राष्ट्रगान या एक अंग्रेज का गुणगान ?

स्वजनों,
हम स्वतन्त्र देश भारत के नागरिक हैं परन्तु आज भी परतंत्रता, गुलामी की मानसिकता से भरे हैं, तभी तो हम आज भी अपने राष्ट्रीय पर्वों पर ब्रिटिश शासन के गुणगान करने वाले गीत “जन गण मन” को बड़ी शान से गाते हैं ।

कुछ तत्थ्य आपके सामने रख रहा हूँ………

भारतीय जनमानस ब्रिटिश शासन के खिलाफ था । देश की आजादी के लिये क्रांतिवीर कदम-कदम पर ब्रिटिश शासन को चुनौती दे रहे थे । ब्रिटिश शासन हिल चुका था, घबडा गया था । सन 1905 में बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन में पूरे देश का जनामानस अंग्रेजों के विरोध में उठ खडा हुआ । उस वक्त तक भारत की राजधानी बंगाल का प्रसिद्ध नगर कलकत्ता थी । अंग्रेजों ने अपनी जान बचाने के लिए 1911 में कलकत्ता को राजधानी न रखकर दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया । पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे । अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि भारत के लोगों का कुछ ध्यान बटे और विद्रोह शांत हो जाये ।

इंग्लैंड में उस समय शासन कर रहे किंग जार्ज पंचम ने 1911 में भारत का दौरा किया । अंग्रेजो ने अपने किंग को खुश करने के लिये एक स्वागत गीत लिखने के लिये रवीन्द्र नाथ टैगोर पर दबाव डाला । रवीन्द्र नाथ टैगोर का परिवार अंग्रेजों के प्रगाढ़ मित्रों में गिना जाता था । रवीन्द्र नाथ टैगोर के परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे । उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे । रवीन्द्र नाथ टैगोर के परिवारिक सदस्यों ने अपना बहुत सा पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा रखा था । रवीन्द्र नाथ टैगोर भी अंग्रेजो के प्रति बहुत सहानुभूति रखते थे ।

रवीन्द्र नाथ टैगोर ने अंग्रेजों के बहुत दबाव और अपनी अंग्रेजों के प्रति सहानुभूति के कारण एक गीत “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता” लिखा । इस गीत की सभी पंक्तियों और शब्दों में किंग जार्ज का ही गुणगान है । इस गीत के भावार्थ को निष्पक्ष हो कर समझने पर ही पता लगेगा कि यह गीत वास्तव में अंग्रेजो और किंग जार्ज पंचम के गुणगान करने के लिये लिखा गया था । इस गीत के भावार्थ को समझने पर ही हम जान सकेगे कि यह गीत अंग्रेजों की चाटुकारिता के लिये था |

जन गण मन अधिनायक जय हे ,
भारत भाग्य विधाता ,
पंजाब, सिन्धु , गुजरात , मराठा , द्राविड , उत्कल बंग ,
विन्ध्य हिमाँचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मांगे
गाए सब जय गाथा
जन गन मंगल दायक जय हे ,
भारत भाग्य विधाता ,
जय हे जय हे जय हे ,
जय जय जय जय हे .

रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित इस गीत का अर्थ कुछ इस प्रकार से है ……

“भारत के नागरिक, भारत की जनता आपको ह्रदय से भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है । हे अधिनायक (Superhero) तुम ही भारत के भाग्य विधाता हो । तुम्हारी जय हो! जय हो! जय हो! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त, पंजाब, सिंध, गुजरात, महाराष्ट्र (मराठा), दक्षिण भारत (द्रविड़), उड़ीसा (उत्कल), बंगाल (बंग) आदि तथा भारत के पर्वत विन्ध्याचल और हिमालय एवं भारत की नदियाँ यमुना और गंगा सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है । प्रातःकाल जागने पर हम तुम्हारा ही ध्यान करते है और तुम्हारा ही आशीष चाहते है । तुम्हारी ही यश गाथा हम हमेशा गाते है । हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो-किंग जार्ज ) तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो । ”

