जैशा की बेहोशी खेल नीति की असफ़लता का प्रतीक

चौधरी मुनव्वर सलीम
चौधरी मुनव्वर सलीम
वर्तमान भारत सरकार ने अपने दिग्भ्रमित विचारों के कारण सभी मोर्चों पर भारत वर्ष के स्वाभिमान,सम्मान और विकास पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिए हैं | उसी अव्यवस्था का शिकार भारत सरकार की खेल नीति भी हुयी है हम अपने ऐसे भूखे प्यासे खिलाडियों से देश के सम्मान के लिए स्वर्ण पदक लाने का मतालबा कर रहे हैं जिन पर हमारी भारत सरकार एक अख़बार में छपी खबर के मुताबिक मात्र 3 पैसा प्रति खिलाड़ी प्रति दिन खर्च करती है न सिर्फ यह बल्कि रियो ओलंपिक की भी सच्चाई यह है कि 48 डिग्री सेल्सियस की भीषण गर्मी में 42 किलोमीटर तक मैराथन दौड़ने का साहस लेकर दुनियाँ के नक़्शे पर भारत माँ को सम्मान दिलाने की प्रतिबद्धता के साथ हिन्दोस्तान की लाड़ली ओ पी जैशा अपनी जान जोखिम में डालकर दौड़ रही थी | तब वहां सभी देशों ने अपने-अपने खिलाडियों हेतु एनर्जी ड्रिंक और पानी का इंतज़ाम किया था लेकिन भारत माँ की लाड़ली बेटी जैशा अपने ख़ुश्क गले और पथराई हुयी नज़रों से तिरंगे के साथ सजी पानी की टेबिल तलाशती रही और न उम्मीद होकर राष्ट्र का सम्मान बढाने के लिए निरंतर हौसलामंद क़दम उठाती रही | ओपी जैशा का कहना है कि वो 42 किलोमीटर की मैराथन में बिना पानी के ही दौड़ती रही। इस दौरान रास्ते में भारतीय स्टॉल तो थे, लेकिन उन्हें पानी पिलाने के लिए कोई स्टाफ दिखाई ही नहीं दिया। जैशा का कहना है कि उन्हें पूरी मैराथन में अपना फ्लैग नहीं दिखा।
जब जैशा भूख-प्यास की शिद्दत से बेहोश होकर गिरी तब सिर्फ एक भरतीय एथलीट ज़मीन पर नहीं गिरी थी | बल्कि भारत का सम्मान मौजूदा हुकूमत के कारण विदेशी धरती पर गिर गया था | जब जैशा भूख-प्यास की हालत में बेहोश होती है तब नरेन्द्र मोदी जी की लजर सरकार की कमज़ोर खेल नीति और व्यवस्था पूरी दुनियाँ के सामने उपहास का विषय बन जाती है |
दूसरी जानिब रियो ओलंपिक के सफ़र की सच्चाई यह है कि तमाम राजकीय सुविधाओं के साथ बड़ी क्लास में हवाई सफ़र करने वाले अधिकारीगण जैशा को मौत के अँधेरे समुन्दर में धकेल देते हैं और जैशा अपनी मंज़िल से 12 किलोमीटर पहले ही लड़खड़ाने लगती है और इसी भूख और प्यास की शिद्दत से वह आगे बढ़ती है और फिनिशिंग लाइन क्रास कर बेहोश हो कर ऐसी गिरती है कि उसके दोनों हाथों के ज़रिये 9 बोतल गुलूकोज़ उसके शरीर में डाला जाता जिस के पश्चात वह लगभग 3 घंटे बाद होश में आती है |
अगर जैशा रियो में मौत और ज़िन्दगी की जंग लड़ रही थी तो खिलाड़ियों को दी जाने वाली सुविधाओं के आभाव से तंग आकर एक नेशनल लेबल की खिलाड़ी पूजा भारत सरकार के खिलाड़ियों के प्रति अपनाये जा रहे इस उदासीन रवैये से उकता कर न सिर्फ मौत को गले लगा लेती है बल्कि अपने खून से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को एक सुसाइड नोट भी लिखती है जिसमें वह प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को सुविधाएं देने की गुहार करते हुए इस दुनियाँ को अलविदा कहते -कहते व्यवस्था पर बहुत सारे सवाल खड़े कर जाती है |
मैं रियो ओलंपिक में हुयी इस लापरवाही के लिए व्यवस्थापक के रूप में गए अधिकारियों पर राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा चलाने की मांग करते हुए नैतिकता के आधार पर इन दोनों दुर्घटनाओं के लिएभारत सरकार के खेल मंत्री से इस्तीफ़े की मांग करता हूँ |

चौधरी मुनव्वर सलीम

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