भारत एक गर्वित लोकतंत्र

Ras Bihari Gaur (Coordinator)भारतीय लोकतंत्र दुनियाँ का सबसे बड़ा, समृद्ध और वैविध्यपूर्ण लोकतंत्र है। हम उस पर गर्व करते हैं। साथ ही उसके सभी महत्वपूर्ण स्तंभों को घृणा की हद तक धिक्कारना भी नही भूलते।
विधायिका जिसे हम स्वम चुनते हैं, को लंपट ,नालायक ,नकारा ,समझते हैं। व्यवस्था की संवाहक कार्यपालिका हमारी दृष्टि में कामचोर,भृष्ट और बोझ है। न्यायपालिका से डरते हुए उसे अय्याश या अपराधियों का आरामगाह मानते हैं। मिडिया को दलाल,ब्लैकमेलर,पूँजी की पैदाइश,आदि- आदि विशेषणों से नवाजते हैं। ये अलग बात है कि हित-साधने या स्वार्थ-सिद्धि के समय हमारे सुर बदल जाते हैं।
राजनेता बहुसंख्यक मतों का प्रतिनिधित्व करते हुये राजनैतिक व्यवस्था के तहत समाज तक पहुँचता है।जिसे हम अपने समय की सबसे बड़ी गाली से संबोधित करते हैं।
कार्यपालिका..पूरी मशीनरी..। शिक्षा,स्वास्थ्य,सुरक्षा से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों के लिए तत्पर। कड़कड़ाती ठण्ड ,तपतपाती दोपहर या मूसलाधार बारिश ,ट्रेन को अपनी पटरी पर दौड़ना ही होता है। डॉक्टर,मास्टर,ट्रैफिक हवलदार को मौसम से माफ़ी माँगनी ही होती है। पुलिस को सेवा-सुरक्षा में 24 घंटे तैनात रहने के बावजूद उसी समाज द्वरा तिरिस्कृत होना ही होता है। असहज और असामान्य परिस्थितियों में काम करते हुए किसी भी वर्दी पर कीचड़ उछालना जिम्मेदार नागरिक होने का प्रमाण बन गया है।फ़ौज तक को उनके अकल्पनीय जीवट का इनाम सामाजिक अवहेलना के रूप में मिलता है। पानी,बिजली,विज्ञान ,शिक्षा, सुविधा,सुरक्षा,संवाद,ऐसे अनेकों विभाग है जहाँ सतत जिम्मेदारी पूर्ण कार्य देश को देश बनाते हैं। लेकिन हम..अपने अहंकार में हम उन्हें पहचानने से इंकार कर देते हैं।
यही हाल न्यायपालिका और समाचार जगत का है ,जहाँ हमारे अघोषित विश्वाश की रक्षा होती है।हमारे अधिकार और अभिव्यक्ति के वे स्वर बनते हैं। विचार का रक्षण करते हैं। सामूहिकता के अर्थ संप्रेषित करते हैं।लेकिन हम न जाने कोनसा चश्मा लगाकर देखते है कि कुछ भी सकारात्मक नजर नहीं आता।
सम्पूर्ण व्यवस्था विशेषकर सरकारी संस्थान हमारी इसी अवहेलना के चलते अपना सर्वश्रेष्ठ देने में पीछे रह जाते हैं ।उनके नायक हतोत्साहित होते हैं। संस्था की ऊर्जा का क्षरण होता है।अपने ऊपर से विश्वाश उठने लगता है। अन्तोत्वोगत्व हमारे गौरव गान के स्वर गूंगे हो जाते है।
कही ऐसा तो नहीं हमारे चहरे पर ही दाग हो और हम दर्पणों को गालियां दे रहे हो।हमे अपने भीतर झाँकना होगा।जितनी भी संस्थाये हैं उनके सच को पहचाना होगा। तभी हम अपने देश,लोक और लोकतंत्र पर गर्व करने के सही अधिकारी होंगे।

रास बिहारी गौड़
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