किंग जार्ज पंचम जब भारत आये तब ये गीत उनके स्वागत में गाया गया । किंग जार्ज जब इंग्लैंड वापस गये तब उन्होंने इस गीत “जन गण मन” का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया । अंग्रेजी अनुवाद जब किंग जार्ज ने सुना तो कहा कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की । किंग जार्ज बहुत खुश हुआ । उसने आदेश दिया कि जिस व्यक्ति ने ये गीत उनके सम्मान में लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये । रवीन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए । किंग जार्ज उस समय नोबल पुरस्कार समिति के अध्यक्ष भी थे । उन्होंने रवीन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया । जब रवीन्द्र नाथ टैगोर को इस नोबल पुरस्कार के विषय में पता चला तो उन्होंने इसे लेने से इन्कार कर दिया । इस इन्कार का कारण था भारत में इस गीत के लिखे जाने पर भारत की जनता द्वारा रवीन्द्र नाथ टैगोर की भर्त्सना और गाँधी जी के द्वारा रवीन्द्र नाथ टैगोर को मिली फटकार । रवीन्द्र नाथ टैगोर ने किंग जार्ज से कहा की आप यदि मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मेरे द्वारा रचित पुस्तक गीतांजलि पर दें लेकिन इस गीत के नाम पर न दें और साथ ही यही प्रचारित भी करें क़ि मुझे नोबेल पुरस्कार मेरी गीतांजलि नामक पुस्तक पर मिला है । किंग जार्ज ने रवीन्द्र नाथ टैगोर की बात मान कर उन्हें सन 1913 में उनकी गीतांजलि नामक पुस्तक पर नोबल पुरस्कार दे दिया ।

रवीन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों से मित्रता और सहानुभूति सन 1919 तक कायम रही पर जब जलिया वाला हत्या कांड हुआ तब गाँधी जी ने रवीन्द्र नाथ टैगोर को फटकारते हुए एक पत्र लिखा, उसमे गाँधी जी ने कहा क़ि इतने जघन्य नरसंहार के बाद भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरा, कब खुलेगी तुम्हारी आँखे, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? बाद में गाँधी जी स्वयं रवीन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और उनको बहुत फटकारा उन्होंने कहा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अन्ध भक्ति में डूबे हुए हो ? कब तक ऐसे ही डूबे रहोगे, कब तक ऐसे ही चाटुकारिता करते रहोगे ? तब जाकर रवीन्द्र नाथ टैगोर की आँखे खुली और उन्होंने इस हत्या काण्ड का विरोध किया और अपनी “सर” की उपाधि अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दी ।

यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण है कि सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रवीन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वह सब अंग्रेजी सरकार के पक्ष में लिखा और 1919 के बाद उनके लेख कुछ-कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे । रवीन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे । अपने बहनोई को उन्होंने 1919 में एक पत्र लिखा, इसमें उन्होंने लिखा कि ये ‘जन गण मन’ नामक गीत अंग्रेजो ने मुझ पर दबाव डाल कर जबरदस्ती लिखवाया है । इसके शब्दों का अर्थ भारतीय जनमानस को ठेस पहुंचाने वाला है । भविष्य में इस गीत को न गाया जाये वही अच्छा है । लेकिन अंत में उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि इस पत्र को अभी किसी को न दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ परन्तु मेरी मृत्यु के उपरांत इस पत्र को अवश्य सार्वजनिक कर दें ।

7 अगस्त 1941 को रवीन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि इस जन गन मन गीत को न गाया जाये ।

1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी । लेकिन वह दो खेमो में बंटी हुई थी । जिसमे एक खेमे के नेता थे बाल गंगाधर तिलक और दूसरे खेमे के मोती लाल नेहरु । मतभेद था सरकार बनाने को लेकर । मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ मिलकर संयुक्त सरकार (Coalition Government) बनायें । जबकि बाल गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है । इस मतभेद के कारण लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और मोती लाल नेहरु अलग-अलग हो गये और कांग्रेस दो खेमों में बंट गई, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक गरम दल के नेता कहलाने लगे उनके साथ सभी क्रांतिकारी विचारधारा के लोग थे तथा मोती लाल नेहरु नरम दल के नेता कहलाने लगे, उनके साथ वही लोग थे जो अंग्रेजो की दया-कृपा पर निर्भर थे । यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि गांधी जी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो सामाजिक परिदृश्य में किसी तरफ नहीं थे, परन्तु मानसिक और हृदयात्मक लगाव मोती लाल नेहरु से था, यह बात अलग है कि गाँधी जी का दोनों पक्ष बहुत सम्मान करते थे ।

