बैठे ठाले ?

sohanpal singh
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हमारे देश में सभी नैतिक अनैतिक कार्य स्वर्गारोहण की कल्पना करने के बाद होते हैं ? स्वर्गारोहण यानि मृत्यु के पश्चात स्वर्ग की कल्पना ? वैसे स्वर्ग किसी ने देखा नहीं है ? पर धनवान लोग इसी धरती पर अपने लिए स्वर्ग का निर्माण कर लेते है और सारा सामान एकत्र करके स्वर्ग भोगते भी हैं ! बाकि बचे नर्क न सही नर्क जैसे वातावरण में नारकीय जीवन जीने को मजबूर होते हैं ? मजबूर क्यों न हो जब चाहकर भी एक बहुत अच्छे नम्बरो से पास होने वाला होनहार बच्चा डॉक्टर इंजीनियर न बन कर एक साधारण सा वकील बन जाता या अगर आगे न पढ़ सका तो वकील तो क्या मुंशी बनना भी मुश्किल होता है उसके लिए । लेकिन बहुत आश्चर्यजनक हैं जब किसी बुजुर्ग के अंतिम समय प्राण नहीं निकल रहे हों तो परिवारी जान उस कष्ठ मय स्थिति में उस बुजुर्ग की मुक्ति के लिए गऊ दान करते है यह गऊ दान केवल ब्राह्मण को ही दिया जा सकता यानि अगर किसी की माँ को मुक्ति चाहिए तो गऊ माता का दान देने से उस माँ को इस संसार से मुक्ति मिल जाती है ? अर्थात एक माँ की मुक्ति के बादले दूसरी माँ की क़ुरबानी ?
शायद इसीलिए हमारे देश में कुछ गोसेवक गौ रक्षा के नाम पर किसी भी हद तक जा सकते ही नहीं जा भी रहे है ? कभी भी कहीं कोई भी हिंसा करने को उतावले रहते है ? गौ माता के भक्त इतने धर्मांध हो जाते है की मृत गौ माता के शारीर को अंतिम प्रणिति तक पहुँचाने का कार्य जो दलित लोग कर रहे उनके कार्य करने में बाधा ही नहीं डालते गुंडागर्दी करते हुए उन लोगो को सार्वजनिक रूप से नंगा करके मरते पिटते है ? शायद इन गौ भक्तों को इनके माता पिता ने यह नहीं सिखाया की अपनी मृत गौ माता का अंतिम संस्कार कैसे करे ? क्योंकि कथित हिन्दू दलितों की रोजी रोटी और व्यापर इन मृत पशुओं पर ही चलता है ? व्यापर ही नहीं ये दलित इन मृत पशुओं का मांस भी खाते हैं ? इन गौ भक्तों की बढ़ती हुई गुंडा गर्दी से हमारे लोकप्रिय पी एम् मोदी जी भी चिंतित है इसीलिए उन्होंने स्वतंत्रता के पवन पर्व 15 अगस्त 2016 को लाल किले की प्राचीर से दर्द को महसूस किया और कहा कि 70 से 80 प्रतिशत गौ रक्षक अपराधिक पृष्ठभूमि के है , साथ ही राज्य सरकारो का आह्वान किया कि गुंडे किस्म के गौ रक्षकों का डोजियर बना के कार्यवाही करे ? अब हम यह नहीं समझ पा रहे हैं की क्या वास्तव में 70 ,80 प्रतिशत गौ रक्षक गुंडे हैं या गौ माँ के भक्त है। क्योंकि इनकी करतूतों के कारण एक ओर कानून व्यवस्था की स्थिति गंभीर होती है तथा मांस निर्यात पर बजी बाधा अस्ति है तो क्या सरकार के मुखिया का दर्द ये है कि पिछले चुनाव में इन्ही गौवंश के मांस निर्यातकों ने सरकार को 2-1/2 ढाई करोड़ रुपया चुनाव चंदे में दिया सत्ता धारी पार्टी को ? निर्णय तो जनता को करना है ?

एस. पी. सिंह, मेरठ ।

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