एक शाल तीन खुशहाल

हेमंत उपाध्याय
हेमंत उपाध्याय
सुबह – सुबह भर कड़कती ठंड में एक अम्मा बंगले के बाहर काँप रही थी । घर की काम वाली बाई ने दरवाजा खोलकर देखा तो वो उससे शाल माँगने लगी ।उसने कहा -नहीं है ,आगे जाओ। उनका वार्तालाप सुनकर साहब बाहर आए और उन्होंने काम वाली की शाल मांँग कर उस अम्मा को दे दी। अम्मा दुवा देकर चल दी । साहब भी रोज की तरह टहलने के लिए बाहर निकल गए । पर आज वो देर से वापिस आए और रोज की तरह खाली हाथ नहीं थे ,किन्तु साथ में एक थैली भी थी। उसमें से एक शाल निकाल कर बाई साहब को ओढा़ दी ओर उनकी शाल काम वाली को देने के लिए कहा । बाई साहब ने सहर्ष पिछले महिने ठंड आने से पहले खरीदी व चंद दिन ओढी़ हुई शाल आपने हाथ से कामवाली बाई को ओढा़ दी । मात्र एक नई शाल आई व तीनों को नई शाल की खुशहाली दे गई। हेमंत उपाध्याय । व्यंग्यकार व लघुकथाकार ।.साहित्य कुटिर गणगौर साधना केन्द्र , पं राम नारायण उपाध्याय वार्ड 9424949839 9425086246 7999749125 gangour knw.gmail.com

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