मैं हिन्दोस्तान हूँ ……

चौधरी मुनव्वर सलीम
चौधरी मुनव्वर सलीम
मैं हिन्दोस्तान हूँ,हिमालय मेरी सरहद का पासबान है |गंगा मेरी पाकीज़गी का ऐलान करती है | ग़रीब नवाज़ और गुरु नानक मेरे बाशिंदों को दरवेशी और मोहब्बत का सन्देश देते हैं | महात्मा गांधी और सीमान्त गांधी विश्वास का महल तैय्यार कर के अमन से रहने का विचार सींचते हैं |
मुझे कोई भारत माता कह कर श्रद्धा का नारा बुलंद करता है,कोई मादरे वतन कहकर मुझसे अक़ीदत का एलान करता है | मुझे तलाशते हुए कभी समुन्द्रों के रास्ते क़ाफ़िले आते रहे हैं,कभी मेरे पास अपना सांस्कृतिक पैग़ाम लेकर आरियन और दर-ए-खैबर से चलकर लश्कर और क़बीले आते रहे हैं | मुझे भी सभी रंगों,संस्कृतियों और धर्मों से उतना ही प्यार है जितना माँ को स्वाभाविक होता है |
लेकिन मेरे आग़ोश में रहने वाले मेरे बच्चों के साथ जब कोई ज़ुल्म और नाइंसाफी होती है तो उस वक़्त मेरी चीखों को सिवाए आसमान वाले के कोई ज़मीन वाला नहीं सुनता है ! मैं इन दिनों लहूलुहान हूँ चुंकी मेरे उन बच्चों को सताया जा रहा है जिन्होंने किसी भी विषम परिस्थिति में तथा किसी भी उन्मादी नारे को मेरी मोहब्बत की ख़ातिर नहीं सुना और मुझे ही बाआवाज़-ए-बुलंद मादरे वतन तुझे सलाम कहा |
आज कुछ लोग ताक़त और तादाद के नशे में चूर हो कर मेरे उन्हीं बच्चों को खून के आंसू रुला रहे हैं जिनकी नस्लों ने फिरंगियों से मुझे और मेरी तहज़ीब को लुटने से बचाने के लिए मौत से इश्क़ किया था | मैं अपना इतिहास खुद वक़्त के ज़ालिमों को बताने के लिए मजबूर हूँ | मैंने तकब्बुर को जब ज़मीं दोज़ करने की ठानी तब मुट्ठी भर यानी केवल पांच सपूतों को आशीर्वाद देकर घमंड को चकनाचूर कर दिया था | जब बादशाहों और राजाओं ने अपनी ताक़त के ज़ोम में डूबकर मेरे मासूम बच्चों को हाथियों के पैरों और घोड़ों की टापों से रौंदना शुरू कर दिया था तो आज उन ज़ालिमों की संताने ढूंढने से भी नहीं मिलती है | गौरों ने जब मेरे मासूम बच्चों को अपनी ज़्यादती का शिकार बनाया तो जिन अंग्रेजों के शासन में सूर्य अस्त नहीं होता था उन गौरों के अहंकार को अपने आशर्वाद से मेरे बूढ़ों,जवानों और महिलाओं ने नेस्त ओ नाबूद कर दिया था |
मैं आज फिर उन तमाम अहंकारी किरदारों को चेता रही हूँ कि तुम धर्म,जाती,गौत्र और भाषा के नाम पर ज़ुल्म बंद कर दो वरना मैं ऐसा श्राप दूंगी जिससे कुछ भी बाक़ी नहीं बचेगा | चुंकी मैं भारत माँ हूँ………….!

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