रेनफेड कृषि को बढ़ावा देना जरूरी

kalyan singhऐसे वक्त में जब राजस्थान के जनजातीय जिले बांसवाड़ा में नवजात शिशुओं की मौत ने राज्य में कुपोषित मां और बच्चों की दयनीय स्थिति सामने ला दी है, वृक्ष-आधारित जीवन शैली और रेनफेड (वर्षा पर निर्भर) इलाकों में परंपरागत भोजन को प्रोत्साहन और संरक्षण देना प्रासंगिक हो गया है. चूँकि राजस्थान देश भर में सबसे ज्यादा वर्षा पर निर्भर क्षेत्र वाला राज्य है, इसलिए यहां स्थानीय स्तर पर खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रेनफेड कृषि को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है.

राज्य के पूर्णतया बारिश आधारित क्षेत्रों में कुपोषण के खतरों को कम करने के लिए समुदाय आधारित टिकाऊ मॉडलों को समझने के लिए, “revitalizing rainfed agriculture towards inclusive secure and sustainable agriculture in Rajasthan” का सोमवार को पंत कृषि भवन में आयोजित किया गया।

इस कार्यक्रम में कृषि और पोषण विशेषज्ञों ने यह विचार व्यक्त किए कि दूर दराज के क्षेत्रों में कुपोषण को खत्म करने के लिए सामुदायिक प्लानिंग एक बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृषि आयुक्त विकास सीताराम भाले ने कहा कि , “जहां तक राजस्थान का विषय है, हमारा फोकस बाजरा उत्पादन और पारंपरिक खाद्य परम्पराओं पर केंद्रित होना चाहिए।”

यह उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्य ने पोषण सुरक्षा को बढ़ाने के लिए स्थानीय भोजन की घरेलू खपत में वृद्धि करने के उद्देश्य से आदिवासी क्षेत्रों में एकीकृत खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू कर दिया है।

वाग्धारा के सचिव जयेश जोशी ने कहा कि “इन सफल कार्यक्रमों का यहां भी क्रियान्वयन किया जा सकता हैं। भारत के 61% खेती बारिशयुक्त कृषि पर निर्भर हैं और राजस्थान में वर्षा का कम और अनियमित व्यवहार, उच्च बाष्पीकरण और मिट्टी की कम जल धारण क्षमता का देश में सबसे अधिक बारिश निर्भर क्षेत्र है। दुर्भाग्य से राजसथान में बारिश से जुड़े कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश का अभाव है, लेकिन हम कई राज्यों के अनुभवों से सीख सकते हैं और राजस्थान में बारिश आधारित कृषि कार्यक्रम के ढांचे को भी विकसित कर सकते हैं,”

जोशी ने कहा की, “समुदायों में मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने, उपलब्ध पानी के इष्टतम उपयोग और बीज के प्रबंधन के लिए समुदाय के आधार पर स्थायी मॉडल विकसित करने की जरूरत है।”

भारत में, १४,2 करोड़ हेक्टेयर की कुल खेती में से 70% से अधिक जमीन में औसत वर्षा 575 मिमी से होती है। ये रकबा मुख्य रूप से चावल (42%), दलहन (77%), कपास (64%) और अनाज (85%) का उत्पादन करता है लेकिन यहां मिट्टी की लवणता, क्षारीयता और खराब गुणवत्ता वाले भूजल स्रोत उत्पादकता बढ़ाने में बड़ी बाधाएं हैं।

Kalyan Singh Kothari
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