कांग्रेस के नरम दल के समर्थक अंग्रेजो के साथ रहते थे । उनके साथ रहना, उनकी खुशामद करना, उनकी बैठकों में शामिल होना, वे हर समय अंग्रेजो के दबाव में रहते थे । अंग्रेजों को वन्देमातरम से बहुत चिढ होती थी । नरम दल के समर्थक अंग्रेजों को खुश करने के लिये रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित “जन गण मन” गाया करते थे और गरम दल वाले अंग्रेजों और नरम दल के समर्थकों को मुंहतोड जवाब देने के लिये बकिंम चन्द्र चैटर्जी द्वारा रचित “वन्दे मातरम” गाया करते थे ।

नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को वन्देमातरम गीत पसंद नहीं था । अंग्रेजों के कहने पर नरम दल के समर्थकों ने कहना शुरू कर दिया कि मुसलमानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें मूर्ति पूजा करने को कहा गया है । उस समय तक मुस्लिम लीग भी अस्तित्व में आ चुकी थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे । मोहम्मद अली जिन्ना ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया । मोहम्मद अली जिन्ना अंग्रेजों के इशारों पर चलने वालो में गिने जाते थे, उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नही गाना चाहिये ।

सन 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान सभा में राष्ट्र गान के मुद्दे पर लम्बी बहस हुई । संविधान सभा के 319 सांसदों (इसमे मुस्लिम सांसद भी थे) में से 318 सांसदों ने बंकिम चन्द्र चैटर्जी द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर अपनी सहमति जताई । बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना जिनका नाम “पंडित जवाहर लाल नेहरु” था । जवाहर लाल नेहरु का तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए । जब कि वास्तविकता यह थी कि वन्देमातरम गीत से मुसलमानों को कोई आपत्ति नहीं थी बल्कि मुसलमानों ने तो इसे राष्ट्र गान बनाने के पक्ष में संविधान सभा में मतदान किया था । वंदे मातरम गीत से अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी । अंग्रेजों का जवाहर लाल नेहरू पर इस गीत को राष्ट्र गान न रखने का दबाव बढता जा रहा था । अंग्रेजों की सलाह पर जवाहर लाल नेहरू इस मसले को गाँधी जी के पास ले गये क्योंकि जवाहर लाल नेहरू ये जानते थे कि गाँधी जी उनकी बात का विरोध नहीं करेगे और यदि करेगे भी तो अंतिम फैसला उन्ही (जवाहर लाल नेहरू) के हक में ही देगे ।

गाँधी जी भी जन गन मन गीत को राष्ट्र गान बनाने के पक्ष में नहीं थे । पर जवाहर लाला नेहरू पर अगाध प्रेम के कारण उन्होंने नेहरू से कहा कि मै जन गण मन को राष्ट्र गान नहीं बनाना चाहता और तुम वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये । गाँधी जी ने तीसरे विकल्प में झंडा गान “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा” (रचइता श्याम लाल गुप्त “पार्षद”) को रखा । लेकिन नेहरु उस पर भी तैयार नहीं हुए । नेहरु का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है ।

गाँधी जी के राजी न होने के कारण नेहरु ने इस मुद्दे को टाल दिया परन्तु गाँधी जी की मृत्यु के बाद नेहरु ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया । भारत का जनमानस नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया वह भी वन्देमातरम गीत के सिर्फ़ पहले छंद को, पूरे गीत को नहीं । लेकिन कभी इसे किसी भी राष्ट्रीय पर्व पर गया नहीं गया । नेहरु कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि उनके आका अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे । जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था ।

