अनैतिकता का अधिकार तो किसी भी पेशे में नहीं

*एथिक्स-वैल्यूज की पालना में राजेनेता क्यों बरतते हैं अलग अलग मापदंड*
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*अमित टंडन, अजमेर।*
डॉक्टर और टीचर की शाम की घरेलु प्रेक्टिस या ट्यूशन पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। दरअसल इन दो पेशों में आपत्ति इस बात पर होनी चाहिए कि डॉक्टर अपने सरकारी अस्पताल में आने वाले दस रुपये की पर्ची के मरीज को धमका कर या डरा कर, या उसका केस बिगाड़ने अथवा बिगड़ने का भय दिखा कर घर बुलाता है और जो काम किसी गरीब का सरकारी अस्पताल में दस रुपये की पर्ची में होता है, उसके लिए मजबूरी में उसे दो सौ से लेकर चार सौ रूपये की फीस देनी पड़ती है, उसकी औकात हो या ना हो।

अमित टंडन
अमित टंडन
टीचर के शाम की ट्यूशन पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए, आपत्ति इस बात पर हो कि कुछ टीचर अपने ही स्कूल के और अपनी ही क्लास के बच्चों को फेल करने का डर दिखा कर मजबूर करते हैं कि उनके घर आकर ट्यूशन लो तो ही पास होंगे, वरना fail कर दिए जाओगे (आम तौर पर लगने वाले आरोपों के आधार पर)।
चलो टीचर आगे हो कर ये भय भी नहीं दिखाता, मगर जब उसे पता पड़ता है कि उसकी क्लास का बच्चा उसके विषय की ट्यूशन किसी और के यहाँ पढ़ रहा है, तो वह जरूर जलभुन जाता है।
मेरा खुद का कड़वा अनुभव है। मैं जिस बड़े नामी पब्लिक मिशनरी स्कूल में पढता था, वहां फिजिक्स और केमिस्ट्री के दो टीचर्स में ये लड़ाई थी। केमिस्ट्री वाले एक सर फिजिक्स में भी ग़ज़ब माहिर थे। कई बच्चे जो केमिस्ट्री की ट्यूशन उनसे पढ़ते थे, वो फिजिक्स भी उनसे ही पढ़ लेते थे। ये बात दोनों मास्टरों में झगडे की वजह बनी, आये दिन ऐसे लड़ाई होने लगी जैसे गर्मियों में राजस्थान में हैंडपंप पर औरतों में होती है। और एक बार लड़ाई इस हद तक पहुँच गई कि फिजिक्स वाले सर ने केमिस्ट्री वाले सर को स्कूल में ही झगड़े के दौरान यहाँ यहां तक कह दिया कि पैसों की इतनी आग है तो बीवी से नौकरी क्यों नहीं करा लेते।
क्या स्तर है बताओ..?
हर जगह ऐसा नहीं होगा, ये भी सही है, मगर जहां भी है, गलत तो गलत ही है।
क्या किसी को लगता है कि अंकुश लगाने पर भी डॉक्टर या टीचर अपने अस्पताल या स्कूल के मरीज या बच्चों पर घर आने का दबाव बंद कर देंगे। सवाल ही नहीं।
वो अन्य ऐसे मरीज घर देखें जो सीधे उनके घर आ रहे हैं। टीचर अन्य स्कूल के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएं, किसी को आपत्ति नहीं।
खबरें आती हैं कि आए दिन सरकारी डॉक्टर रिश्वत लेते पकडे जाते हैं। कुछ दिन पहले अजमेर के आजाद पार्क के सामने निवास से एक डॉक्टर मीणा पकडे गए, मरीज से ऑपरेशन के लिए पैसे लेते हुए, जबकि मरीज सरकारी अस्पताल में उन्हें दिखा चुका था और मुफ्त ऑपरेशन का हक़दार था।
*प्रसंगवश बता दूं के ये आलेख एक मित्र से उस चर्चा के बाद बना जब पिछले दिनों के मनोज तिवारी के एक किस्से पर बहस चली। किस्सा कुछ पुराना है, मगर प्रासंगिक है। भोजपुरी सिने स्टार से भाजपा के स्टार नेता बने मनोज तिवारी ने एक स्कूल के किसी प्रोग्राम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की थी, प्रोग्राम की उद्घोषक/संचालक महिला शिक्षक द्वारा उनसे मंच से एक गीत गाने की फरमाइश की गई थी, और तिवारी जी ने सरे आम उस महिला की मंच से ही माइक पर काफी बेइज़्जत्ती की थी कि महिला रोती हुई बीच प्रोग्राम से चली गयी थी।*
परिचर्चा में मेरा विरोध तिवारी के व्यवहार पर था कि अगर शिक्षण संस्थान में कोई ऐसा प्रोग्राम था कि वहां गीत गाना उचित नहीं था, तो सभ्यता के साथ नारी सम्मान का ध्यान रखते हुए सादगी से मना किया जा सकता था।
*परिचर्चा के दौरान एक मित्र का तर्क था “”सब सही है फिर यह डाक्टर और अध्यापकों की शाम की प्रेक्टिस और ट्यूशन पर क्यो आपत्ति है? मैं मनोज जी के व्यवहार का समर्थन नहीं करता किन्तु अध्यापक को भी तो मर्यादा की आवश्यकता है एक सरकारी समारोह मे गाने की फरमाईश भी तो उचित नहीं? कल विपरीत खबर बनती कि सरकारी समारोहों मे गाना गा रहे थे प्रचार कर रहे थे?*
