मैं इन दिनों पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों पर प्रतिक्रियाएं देख रहा हूं। आमजन और राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ता कुछ कहें और कह रहे हैं, यह उनका हक है। प्रतिक्रिया करनी भी चाहिए। लेकिन खुद पत्रकार होने के नाते उस वक्त मन को पीड़ा होती है, जब मेरे पत्रकार साथी, चाहे वे देश-प्रदेश के किसी भी चैनल या अखबार से जुड़े हों, सोशल मीडिया पर किसी-न-किसी राजनीतिक दल के हिमायती बन कर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। मेरा किसी की भावना को ठेस पहुंचना या किसी की व्यक्तिगत आजादी पर चोट करने का कतई इरादा नहीं है। किन्तु मेरी निजी राय है कि हमारी आइडियोलॉजी कुछ भी हो, पत्रकार होने के नाते किसी भी राजनीतिक दल के प्रवक्ता या कार्यकर्ता की तरह प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। क्योंकि समाज की हमसे निष्पक्षता की उम्मीद रहती है। हम अपनी खबरों और लेखों के माध्यम से निष्पक्ष बात कहें। हो सकता है, कांग्रेस, भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों का चश्मा पहने मेरे पत्रकार साथी मेरी राय से सहमत भी ना हों। भले ही ना हों, लेकिन मेरा मानना है कि हमें किसी राजनीतिक दल का नहीं, बल्कि समाज का प्रतिनिधि बन कर अपना धर्म निभाना चाहिए।
-प्रेम आनंदकर, (अनीजवाल), अजमेर, राजस्थान।
भाई साहब, बहुत सही फरमाया है आपने, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि हमारे हमपेशा लोग पार्टी बनने को अधिक बेहतर समझते हैं।