पगली

रश्मि जैन
रश्मि जैन
बस
तारीफ पे तारीफ
तारीफ पे तारीफ
जब देखो
उसी की तारीफ करते रहते हो
क्यों
आखिर कौन है वो
जिसकी हर वक़्त
तारीफ करते रहते हो
क्या लगती है
तुम्हारी
जरा भी अच्छा नही लगता
मुझे
बताओ तो
क्या मै जानती हूं
उसको
तुम खामोश क्यों हो
जवाब दो न
तुमने अपनी चुप्पी तोड़ी
हां जल्द ही मिलवांऊ गा
मैंने कहा नही
मुझे तो आज ही
देखना है उसको
वो अचानक उठे और
मेरे पीछे आ खड़े हूए
और बोले
चलो मै तुम्हे अपनी
उस सखी
से मिलवाता हूं
और मुझे कांधे से पकड़ा
और ले जाकर
आईने के सामने
खड़ा कर दिया और
बोले लो मिलो मेरी
प्यारी सी गुड़िया से
मेरी पगली सी सखी से
मै हैरां परेशां सी
उनको देखने लगी
फिर उनका इशारा
आईने की ओर
पा कर
मैं “धत् “कहकर दोनों
हाथो से अपना
मुह ढांप लिया
और मारे हया के वहा
ठहर न सकी
“शर्म से चेहरा रक्तिम
हो उठा था……
उनसे नज़रे न मिला सकी
और सोचने लगी…….
ऊफ़्फ़ क्या था ये सब
कितनी “पागल” थी…….
न ‘मैं’ कुछ समझ सकी
और न ‘तुम’…….???

रश्मि डी जैन
महसचिव, आगमन साहित्यक समूह
नई दिल्ली

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