कटी पतंग / बेटियाँ

रश्मि जैन
रश्मि जैन
“क्या है औरत की जिंदगी ,… मै आज तक नही समझ सकी , जिसका कोई अस्तित्व नही, कोई वजूद नही, जो ना तो घर की चारदिवारी के अंदर सुरक्षित है और ना घर के बाहर” …..
“कई बार मुझे लगता है ‘स्त्री की जिंदगी आसमान में उड़ती हुई उस ‘रंग बिरंगी
पतंग’ की तरह है जिसे ना जाने कब कोई काट दे ….और जिस पर सैकड़ो लोगो की निगाहें लगी रहती है लूटने के लिए” …
“जब तक वो ऊंचाइयों पर है कोई उसे छु नही सकता… जरा सा भी डोर के टाइट होते ही सबको उस पतंग को काटने की लगती है… और अगर बदकिस्मती से वो पतंग कट गई , तो सभी उस कटी पतंग पर अपना अधिकार जताने लगते है” …
“सैकड़ो हाथों के द्वारा छीनाझपटी में नोच ली जाती है… उस पतंग के चीथड़े कर वहीँ पड़ी छोड़ दी जाती है… कागज रुपी वस्त्रों का हरण कर लिया जाता है … और मात्र कुछ तीलियाँ अस्थि पञ्जर के रूप में वहां पड़ी रह जाती है सड़क पर, जिसका कोई मालिक नही होता कोई कहने को अपना नही होता” …
“मात्र कुछ देर के कुत्सित आनंद के लिए जिसे नोच नोच कर खत्म कर दिया गया है, जो पतंग कुछ समय पहले तक खुले आसमान में विचरण कर रही थी , अब निर्जीव हालत में सड़क पर पड़ी अपनी किस्मत पर आँसू बहा रही है”….!!!
“गिद्ध निगाहें.. ही काफी हैँ ‘
नारी अस्मिता’…..
को चीर जाने के लिए”…..


बेटियाँ

“आज आखिरी नवरात्रा माँ का… खूब धूमधाम से करने का मन था ममता का , नौ कन्याओं को न्यौता देने निकली ममता को सिर्फ चार कन्याएं ही मिल पाई मुश्किल से… अब क्या करे , कैसे उद्यापन करे गी… कुछ वर्ष पहले तक कभी ऐसी समस्या नही होती थी , पर अब कुछ वर्षों से ….
“याद आने लगी अपनी बहू , जिसको उसने दो साल पहले घर से निकाल दिया था… कसूर था सिर्फ बेटियों को जन्म देना , दो बार उसने बहू का गर्भपात सिर्फ कन्या भ्रूण की वजह से कराया था… जब कहा था ममता ने अपनी बहू को ‘कलमुँही निकल जा यहां से अगर तो पोते को जन्म नही दे सकती तो तेरे लिए मेरे घर में भी कोई जगह नही’ और तीन बेटियों के साथ बहू रोती बिलखती मायके चली गई”…
“अचानक ममता उठी और घर से निकल पड़ी अपनी बहू को वापिस घर लाने के लिए… सास को सामने देखकर हैरान रह गई सुमन… ‘मांजी आप अचानक यहाँ, “हाँ बहू, अपने घर चलो…”मेरे घर की लक्ष्मी हो तुम, कहा है मेरी पोतियां , कहते हुए ममता रो पड़ी और बहू को गले से लगा लिया… आज उसे कन्याओं का महत्व समझ आ गया था , देवी माँ तो तभी खुश होंगी ना जब गृहलक्ष्मी खुश रहेगी”…
“मिटटी की सोंधी खुशबु सी होती है बेटियां ,आँगन की तुलसी पूजा सी होती है बेटियां ,मरती रहेंगी बेटियां तो बहू कहाँ से लाओगे ,बेटों को पैदा करने को जननी कहाँ से पाओगे”…???
– रश्मि डी जैन
नयी दिल्ली

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