सेवक (नौकर)

sohanpal singh
sohanpal singh
एक बड़े गाँव में सेठ जी भी बड़े हो थे । सेठ जी बहुत कंजूस और चालाक किस्म के थे । कोई भी नौकर उनके यहाँ 10 दिन से अधिक नहीं रुकता था , और जाते हुए उसे अपनी तनख्वा भी छोड़नी पड़ती तजि क्योंकि सेठ जी शर्तें ही ऐसी तयकरते थे कि अगर तुम 10 दिन से पहले नौकरी छोड़कर जाओगे तो तुम्हे कोई तनख्वा नहीं मिलेगी और अगर मैं तुम्हे नौकरी से निकलूंगा तो तुम्हे दुगनी तनख्वा दूंगा ! इसी प्रकार से दिन महीने और वर्ष बीतते रहे सेठ जी के यहाँ नौकर काम तो करते थे लेकिन उनको तनख्वा नहीं देनी पड़ती थी कारण यह था की नौकर को एक साथ कई काम बता देते थे जिसमे निश्चय ही नौकर कोई एक काम भूल जाया करते थे यही कारण उनकी शर्तों का था की अगर कोई काम अधूरा रह गया तो नौकरी से निकल देंगे ?

अचानक दो वर्ष पहले सेठ जी को एक हट्टा कट्टा स्वस्थ व्यक्ति नौकरी मांगने आया बहुत अनुनय विनय के बाद सेठ जी नौकर को अपनी सभी शर्तें बता दी नौकर ने सभी शर्तों पर सहमति जता दी और नौकर ने भी एक शर्त यह रखी की नौकरी पुरे पांच वर्ष की होगी जिसका लिखित में समझौता भी हो गया ! तथा दूसरी शर्त यह की अगर मैंने नौकरी छोड़ी तो आप मेरे नाक कान काट लेना और अगर आपने मुझे नौकरी से हटाया तो मैं आपकी नाक और कान भी काट लूंगा , सेठ जी भी खुश कहाँ 10 दिन कहाँ 1825 दिन । जब शर्ते तय हो गई तो सेठ जी पूंछा की भैया यह तो बताओ की तुम्हारा नाम क्या है ! नौकर ने कहा की मेरा नाम ‘सेवक’ है

पहले दिन ही सेठ जी नेकहा की सेवक इन बच्चों को बाहर खुले में किसी खेत के किनारे। सौंच करा लाओ । जी हुजूर , सेवक बच्चों को लेकर खेत की ओर चला और और बच्चों से बोला , देखो बच्चों अगर आपको लघु शंका करनी है तो दीर्घ शंका नहीं करनी इसी प्रकार दीर्घ शंका करनी है तो लघु नहीं करना ? अब यह कैसे संभव था । बच्चे बिना कुछ किये वापस आ गए । सेठ जी का पता लगा तो , उन्होंने सेवक से पूंछा , ऐसा क्यों , हुजूर मैंने आपके आदेश का पालन किया , लेकिन मै मजबूर था नई सरकार का आदेश रूपी अनुरोध है की कोई खुले में सौंच न जाय ? अब मैं क्या करता ! सेठ जी निरुत्तर हो गए ? और घेर में ही सौचालय बनवा लिया ?

कुछ ही दिनों में तो सेवक ने सेठ जी के घर के सभी लोगों पर विशवास प्राप्त कर लिया अब पुरे परिवार की जिम्मेदारी सेवक सँभालने लगा , यहाँ तक की सेठ जी का घोडा तांगा , मोटरकार सब कुछ धडल्ले से प्रयोग करने लगा कभी इस शहर कभी उस शहर कभी कभी तो कई दिन के लिए गायब हो जाता था यहाँ तक घर में किसको क्या खाना है क्या नहीं खाना है यह काम भी सेवक का हो गया ! सेठ जी एक दिन सेवक से बोले , सेवक ऐसा करो तुम अपना पासपोर्ट बनवा लो, मेरा विदेश में जो मेरा काला धन जमा है उसको वापस ले कर आओ ! सेठ जी मेरा पासपोर्ट तो बना हुआ है परंतु मुझे किसी भी देश का वीजा नहीं मिलता था की तुम बेकार (निठल्ले ) आदमी हो , यहाँ आकर हमसे काम मांगोगे ? सेठ जी अब तो में आप का नौकर हूँ केवल आप को सर्टिफिकेट देना होगा ? पर सेठ जी मेरी एक बात मनो जो रुपया पैसा जहाँ जमा है उसे वहीँ रहने दो पता नहीं कब आपको देश छोड़ कर भागना पड़े ? वहां पैसा होगा तो काम तो चल सकता है ?

अब सेठ जी की हालात सांप छंछून्दर जैसी हो गई है कि अपने मन से कोई काम नहीं कर सकते सब कुछ सेवक ही करेगा ? सेठ जी उसे नौकरी से भी नहीं निकाल सकते क्योंकि पांच वर्ष से पहले निकालेंगे तो सेठ जी को अपनी नाक और कान भी कटवाने होंगे ?और नहीं निकलते तो अगले तीन वर्ष तक सेवक की मनमानी सहन करनी पड़ेगी ? इस लिए सेठ मन मार कर बैठ गए है अगले तीन साल के लिए ?

एस. पी. सिंह, मेरठ ।

error: Content is protected !!