जैसे देश का हर साधु संत भ्रष्ट आचरण का है

atul sethiपिछले 2 दिनों से मीडिया हो या WhatsApp पूरे दिन बाबाओं को लेकर समाचार और चुटकुले चल रहे हैं ।

मेरा ऐसा मानना है कि जिस ने भी कानून का उल्लंघन किया है वो कोई भी हो , उसे भारत की न्याय व्यवस्था कड़े से कड़ा दंड देगी !

लेकिन जो रुख हम सब लोगों ने अपनाया है उसे ऐसा ही माहौल बनने लगा जैसे कि निर्भया रेप कांड के बाद लग रहा था कि ,देश का हर पुरुष बलात्कारी है, उसी तरह का माहौल आज बनाया जा रहा है जैसे देश का हर साधु संत भ्रष्ट आचरण का है । इस कठिन दौर में मेरा आप सभी से निवेदन है कि एक बार आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज की क्रियाओं, कार्यो पर जरुर ध्यान दें तब आप अपनी विचारधारा को बदलने मजबूर हो जाएंगे कि हर साधु संत वैसा नहीं है जैसा आज मीडिया और WhatsApp के कुछ ज्ञानी लोग माहौल बना रहे हैं !

जैन आचार्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज बाल ब्रह्मचारी हैं,अहिंदी भाषी सुदूर कर्नाटक के सडलगा ग्राम में जन्म हुआ था , आचार्य श्री ने पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जैन मुनि की दीक्षा ली, आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से आचार्य पद प्राप्त किया , इस वर्ष आचार्य श्री के मुनि दीक्षा लिए 50 वर्ष हो चुके हैं , इन 50 वर्षों में आचार्य गुरुवर ने पाँच सौ से ज्यादा मुनि एवं आर्यका दीक्षा दी है , 2000 से ज्यादा ब्रम्हचारी भाई बहिन दीक्षा के पहिले कठिन जीवन और संयम का पालन कर रहे है !

सभी जैन मुनि इसी तरह कठिन जीवन चर्या का पालन कर रहे हैं, जैन मुनि की चर्या और जीवन चरित्र बहुत कठिन है जैन मुनि पूर्णता दिगंबर अवस्था में रहते है , दिगम्बर यानी कुछ छुपा नही, न शरीर, ना वैभव, न धन। ज्ञान भी सब के लिए खुला है !

जैन मुनि पैदल चलते हैं बिना किसी जूते चप्पल को पहने, जैन मुनि 24 घंटे में एक बार आहार ग्रहण करते हैं आहार ग्रहण करने की क्रिया भी बहुत कठिन होती है , भोजन के छः रस होते हैं दूध, दही ,घी तेल ,शक्कर और नमक यही भोजन को स्वादिष्ट बनाते हैं !

अनेक जैन मुनि 6 रसों में से अनेक रसों का त्याग किये रहते है , अपनी उंगलियों और हथेलियों को पात्र बनाकर भोजन ग्रहण करते हैं, किसी तरह की कोई वस्तु हाथ पर लेकर भोजन ग्रहण नहीं करते भोजन करते समय पूर्ण शुद्धता का पालन किया जाता है किसी भी अशुद्धि की दशा में उसी क्षण भोजन समाप्त कर दिया जाता है उसके बाद जल भी ग्रहण नहीं करते, कितनी भी गर्मी हो , सर्दी हो भोजन और जल सिर्फ एक बार ही ग्रहण किया जाता है !

जैन मुनि भोजन अपने उदर पोषण के लिए नहीं बल्की सिर्फ शरीर चलाने के लिए जितना आवश्यक हो उतना ही ग्रहण करते हैं ,एक बात का और ध्यान रखा जाता है कि इतना ही भोजन ग्रहण किया जाए ताकि डकार आने पर भोजन मुंह में ना आ जाय।

दिगंबर अवस्था में रहने वाले मुनि किसी भी मौसम में पंखा, AC ,हीटर, कूलर आदि का उपयोग नहीं करते , ना ही सोने के लिए किसी भी तरह के वस्त्र या बिस्तर का उपयोग करते है , कितनी भी ठंड हो तापमान 1डिग्री हो या माइनस , किसी चटाई या लकड़ी पर एक करवट भोर के पूर्व तक विश्राम करते हैं, और तत्पश्चात साधना में लीन हो जाते हैं