इन दो पेशों का मनोरंजन के पेशे से तुलना करना बेमानी है।
शिक्षा और इलाज जरूरी सुविधाएं और आवश्यकताएं हैं, मूलभूत जरूरतें हैं… इसलिए इनको “धंधा” बना के करने वालों के खिलाफ आवाज़ उठाना गलत नहीं।
मनोरंजन मूलभूत सुविधा में नहीं, ना ही आपात सुविधा है। ये एक अतिरिक्त साधन है, जिससे इस मनोरंजन व्यवसाय से जुड़ा व्यक्ति जनता के दम पर ही सफल है और करोड़ों रूपये कमाता है। अगर वो कहीं भी किसी भी दूसरे क्षेत्र में सफल हो जाता है, जैसे मनोज तिवारी राजनीति में हो रहे हैं, तो उन्हें अपनी हस्ती और औकात भूलनी नहीं चाहिए।
जब चुनाव के लिए केम्पेन करते हैं, तो उसी जनता की फरमाइश पर जनसभाओं में कूल्हे मटकाते हैं, गाने गाते हैं, संवाद बोलते हैं। अगर किसी समारोह में किसी शिक्षिका ने संवाद या गीत सुनाने को कह दिया तो इतना कौन सा ईगो हर्ट हो गया या बेइज़्जती हो गई, या कौन सी नैतिकता या सदाचार उस महिला शिक्षक ने भंग कर दिया कि सरे आम उसका घोर अपमान कर डाला। सिर्फ अपने नेता होने की अकड़ दिखाने के लिए..?
इन्हीं मनोज तिवारी को आये दिन टीवी न्यूज़ चैनल की डिबेट्स में देखा जा सकता है पेनेलिट्स के रूप में बैठते हैं; और सामाजिक, राजनितिक व राष्ट्रीय मुद्दों पर नैटंकी करते करते चर्चा करते हैं, तब इन्हें ख़याल नहीं आता कि संजीदा टॉपिक पर डिबेट है तो अपनी फ़िल्मी ड्रामेबाजी बंद कर दूँ। तब इन्हें एथिक्स और वैल्यूज का ख़याल नहीं आता..? उस समारोह में उस शिक्षिका की इज़्ज़त उतारने के लिए उन्हें नियम कायदे याद आये..! राजनेताओं का दोहरा चरित्र है, घमंड है।
प्रसंगवश ये फिर बता दूं के मैं तिवारी की हरकत का विरोध किसी राजनीतिक मानसिकता से नहीं कर रहा, एक आम सामाजिक प्राणी तथा बतौर पत्रकार कर रहा हूँ । मैं ये भी स्पष्ट कर दूँ के मैं कांग्रेसी या आप पार्टी का नहीं हूँ। ना ही किसी अन्य क्षेत्रीय पार्टी का प्रतिनिधि हूँ।
*मगर इतनी हिम्मत हर किसी को रखनी चाहिए कि हम समर्थक बनके जिन लोगों को सत्ता तक पहुंचा रहे हैं, तो उनकी गलतियों पर उन्हें आईना भी दिखा सकें।*
सिर्फ इसलिए किसी की गलती को भी हम कुतर्कों से अच्छा अच्छा बता कर सही साबित नहीं कर सकते, कि हम उनके समर्थक हैं और उनके खिलाफ कुछ सुन नहीं सकते।
*इसी वजह से हालात ये हो गए कि लोग भाजपा वालों को समर्थक ना मान कर अब भक्त कहने लगे हैं, और ये भक्त की संज्ञा अब अंधभक्त में बदल गई है। मैं व्यक्ति पूजा के सख्त खिलाफ हूँ, इसलिए समर्थक हो सकता हूँ पर भक्त नहीं।*
यही गलती कांग्रेस वाले भी कर रहे हैं। समाजवाद और राष्ट्रवाद का तकाजा है कि अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहो, सही को सही और गलत को गलत कहो।
*मगर राजीनीति में हो ये रहा है कि विरोधी के अच्छे को भी बुरा तथा सही को भी गलत साबित करने के लिए कुतर्क दिए जा रहे हैं। यही स्थिति पलट कर देखें, तो अपनी पार्टी के गलत को भी सही तथा बुरे को भी अच्छा साबित करने के लिए कुतर्क दिए जा रहे हैं।*
ये लोकतंत्र का मज़ाक है। देश का भला करने का अब दिखावा रह गया है। देश का भला अगर सही में करना है तो इस मज़ाक को बंद करना होगा। राजनीतिक और दलीय मतभेद एक तरफ रख कर “सही को सही” मानना होगा। तब ही यह निर्णय हो पायेगा कि ये ये काम अच्छे हैं और पूर्ण हो चुके हैं, और ये ये कामों में अभी अनके खामियां हैं और उन्हें दूर करके उन कामों को पूर्ण करना है। वरना कभी कोई काम पूर्ण नहीं होगा, निकालते रहो दूसरों की अच्छाइयों में बुराइयां, और खुद की बुराइयों में अच्छाइयां।

1 thought on “अनैतिकता का अधिकार तो किसी भी पेशे में नहीं”

  1. चाहे शिक्षक हो, डॉक्टर हो, नेता हो या कोई भी आज के दौर में सबसे बड़ा रुपैया है, सत्ता है। अपना सामाजिक. स्तर ऊंचा उठाने की अंधी दौड़ ने हर कर्मक्षेत्र में सेंध लगाई है और लगभग हर कोई भ्रष्ट हुआ जाता है। आज का ‘समर्थक’ भी अपना कोई ना कोई स्वार्थ साधे बैठा है। निरपेक्ष कोई नहीं।

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