम दिया स्वेच्छा से छोड़ी गई।खैर जोभी हो।छोड़ तो चुके ही हैं करोड़ लोग।
आगे यह कि, अब जिन गरीबों को मुफ्त सिलैण्डर दिये जाने के फार्मूले को अमली जामा पहनाया जाने वाला है, उनमें वे ही गरीब शामिल किये जाएंगे, जिन्हें नेता सपोर्ट करदेगे, जैसे सरपंच,पार्षद, विधायक और मंत्री जी के ईलाके वालेवोट खजाने से जुड़े होंगे। कुछ धर्मगुरूओं की सिफारिश पर भी पा जाएंगे,तो कुछ बड़े अफसरों की पहुँच तक आने वाले गरीब ।
बाकी बचे जो असलियत में बिना किसी उपरोक्त कथित सिफारिश या लाग लपेट वाले सामान्य से गरीब हैं, उनका परिवार है,जिनका कोई घर नही है, अथवा जिनका सिवा भगवान के कोई सुनने वाला नहीं है, वे तो दशको से गरीब ही है। इन दशको मे इनकी भी तो जनसंख्या बढी हैं। देश मे ही कुछ धनाढ्य गरीब भी रहते हैं, वे असली गरीब का सारा हक हड़पना बखूबी जानते समझते है। सवाल है, फिर वास्तविक गरीब की पहचान होगी कब और कैसे?
यहाँ गैस सब्सीडी का भी एक अलग ही फण्डा है। सरकार मूल्यों के बारे मे कहती तो है, कि
कम्पनियों के नियत्रण में है, सरकार का कोई लेना देना नही है। लेकिन पेट्रोल डीजल व गैस की कीमतो का निर्धारण सब जानते हैं कम्पनियाँ के नाम से तय होते है फिर स्वीकृत किसने की है ये कंपनियाँ। आप जनता से पूरी राशि वसूल कर उसी में से कुछ पैसा सब्सिडी के बतोर लौटाकर पीठ थपथपा रहे है अपनी। वाह सर जी आपकी गणित का फार्मूला ? तो जो पैसा सरकार के पास गैस सब्सीडी के नाम पर है, उसका उपयोग किधर व किस तरह से होता है,और कब होता है, यह भी कुर्सी थामे नेता ही जानते है। नागरिकों की सरकार है , जो नागरिकों से नागरिको के द्वारा नागरिको के लिये चुनी जाती है सिर्फ सेवा के लिये ।
फिर कैसे उम्मीद करे कोई कि, सरकार अथवा उसके मंत्रीगण जो घोषणाएं करते हैं वो सही से पूरी भी होंगी अथवा नहीं? खुद मोदी जी ने चुनाव के समय जनता को दिये बड़े बेझिझक वादे अभी तक जनता जनार्दन ने तो पूरे होते देखे नहीं है । आगै तो मोदी जी जानें, या ऊपरवाला ही समझ सकता हैयहाँ
ऐसे राजनैतिक तुष्टी के प्रलोभनों को। बस असली गरीब का दिलों में बसना बहुत दूर की कौडी़ नही लगता आपको ? फाईलों की फेहरिस्त में जरूर मिल जाएंगे गरीब के नाम ।
हाल ताजा ही ‘ट्वीटर’ पर एक सरदार साहब का
यह शेर कहते वीडियो वायरल हुआ –
” हवाएं नफरतों की चल रही हैं, रोज भारत में,
मुहब्बत भाईचारे के वो सुहाने दिन लौटा दो।
ये अच्छे दिन तुम्हारे, जान ले लेंगे गरीबों की,
गुजारिश है अरे साहिब, वो पुराने दिन लौटा दो।”

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