तो नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के विस्तार में राजस्थान से ना ओम प्रकाश माथुर का नाम आया और ना भूपेंद्र सिंह यादव का। लॉटरी खुली तो जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत के नाम की। सवाल यह है कि यादव और माथुर को मंत्रिमंडल में शामिल क्यों नहीं किया गया ? अगर मीडिया के लोग इनके नाम चलाने से पहले थोड़ा सोच लेते तो शायद इन दोनों को यूं ही अपने नाम की बदनामी नहीं झेलनी पडती।
माथुर और यादव दोनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाते हैं । दोनों संगठन का काम बहुत बेहतर तरीके से करने के लिए जाने जाते हैं । माथुर ने उत्तर प्रदेश में पिछले चुनाव में और उससे भी पहले गुजरात के चुनाव में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था और दोनों राज्यों मे भाजपा को शानदार जीत दिलाने का सेहरा पहना था। हालांकि बिहार के प्रभारी के नाते भूपेंद्र यादव भाजपा को वहां पिछले चुनाव मे जीत नहीं दिला सके थे। लेकिन उनकी योग्यता और मोदी और शाह से निकटता की वजह से इसके बावजूद उन्हें अभी गुजरात का प्रभारी बनाया गया है । जहां आने वाले दो-तीन महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं । मोदी और शाह के गृह राज्य में इन चुनाव की जिम्मेदारी यादव को देने का मतलब यही है कि दोनों उन पर कितना भरोसा करते हैं । ऐसे में उन्हें मंत्री बना दिया जाता तो वह गुजरात पर ध्यान नहीं दे पाते। यादव को इसके अलावा भी पार्टी हमेशा महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपती रही हैं।
हालांकि माथुर अभी किसी राज्य के प्रभारी नहीं, केवल पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ही है। लेकिन आने वाले डेढ़ सालों में 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए हो सकता है मोदी और शाह उनका उपयोग एक बार फिर कुशल संगठनकर्ता होने के कारण किसी राज्य में करना चाहते हो । इसीलिए इन दोनों को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं दिया गया है । और जब कोई नेता सरकार और संगठन का नेतृत्व करने वालों के इतना करीब हो तो वह तो यूं भी मंत्री से ज्यादा रुतबा रखता है। यूं माथुर व यादव के मंत्री नहीं बनने से सीएम राजे ने जरूर राहत महसूस की हो। वरना राज्य मे सत्ता का एक और केन्द्र बन जाता।
राजपूतों को राजी करने के लिए
जहां तक शेखावत को मंत्रिमंडल में शामिल करने का सवाल है तो इसके पीछे गैंगस्टर आनंदपाल सिंह के एनकाउंटर और उसे हैंडल करने में राज्य सरकार की विफलता के चलते राजस्थान में राजपूतों का भाजपा से नाराज होना माना जा सकता है। शेखावत को मंत्री बना कर और जयपुर के सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का प्रमोशन करके भाजपा के परम्परागत वोट बैंक राजपूतों की नाराजगी दूर करने कोशिश की गई है । राठौड़ अभी सूचना प्रसारण राज्यमंत्री हैं। इसके साथ ही उन्हें अब खेल मंत्री का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। माना जा रहा है कि दो दिन पहले सीएम वसुंधरा राजे की दिल्ली मे अमित शाह से मुलाकात के दौरान यह रणनीति बनी। लेकिन इसका राजपूतों पर क्या असर पड़ेगा इसका फैसला अजमेर में होने वाले लोकसभा उपचुनाव से भी काफी हद तक पता लग सकेगा।