हम पढ़ना चाहते है, अवसर तो दो

-लखन सालवी- किशन (6 साल) व आरूषि (3 साल) पढ़ना चाहते है। किशन से ज्यादा आरूषि का मन लगता है पढ़ाई में। पर एक तो गरीबी उपर से बिजली विभाग के कर्मचारी बैरी बने हुए है। कमोबेश देशभर में ऐसे न जाने कितने ही किशन व आरूषियां गरीबी के कारण पढ़ाई से वंचित रह जाती है और आगे जाकर वे मजदूर के रूप में दिखाई पड़ते है।

लखन सालवी
लखन सालवी
बहरहाल आप किशन व आरूषि के संदर्भ की पूरी कहानी समझ लिजिए। ये दोनों गोगुन्दा तहसील के रावलिया कलां गांव की भील बस्ती में अपने दादा नन्दा गमेती के मकान में रहते है। पिता भोलाराम गमेती कमठाणा काम में चिनाई का काम करता है। मां घर, खेत का काम करती है और इसके अलावा मजदूरी भी करती है। भोलाराम चाहता है कि उसके बेटे-बेटी पढ़े।
पढ़ने के लिए घर में माहौल कैसा है ? जरा आप भी देख लिजिए – रात होते ही इनके घर में अंधेरा पसर जाता है। भोलाराम बताते है – ‘‘राशन की दूकान से केरोसिन इतना ही मिलता है कि बारिस के दिनों में महीने भर तक दो टाइम चुल्हा जल जाए। सारा केरोसिन गिली लकड़ियों को जलाने में ही खप जाता है।’’ तो चिमनी जलाने के लिए केरोसिन भी नसीब नहीं है इन्हें। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को याद करते हुए कहता हैं कि गहलोत साब के राज में मेरे घर में बिजली कनेक्शन हुआ था और वसुंधरा जी के राज में वापस काट दिया। दरअसल कुटीर ज्योति योजना के तहत परिवार के मुखिया यानि भोलाराम के पिता नन्दा गमेती के नाम पर बिजली कनेक्शन मुहैया करवाया गया था। कहने को तो इस योजना के तहत निःशुल्क कनेक्शन किए जाने थे लेकिन भोलाराम से 500 रूपए ले लिए गए। बिजली आती देख भोलाराम ने भी दो दिन ही दिहाड़ी के 500 रूपए कनेक्शन करने वालों को दे दिए। भोलाराम की ही तरह कई परिवारों के घरों में बिजली कनेक्शन हुए थे। इन परिवारों को इतनी खुशी हुई कि कई दिनों तक रात के 12 बजे तक बिजली के उजाले में बैठकर गप्पें लड़ाते थे। ऐसा करते भी तो क्यों नहीं आखिर बरसों का सन्नाटा जो टूटा था।
कुटिया में ज्योति आई तो शाम का खाना खाने के बाद बल्ब की रोशनी में बच्चे पढ़ने लगे। भोलाराम को भी उम्मीद जगी कि उसके बच्चे पढ़ लिख जाएंगे। हाल में उसकी इस उम्मीद पर पानी फिर चुका है। उसकी कुटिया से ज्योति को हटा दिया गया है। भोलाराम ने बताया कि जून-2015 तक सब कुछ ठीक चल रहा था। हर दो माह में औसत 50-100 यूनिट बिजली खर्च हो रही थी। अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड की ओर से भेजे गए बिलों से इसकी पुष्टि होती है। अगस्त-2015 में उसके बिल में 1360 यूनिट खर्च बताते हुए 13166 रूपए बता दिए गए। बिल की राशि देखकर भोलाराम घबरा गया। आस-पास के घरों में पता किया तो उनके बिलों में भी ऐसे ही राशि आई थी। डरे-सहमें सब मिलकर बिजली ऑफिस में गए। वहां अरदास की लेकिन किसी न नहीं सुनी। एक साब ने उन्हें सुझाव दिया कि – ‘‘इतनी राशि एक साथ जमा नहीं करवा सकते हो तो ऐसा करो – किश्तों में जमा करवा दो, भई जमा तो करवाने पड़ेंगे। लोगों ने खूब कहा कि उन्होंने इतनी बिजली नहीं जलाई। उन्होंने जांच करवाने की मांग की लेकिन किसी ने नहीं सुनी।
जिनके पास दो जून की रोटी का इंतजाम नहीं था भला वो उजाले के लिए हजारों रूपए का इंतजाम कहां से करते। वे बिल की राशि जमा करवाने में असमर्थ रहे। इसके बावजूद भी कुछ महीनों तक रात को उजाला करते रहे। बिजली विभाग के कर्मचारियों ने तीन माह पूर्व यानि मई-2016 में इन सभी परिवारों के घरों से बिजली कनेक्शन काट दिए। अब हालात पहले जैसे हो गए। उजाले की ऐसी आदत पड़ी कि अब अंधेरा नहीं सुहा रहा है। सभी परिवारों के लोग मिलकर घरों में उजाला करने की जुगत में लगे हुए है।
जानकारी के अनुसार इन परिवारों को भेजे गए बिलों में अगस्त-2016 में खर्च हुए यूनिटों की बजाए कई गुना अधिक यूनिट का चार्ज अंकित कर दिया गया। यह बिजली विभाग की गलती है, जिसका खामियाजा गरीब आदिवासी परिवारों को भुगतना पड़ रहा है।
हाल ही में पीड़ित परिवारों के लोगों ने श्रमिक सहायता एवं संदर्भ केंद्र की मदद ली है। पीड़ितों ने जिला कलक्टर को शिकायत भिजवाई है, राजस्थान सम्पर्क पोर्टल पर भी शिकायत दर्ज करवाई है।
रावलिया खुर्द के पीड़ित परिवारों की महिलाओं व भोलाराम की उम्मीद एक बार फिर जगी है। उन्हें लगने लगा है कि कलक्टर उनकी बात सुनेंगे और उनके घरों में फिर से रोशनी आ जाएगी। वहीं रात होने के साथ ही किताबों के बस्तों को खूंटी पर टांग कर लेटे किशन व आरूषि कह रहे है – हम भी पढ़ना चाहते है, अवसर तो दो।

error: Content is protected !!