बीबीसी ने उस वक्त एक सर्वे किया, उसने पूरे संसार में जितने भी भारतीय मूल के लोग रहते थे, उनसे पूछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत भारतीय राष्ट्रगान के रूप में ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों का कथन था कि मुझे वन्देमातरम गीत भारतीय राष्ट्रगान के रूप में ज्यादा पसंद है । बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ होती है कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दूसरे नंबर पर वन्देमातरम था । कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है ।

यह है इतिहास वन्दे मातरम का और जन गण मन को राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान बनाए जाने का । अब ये हम भारतीयों को तय करना है कि हमको क्या गाना चाहिये, और किसे अपनाना चाहिये ।

वन्देमातरम……………………………

-गोपाल कृष्ण शुक्ला

That’s me  से साभार

11 thoughts on “राष्ट्रगान या एक अंग्रेज का गुणगान ?”

  1. Nehruji ka angrejon ke prati jhukav to jagatvid tha,chahe hum pt. Nehru ko adhunik BHARAT ka nirmata kahen, par asal to yeh hae ki unhone vishwa rajniti men apni chavi ko achha banane ke liye bharat ki chavi ko nuksan panhuchya.Kashmir ke masle ko jeetne ke bavjood UNO men le jakar apne ko to shanti priya bata diya par yeh nasoor bana kar desh ko sonp diya jab ki hamari senayen jeet chuki thi .do din ki ladaie hamesha ke liye pareshani ko khatam kar deti. bhi kai masle aise the jo nehru ne uljha diye. UNKI GALAT NITIYON KA ANJAM AAJ DESH BHUGAT RAHA HAE.

  2. Rashtra Gaan gaya to bachpan se he, abhi bhi schools me gaya jata he, lekin iska arth kabhi kahi padha nahi, na hi kisi ne bataya, kisi ko pata bhi shayad hi hoga. Chupi hui etihasik jankari dene k liye dhanyawad.

  3. i salute you 4 writing dis wonderful thing……
    thank you 4 such a valuable information..!
    great collection!
    Jai Hind!!!!
    Vandematram!

  4. Main aapki baat se kuchh sahmat to hu kintu aapne kuchh bada chada kar bataya h aur kuchh kuchh galat bhi jaise Lokmanya tilak aur motilal nehru ka kissa 1941 ka nhi ho sakta.

    Thoda sudhar kar lo….

  5. आभार आपका गोपाल कृष्णा जी बहुत सटीक मतलब आपने जग जाहिर किया है.

  6. Is satyata ko hme schoolo tk pahuchani hogi ki wastav mai hm aaj bhi angrejo k kitne gulaam hain… or hme vande mataram gana chahiye..

  7. जी हमे ये राष्ट्रगान को नही गाना चाहिए हमे वंदेमातरम् को ही राष्ट्रगान के रूप मे पेश करना चाहिए ओर विजईय विश्व तिरंगा प्यारा इस गीत को राष्ट्रीय गीत घोषित करना चाहिए

  8. कितना गलत और मनघडंत मतलब निकालते हैं आप | अगर आपने आनंदमठ पड़ा होता तो शायद पता चलता की क्यों मुसलमान इसे गाना पसंद नहीं करते ..अगर आपके तरीके से देखा जाए तो वन्दे मातरम् भी मुसलमानों की बर्बादी और अंग्रजो की जय जय कार करने वाली किताब से निकला गीत था ..पर इसका जुड़ाव इसे अलग मुकाम देता है …चलिए मान लेते हैं की जन गन मन अंग्रेजो के लिए लिखा गया गीत था पर क्या उसे इसी तरह से स्वीकार किया जाता है …या स्वीकार किया जाता था वैसे बहुत से तर्क है जो ये भी साबित करते है की ये एक झूट से ज्यादा कुछ नहीं है …अपनी बातो से बरगलान बंद करे तो बेहतर होगा

  9. Kuchh bhi ho yaar aap kaise soch sakte hai ki hum aaj bhi angrejon ki badaai karen ek Yadav to aisa kabhi nahi soch sakta !!Vande Matram!!

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