भारत के गर्भ में दम तोड़ता युवाओं का भविष्य ..

photo not avelableसुशांत मिश्रा , नई दिल्ली
एक तरफ तो देश जहाँ संचार माध्यम में आगे बढ़ रहा तो दूसरे तरफ रक्षा के क्षेत्र में भी अपना लोहा मनवा रहा है, परन्तु अगर देश को आगे बढ़ाना है तो हमें अपने सभी स्तम्भ को भी मजबूत करना पड़ेगा, परन्तु केंद्र सरकार की नीतियों से यह नहीं लगता की वह और सभी क्षेत्रों में भी काम करना चाहती और इन तीन सालों में उन्होंने ऐसा क्या किया वह भी धरातल पर नहीं दिखता है. यह सरकार आई तो लोगों को इनसे काफी उम्मीदें थी,लगा काफी की बदलाव होगा और अच्छे दिन आयेंगे, लेकिन लोगों को क्या पता की सरकार की नीतियाँ ऐसे बदलेगी कि जो पहले से थोडा बहुत भी अच्छा है उसे भी सरकार की नीतियों के कारण सिर्फ नुकसान ही हो रहा है.
आज एक बेहतर समाज को बनाने के लिए सभी तरह के लोगों का रहना जरुरी है जिसमें स्किल्ड मजदूर से लेकर अनस्किल्ड मजदूर और एक पढ़ा लिखा तबका भी होना चाहिए, परन्तु वर्त्तमान सरकार के नीतियों में वह आम जनता को सिर्फ एक मजदूर ही बनाना चाहती हैं. जिस तरह से यह शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के द्वारा नीतियों में बदलाव किया जा रहा है उससे शिक्षा का स्तर और भी गिरता जा रहा हैं. वहीँ उच्च शिक्षा और शिक्षण संस्थान को आगे बढ़ाने की नीतियाँ भी सरकार की मंशा जाहिर करती है कि इस सरकार में शोधार्थी छात्रों के लिए कोई भी जगह नहीं है. आज देश में बहुत कम विश्विद्यालय ऐसे हैं जहाँ पर शोध कार्य हो रहे हैं और जहाँ हो भी रहे हैं वहां पर सरकार द्वारा ठीक ढंग से सुविधाएँ नहीं दी जा रही है. सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए की छात्र को एक शोध के लिए अपने जीवन के महत्वपूर्ण पांच से छः साल लगा देता है और उसके बाद भी उसे नौकरी के लिए धक्के खाने पड़ते हैं तो कभी शोध के दौरान वह समय पर स्कालरशिप नहीं मिलने के कारण वह परेशान रहता है. इस व्यवस्था को सुधारने के बजाय सरकार इसमें और खामियां निकालकर सरकार इसे बंद करना चाहती है.
जरा सोचिये अगर उच्च शिक्षा को सरकार अगर खत्म कर देगी तो फिर क्या होगा. सरकार द्वारा बनाई गयी नीतियों पर कौन शोध करेगा और सरकार की नीतियों को कौन बनाएगा. वहीँ इनमे क्या खामियां है वह कैसे दूर की जाएगी.दूसरी तरफ सरकार सिर्फ यह करना चाहती है कि हंम जो नीतियाँ बना रहे हैं लोग उसका पालन करें. इसपर पर सवाल उठाने का किसी हो हक़ नहीं है.पिछले साल जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय में जहाँ 1100 से अधिक लोगों का नामांकन एमफिल और पीएचडी में होता था वहीँ इस बार सिर्फ इस विश्वविद्यालय में सिर्फ 194 सीटें ही भरी जाएगी. यह तो सिर्फ जे.एन.यू . बात हो गयी और भी विश्विद्यालय में भी सीटें घटी हैं. विश्वविद्यालय में नियुक्तियों के बजाय सीट घटाए जाने का प्रकरण जारी है. 2009 में शुरू किये गये सात केंद्रीय विश्वविद्यालय बहुत कम ही जगह पर एम.फिल और पी.एचडी की पढाई शुरू हो पाई है और जहाँ हो भी गयी है वहां पर शिक्षकों की कमी के कारण छात्र परेशान हो रहे हैं. आये दिन छात्र अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने अपनी मांगे रखते हैं पर सिर्फ यह बातों तक ही सीमित होकर रह जाता है.वहीँ योजना आयोग के द्वारा 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों पर शोध करने के लिए एक फण्ड ला प्रावधान था, वह भी सरकार के इसे भी ख़त्म कर दिया गया.
आखिर हम किस बूते अपने को दुनिया की एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने की आकांक्षा पाले हुए हैं और हमारी सरकारें इस बारे में तरह-तरह की ढींगे हांक रही हैं. वहीँ सवाल यह भी उठता है कि सरकार की जो नीतियाँ हैं उससे तो नहीं लगता ही वह देश के विश्वविद्यालयों को अंतराष्ट्रीय मंच पर नहीं देखना चाहती है.वह ऐसे लोगों को समाज में आने ही देना नहीं चाहती जो लोगों को जागरूक कर सके और उनके हक़ की बात बता सके. इन सब को रोककर सरकार को आसानी से चलाया जा सकता है. वहीँ हाल ही आया एक सर्वे आया कि इंजीनियरिंग करने वाले छात्रों में 60 % छात्र ऐसे हैं जिन्हें अभी तक कोई नौकरी नहीं मिली है क्या यही हमारा नया इंडिया का स्वरुप होगा. देश में शिक्षा कि बुनियाद ही कमजोर तरीके से रखी गयी है हम ईमारत मजबूत बनाने की सोच ही नहीं सकते.
वहीँ एक सवाल और यह उठता है कि आज किसी भी देश की तुलना में भारत में युवाओं की संख्या सबसे ज्यादा है और वह जिस सरकार को चुन रहे हैं वह सरकार युवाओं के भविष्य को लेकर सजग नहीं है. आज देश में सिर्फ आवाज उठ रही है की कौन देश भक्त है और कौन देशद्रोही. उच्च शिक्षा के भविष्य पर कोई चर्चा करने वाला नहीं है और न ही कोई मीडिया इस बात की चर्चा कर है. वो जो जेएनयू जैसे संस्थानों की हमें दाद देनी पड़ेगी कि सरकार के कड़े रवैये के बावजूद वहां के छात्र और शिक्षक भी इस ऐसे मुद्दों पर अपनी आवाज उठा रहे हैं, परन्तु एक जगह से आवाज उठाने से कुछ नहीं होगा. सबको मिलकर उच्च शिक्षा के भविष्य को लेकर चिंतन करने की आवश्यकता है.

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