स्त्री स्पर्श कभी भी नहीं होता और यदि भीड़ या किसी धोखे से किसी स्त्री का स्पर्श हो जाए तो वह स्वयं प्राश्चित करते हैं , यह देश के सभी जैन साधुओं की चर्या है

मैं एक बार पुनः आपको आचार्य श्री के संयम और ज्ञान की बात बताता हूं आचार्यश्री अनेक वर्षों से घी ,शक्कर ,नमक ,दही ,तेल आदि का पूर्ण त्याग किए हैं,सोचिये इन के बिना भोजन कितना बे स्वाद हीग , ड्राई फ्रूट्स आदि भी ग्रहण नहीं करते आचार्य श्री का कोई ट्रस्ट नहीं है ना ही कोई बैंक अकाउंट है ना ही कोई समिति है ना ही कोई आश्रम है ना कोई बंगला है ना कोई गाड़ी है उनके पास एक मोर पंख की पिच्छी है और एक कमंडल है जिसका हर वर्ष चातुर्मास के पश्चात वह त्याग कर देते हैं आचार्य श्री ना तो कोई चमत्कार करते हैं ना ही कोई इलाज ।

बात करते है आपके मन, आपकी आत्मा की शुद्धि की , आचार्य श्री कभी भी किसी भी कार्य को करने के लिए नहीं कहते लेकिन उनकी भावना मात्र से ही वहां के लोग जनसेवा के हितार्थ कार्य प्रारंभ कर देते हैं , इस हेतु आचार्य श्री के कोई निर्देश नहीं होती बस प्रवचन के दौरान यह भावनाएं होती है , उदाहरण के लिए यह कहा गौ रक्षा की जाए जबलपुर में दयोदय तीर्थ आज 1500 मृतप्राय गायों को पालता है !
जैन समाज की पूरे देश मे इसी तरह की सैकड़ो गौशालाएं बीमार लाखो गयो को आश्रय दे रही है ,इसी तरह बेटियों का स्कूल है जिसमे आधुनिक शिक्षा संस्कारो के साथ दी जा रही है , आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन के लिए पूरी दुनिया से श्रद्धालु आते हैं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आते हैं लेकिन उनका आगमन और दर्शन ठीक वैसे ही होता है जैसे आम व्यक्ति का हो क्योंकि आचार्यश्री का कोई दरबार नहीं है आचार्य श्री के दर्शन पूरी दुनिया के लिए सुलभ है ।

आचार्य श्री नंगे पैर हर मौसम में सैकड़ों किलोमीटर की हर प्रदेश में हर शहर में यात्राएं की है क्योंकि उनका कोई एक ठिकाना तो है नहीं वह कब जाएंगे कहां जाएंगे कहां रुकेंगे कोई नहीं जानता , लाखों श्रद्धालु जो हर धर्म से है आचार्य श्री के भक्त लेकिन अनुशासन देखते बनता है ।

आचार्य श्री के भक्त अरबपति है जो जन सेवा के कार्यों में करोड़ो रुपए दान देते है, बिना किसी नाम के और बिना किसी लाभ की भावना के , आहिंदी भाषी आचार्य श्री 8 भाषाओं के ज्ञाता है आचार्य श्री के द्वारा लिखित मूक माटी पर अभी तक 100 से ज्यादा शोध किए गए हैं और किए जा रहे है।

कहा जा सकता है कि मैंने यह जैन मुनियो को महिमा मंडित करने के लिए नही लिखा है , लेकिन मेरा निर्विकार उद्देश्य कि देश की सभी साधु संतों को वे किसी भी धर्म संप्रदाय के हो, शंका की नज़र से देखा जा रहा है , मेरा सिर्फ उद्देश्य है संत समाज मे कुछ बुरे , पाखण्डी है, लेकिन सभी संत , साधु एक से नही है, जो बुरे है उनकी शिकायत की जानी चाहिए दंड दिलवाए जाना चाहिए, लेकिन सभी को मजाक के पात्र न बनाये, अभी कुछ हुआ भी नही लेकिन लोग अभी से बाबा रामदेव को जेल भेजने का मजाक बना रहे है , आखिर क्यों ??

पर्वराज पर्युषण पर्व के अवसर पर आपको यदि ऊपर लिखी कोई बात बुरी लगी हो तो क्षमा कीजिये , यदि आपको अच्छा लगे तो प्लीज शेयर जरूर करे क्योकि बात पूरी संत समाज की है।

atul sethi, journalist, nasirabad
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