लावारिस लाशों के मसीहा बने अनिल थानवीं

IMG-20170423-WA0062मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, इसे झुठलाया नही जा सकता । जो इस दुनिया में आया है उसे जाना ही पड़ेगा। यानि जो जन्मा है,उसकी मृत्यु निश्चित है। व्यक्ति के जन्म लेने के साथ ही उसके जीवन पर्यन्त तक उसकी नजरों के सम्मुख 15 संस्कार होते है, और समय आने के साथ उन संस्कारो का सामाजिक रीति रिवाज से जोड़ा जाता है। जैसे नामकरण, उपनयन, अन्न प्रासन, मुण्डन, यज्ञोपवित,पाणिग्रहण इत्यादि। मगर सोलहवा ऐसा संस्कार है जो जीवित व्यक्ति के सामने ना होकर मृत्योपरान्त होता है, वो है दाह संस्कार। अब जिनके रिश्ते-नातेदार होते है, परिवार जन उस मृत व्यक्ति का दाहं संस्कार कर देते है। मगर इस दुनिया में कई ऐसे लोगों की मौत हो जाती है, जिन्हे ना कोई जानता है और ना पहचानता है,ऐसे लोग लावारिस कहलाते है। इस बारे में यह भुमिका बांधने का तात्पर्य एक ऐसी शख्सियत से आपका परिचय कराना मात्र है, जो लावारिसो के वारिस के रूप में ख्यातनाम है , उनका नाम है अनिल थानवी ।
राजस्थान के नागौर जिलान्तर्गत मीरंा नगरी मेड़ता के रहवासी और जोधपुर जिले के फलौदी से ताल्लुक रखने वाले अनिल थानवी लावारिसों के मसीहा बनकर उभरे है। अब तक 77 लावारिस शवों करे उनके धर्म के अनुसार अन्तिम संस्कार कर चुके है। जिनमें 75 शव हिन्दू और 2 शव मुस्लिम मृत व्यक्तियों के थे। जिन्हे मजहब के रीति रिवाज के मुताबिक दाह संस्कार और सुपूर्दे खाक किया । अपनी माता श्री मती शोभा देवी थानवी की सद्प्रेरणा सें अनिल थानवी ने गत 15 बरस पहले यह पुण्य कार्य आरंभ किया। थानवी कहते है कि गरूड़ पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि जिसका कोई नाती -रिश्तेदार नही होता,और मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। तो बाह्म्ण का कर्त्तव्य बनता है कि मृतक की गति के लिये उसका विधि विधान से अन्तिम संस्कार करे। इसी बात को जीवन में उतराते हुए पेशे से एडवोकेट अनिल थानवी ने यह परमार्थ का कार्य शुरू किया। नागौर जिले के पुलिस अधीक्षक से लेकर सभी थाना क्षै़़़़त्रो ,रेलवे पुलिस सहित अन्य जिला उपखण्ड अधिकारीयों के पास अनिल थानवी के फोन नम्बर हैं। जिले में कही भी कोई लावारिस शव मिलता है तो इसकी सूचना थानवी को मिलती है। लाश शिनाख्त नहीं होेने पर शव को लावारिस करार देते हुए पुलिस कार्रवाई के बाद शव को लावारिस करार देते हुए पुलिस कार्रवाई के बाद शव दाह संस्कार हेतु थानवी कोे सुर्पुद करते है। थानवी दाह संस्कार में समझौता भी नही करते है। समस्त सामग्री जो दाह संस्कार में जरूरी होती है,वो लाते हैं। एक शव के दाह संस्कार में तकरीबन 12 से 15 हजार रूप्ये खर्च करते है। दो बार पार्षद और सीधे चुनाव में मेड़ता के नगर पालिका अध्यक्ष व जिला व सेंशन न्यायलय मेड़ता मे लोक अभियोजक भी रहे थानवी । अपनी माता शोभा देवी जोशी के निधन के बाद शोभा देवी मेमोरियल सेवा समिति नामक ंसंस्था बनाकर अनिल थानवी ने डीडवाना, मेड़ता सिटी, नागौर, डेगाना, थावंला,खीवंसर, कुचेरा, पादूकलां, मेड़ता रोड़ में शवों का अन्तिम संस्कार किया है। बात सिर्फ अन्तिम संस्कार पर आकर भी खत्म नही हो जाती है। थानवी जिन शवों को दाग करते है, उनकी अस्थियां भी चुनते है। और बाकायदा हरिद्वार की हरकी पेड़ी पर विधि विधान से पंडा मख्खन चख्खन से विसर्जित भी कराते है। यहां तक कि कितने लोगो की अस्थियों को मां गंगा की गोद में प्रवाहित किया है उसका पंडे की बही में इन्द्राज भी कराते है साथ ही ब्रहम भोज भी कराते है। अनिल थानवी बताते है कि 100 शवों के दाह संस्कार करने के पश्चात गया जी में जाकर आत्माओं की शंाति के लिये पिडं दान करूंगा । साथ ही भजन सन्धया भी करने का मानस है।
परमार्थ के इस पुनीत कार्य मंे जुड़े अनिल थानवी ने अपने नगरपालिका के अध्यक्ष पद रहते हुए 10 लाख की लागत से लावारिस लाशों के दाह संस्कार हेतु श्मशान घाट का निर्माण भी करवाया । ऐसी विलक्षण शख्सियत पर हमें नाज है।

आलेख- बी.के व्यास सागर
ईमेल- [email protected]

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